यातना के बारे में नया अध्ययन
१३ अप्रैल २०११इस अध्ययन में कहा गया है कि एकांत सेल में रखना, सोने न देना या कड़कती ठंडक में रखना, ये ऐसी विधियां हैं, जो पीड़ितों के लिये यातना के समान होती हैं. और इनकी अनुमति देने वाले अक्सर ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें सरसरे तौर पर इनके बारे में कहा तो जाता है, लेकिन वे खुद इन्हें कभी नहीं भोगे होते हैं.
साइकोलॉजिकल साइंस नामक वैज्ञानिक पत्रिका में इस अध्ययन में शामिल मनोवैज्ञानिकों ने कहा है कि चूंकि कानून बनाने वालों को अनुमति देने से पहले अपने फैसले के नतीजों का अनुभव नहीं रहता है, वे अपनी धारणा के अनुसार फैसला लेते हैं और उन्हें पता नहीं होता कि इन फैसलों का क्या असर पड़ रहा है.
अधिकतर देशों में यातना देने पर प्रतिबंध लगाया गया है. लेकिन अध्ययन में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन में यातना की जो परिभाषा तैयार की गई है, उसकी अलग अलग व्याख्या की जा सकती है. उसमें कहा गया है कि "यातना का अर्थ गंभीर शारीरिक या मानसिक कष्ट" है. अपनी अपनी सुविधा के अनुसार इसका अर्थ निकाला जाता है.
अमेरिका के इलिनॉय प्रदेश की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के लोरन नोर्डग्रेन इस अध्ययन के साथ जुड़े रहे हैं. उनका कहना है कि सक्रिय रूप से दर्द न भोगने वाले नहीं समझते कि इसका रूपांतरण कैसे होता है. उनकी यूनिवर्सिटी में पूछताछ की तकनीक के नतीजों को समझाने के लिए कई प्रयोग किये गए. एकांत सेल की तकलीफ के बदले उन्हें एक ऑनलाइन गेम से अलग रखा गया. नींद के अभाव को समझाने के लिए तीन घंटों का नाइट क्लास की व्यवस्था की गई. ठंडे कमरे में रखने के बजाय उन्हें अपना एक हाथ ठंडे पानी में डुबोकर रखने को कहा गया. बाद में जब पूछताछ की इन तकनीकों के बारे में उनकी राय मांगी गई, तो देखा गया कि उनकी समझ काफी अधिक थी.
तो यातना का सही मूल्यांकन कैसे किया जाय? एक दूसरे अध्ययनकर्ता, कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी के जॉर्ज लोएवेनस्टाइन का कहना है कि चूंकि हमें पता है कि यातना को कम करके आंका जाना चाहिए, इस क्षेत्र में एक उदार नजरिया बेहतर होगा. यहां भावना नहीं, बुद्धि से काम लेने की जरूरत है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ
संपादन: प्रिया एसेलबॉर्न