मुझे उस रोबोट पर तरस आता है जो मेरी नौकरी लेगा
२५ जनवरी २०१९जर्मनी में आपकी नौकरी किसी को दे दी जाए इसकी संभावना बाकी के विकसित देशों से ज्यादा है. रिसर्चरों का मानना है कि ऐसा बड़ी बड़ी कार बनाने वाली और मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने वाली कंपनियों की भरमार की वजह से है. ऐसी कंपनियों को इंसानों की जरूरत नहीं होती है. मगर मुझे लगता है कि ये सच नहीं है. मुझे लगता है कि रोबोट हमारे देश में आना चाहते हैं. इसकी वजह है हमारी उत्तम सामाजिक सुरक्षा प्रणाली.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है. 19वी सदी के ओटो फॉन बिस्मार्क के जामाने से जर्मनी में बीमा प्रणाली को मजबूत बनाने पर काम किया जा रहा है. कर्मचारियों की बीमारी, बुढ़ापा और यहां तक कि हमारी अक्षमता का भी ध्यान रखा गया है. इसका सबूत है मेरी सैलरी स्लिप जिसमें स्वास्थ्य, बेरोजगारी, लंबे समय तक देखभाल और वैधानिक पेंशन सबके लिए बीमा है.
चिंता की कोई बात नहीं
इसलिए अगर कल मैं अक्षम भी हो गई तब भी मैं इसी सुर में बात कर सकती हूं. अगले साल जब मेरी जगह पर काम करने के लिए रोबोट सुबह उठकर दफ्तर जाएगा तो मैं आराम से घर पर सो सकती हूं. क्योंकि मुझे पता हैं कि मुझे मेरी सैलरी का 60 प्रतिशत नौकरी जाने के बाद भी मिलता रहेगा. मुझे इसके लिए कोई काम नहीं करना पड़ेगा. रोबोट को भी पता है कि हमारे देश में ये सारी सुरक्षा मिलती है इसलिए वे यहां आना चाहते हैं. परेशानी की बात यह है कि अगर रोबोट को आगे चलकर इन सारी सुरक्षा उपायों का मजा लेना है तो इसके लिए कई कानूनी बदलाव करने पड़ेंगे.
स्वास्थ्य जागरूकता
पहले अगर कोई इंसान बीमार पड़ता था तो वह बस घर पर रहता था. इससे कंपनी के काम पर असर तो पड़ता था मगर कोई बड़ी परेशानी नहीं होती थी. मगर अगर किसी रोबोट को किसी वायरस ने पकड़ लिया तो बहुत बड़ी परेशानी आ सकती है. कंपनी का पूरा सिस्टम खराब हो सकता है जिससे कंपनी बंद भी करनी पड़ सकती है. इसके लिए हमको एक एंटी वायरल इंश्योरेंस करना चाहिए. जिसमें रोबोट की सैलरी का 20 प्रतिशत इसके लिए काटना चाहिए.
दूसरी योजना रोबोट के रिटायरमेंट के लिए होनी चाहिए. जैसे अभी लोगों को पता है कि वे बुढ़ापे में आराम से रह सकते हैं.
हरित ऊर्जा क्षतिपूर्ति कर
दुख की बात यह है कि इंसानों को पैदा करने में ना तो सरकार को कुछ करना होता है ना ही बिजली का उपयोग होता है. इंसानों के लिए बहुत पैसा भी नहीं खर्च करना पड़ता. मगर रोबोट को बनाने के लिए दोनों की जरूरत होगी.
रोबोट को बनाने के लिए बहुत सारी बिजली खर्च करनी पड़ेगी और ये सारी बिजली अक्षय ऊर्जा से पैदा नहीं हो सकती. जर्मनी अपने जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को भी पूरा करना चाहता है. इसके लिए रोबोट को खुद ही पैसा देना पड़ेगा. मुझे लगता है कि इसके लिए 30 प्रतिशत सैलरी का हिस्सा कटना चाहिए. जब रोबोट इंसानों की जगह लेना शुरू करेंगे तो कुछ इंसानों को रोबोट के साथ अनुवादक या संवादक का काम भी करना पड़ेगा.
अनुवाद में खोना?
अभी DeepL जैसे प्रसिद्ध सॉफ्टवेयर को भी ठीक से काम करने के लिए इंसानों का सहयोग चाहिए. तो इस अतिरिक्त कर्मी की लागत के लिए रोबोट की सैलरी का 15 प्रतिशत हिस्सा और कटना चाहिए. रोबोट इंसान की तरह भावनाओं को नहीं समझ सकते. इसलिए काम करते समय हो सकता है कि कोई गलतफहमी हो जाए. जब तक रोबोट भावनाओं को समझने में सक्षम नहीं हैं तब तक उनकी सैलरी 35 प्रतिशत कटनी चाहिए. इसको हम फॉक्स पास बीमा कह सकते हैं. जैसा की आप देख सकते हैं कि मेरे प्रस्ताव से रोबोट के पास घर ले जाने के लिए कुछ भी पैसा नहीं बचेगा मगर उनका भविष्य पूरी तरह से सुरक्षित होगा.
केट फर्ग्यूसन/एनआर