मानवाधिकारों का हनन वैश्विक समस्या
३ अक्टूबर २००८नवनीथम पिल्लै एक ऐसी महिला की जो अपने बलबूते पर दक्षिण अफ्रीका के उच्च न्यायालय में वकालत करने वाली पहली अश्वेत महिला बनी. भारतीय मूल की तमिल नवी पिल्लै 1941 में डरबन में पैदा हुईं और आज संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकार मामलों की उच्चायुक्त हैं.
नवनीथम पिल्लै ने गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में सभी देशों से अपील की कि वे अपने नागरिकों को ग़ैरक़ानूनी ढंग से क़ैद करना बंद करें. पिल्लै ने दुनिया भर में अवैधानिक कारावास और लोगों के मानवाधिकारों हनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की पहल की है.
नवी पिल्लै का कहना है कि ग़ैरक़ानूनी कारावास और मानवाधिकारों का हनन वैश्विक है चाहे वह उत्तर हो या दक्षिण. और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के दौरान ये समस्या और गंभीर हो गई है. पिल्लै कहती हैं कि कई लोगों को आतंकवाद विरोधी लड़ाई के तहत दुनिया भर में सरकारों ने क़ैद कर रखा है. और नया ट्रैंड है कि देश पुलिस को एक तरह से अनुमति देते हैं कि आरोप तय होने के पहले लंबे और लंबे समय के लिये संदिग्धों को क़ैद में रखा जाए.
पिल्लै का मानना है कि इस तरह की बढ़ती घटनाएं चिंता का विषय हैं. आप्रवासी, शरणार्थी या फिर किसी देश में राजनैतिक आश्रय लेने वाले लोग कोई अपराधी नहीं हैं इसलिये उनके साथ अपराधियों की तरह व्यव्हार किया जाना भी ग़लत है. यूरोपीय संघ ने पिछले साल इस मामले में क़ानून लागू किया था कि उसके सत्ताईस सदस्य देशों में आप्रवासियों को बिना इजाज़त 18 महीने रहने की अनुमति होगी. जज नवनीथम पिल्लै कहती है कि हर दिन दुनिया भर में सैंकडों मामले सामने आते हैं जिनमें बच्चों महिलाओं पुरुषों को बिना किसी कारण जेल में भेज दिया जाता है और कई बार बहुत ही अमानवीय स्थिती में.
संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार उच्चायुक्त पिल्लै ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है जिसमें ग्वान्तानामों बे के क़ैदियों को संवैधानिक अधिकार देने की बात कही गई है.इस क़ानून में कहा गया है कि ग्वान्तानामों में कई क़ैदी छह साल से भी ज़्यादा समय से कारावास काट रहे हैं उन्हें अधिकार है बंदी बनाये जाने के कारणों की समीक्षा करने का. हमारा कार्यालय ऐसे मामलों पर नज़र रखे हैं जहां कोर्ट के अनुसार क़ैद बेकायदा थी उन लोगों को सुरक्षित तौर पर रिहा करवाया जाए.
ब्रसेल्स से जारी आंकड़ों के अनुसार यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में अस्सी लाख ग़ैरक़ानूनी आप्रवासी रह रहे हैं. 2007 की शुरूआत में दो लाख लोगों को गिरफ्तार किया गया और इनमें से केवल नब्बे हज़ार लोगों को ही उनके देश भेजा गया.