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माइग्रेशन की मुश्किलें

आभा मोंढे१८ दिसम्बर २००७

लाचार है क़ानून

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कहां जाएं लोग
कहां जाएं लोगतस्वीर: DW

अपने सपनों की दुनिया खोजने, बेहतर ज़िन्दगी और नौकरी की उम्मीद में लाख़ों लोग अपना घर बार छोड़ नई दुनिया की ओर चल पड़ते हैं। ये कहानी केवल भारत के किसी गांव देहात से दिल्ली मुम्बई जाने की ही नहीं है, बल्कि एशियाई अफ्रीकी देशों से यूरोप आने वाले लोगों की कहानी भी ऐसी ही है जो जान जोखिम में डाल कर, ग़ैरक़ानूनी तरीके से और बुरे हाल में लंबी विकट यात्राएं करते हैं और अक्सर क़ानून के हाथों पकड़े जाते हैं। मोरक्को में दस से तीस हज़ार अफ्रीकी ग़ैरक़ानूनी तौर पर फुटपाथों पर रहते हैं, उन्हें वहां रहने की तो अनुमति है लेकिन उन्हें किसी तरह की कोई सुरक्षा नहीं किसी तरह के अधिकार नहीं। हालांकि नौकरी के कारणों से माइग्रेशन करने वाले लोगों के लिये एक अंतरराष्ट्रीय क़ानून है लेकिन इस क़ानून पर न तो मोरक्को ने और न ही यूरोप के किसी देश ने हस्ताक्षर किये हैं।

26 वर्षीय पॉल, कॉंगो से मोरक्को आया था और दो साल पहले उसने माइग्रेशन विभाग में मोरक्को में शरण लेने के लिये और संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी कार्यालय में आवेदन किया था जो कि खारिज कर दिया गया और इसी के साथ उसके सारे दस्तावेज़ भी खो गए। पॉल बताते हैं

उन्होंने ये मुझे ऐसे दिया है बिना काग़जात के। अगर कोई समस्या खड़ी होती है तो मैं किसके पास जाउ। उन्होंने मेंरे दस्तावेज़ छीन लिये और कहा कि मैं शरणार्थी आवेदक नहीं हूं। संयुक्त राष्ट्र का शरणार्थी कार्यालय आगे मेरी कोई बात सुनने को तैयार नहीं हैं। अगर कोई परेशानी खड़ी होती है तो मुझे अपना सहायता ख़ुद करनी होगी। मुझे नहीं पता कि मै क्या करूं।

थाईलैंड में आंकड़ों के हिसाब से नौकरी की तलाश में 18 लाख लोग म्यांमार और पड़ोसी देशों से आते हैं। थाईलैंड के सकल घरेलू उत्पाद में बाहर से आने वाले ये लोग छह प्रतिशत से ज़्यादा का योगदान देते हैं।1992 से थाईलैंड की सरकार काम के लिये आने वाले लोगों का पंजीकरण भी करती है। पिछले साल थाईलैंड में काम की तलाश में आने वाले लोगों में पचहत्तर प्रतिशत से ज़्यादा म्यांमार से आए थे और बाकी लाओस कंबोडिया से आए थे।

ग़ैरक़ानूनी तरीके से स्लोवाकिया के रास्ते से युक्रेन होते हुए यूरोप आने की चाह रखने वाले हज़ारों शरणार्थी हर साल युक्रेन की सीमा पर पकड़े जाते हैं। यहां बड़े पैमाने पर कबूतरबाज़ी भी होती है। यूरोप में शरण लेने के लिये आवेदन करने वालों की संख्या पिछले साल क़रीब 2 लाख थी। यूरोमेड नाम की मानवाधिकार संस्था के ख़दी सिदहोम कहते हैं

हमें यह बात निश्चित करनी होगी कि यूरोप मोरक्को या अन्य भूमध्यसागरीय देशों में अधिकारों का सही तरीके से उपयोग किया जाए। मेरे हिसाब से ये मुश्किल नहीं होना चाहिये कि एक आप्रवासी के साथ दुर्व्यव्हार न किया जाए। यह बात तो मोरक्को के क़ानून में भी लिखी है। लेकिन समस्या इस बात की है कि इस पर अमल नहीं या जाता और इस तरह के दुर्व्यव्हार पर नज़र रखने के लिये पर्याप्त साधन नहीं हैं।

ग़ैरक़ानूनी प्रवासियों को रोकने के लिये ब्रिटिश सरकार मंगलवार को अपनी वीसा नीति और कड़ी करने की बात कही। वीसा नीति को कड़ा करने का सीधा असर भरतीय उपमहाद्वीप पर पड़ेगा।

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