महिलाओं के लिए कंपनियों की पहल
८ फ़रवरी २००९इस वजह से वे अपने काम पर इतना ध्यान नहीं दे पातीं हैं, दुखी रहती हैं और इससे उनका आत्मविश्वास टूटता है. इसलिए कंपनियों को समझना चाहिए कि घरेलू हिंसा कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं हैं. तैर डे फाम नामाक संस्था ने हाल ही में बर्लिन में एक योजना पेश की है कि कैसे कंपनियां घरेलू हिंसा का शिकार बनने वाली अपनी कर्मचारियों को सलाह मशविरा और मार्गदर्शन दे सकती हैं.
अपने पति की गालियां सहना, धमकियां सुनना और कई बार तो मार भी सहना. यूरोप हो या अफ्रीका, भारत या अमेरिका. महिलाएं दुनिया भर में घरेलू हिंसा का शिकार बनती हैं. शादी को लेकर देखे गए सपने कि शादी का पवित्र बंधन होगा. एक साथी मिलेगा जो दुख सुख में साथ देगा. बहुत सी महिलाओं के लिए हकीकत इन सपनों से दूर बहुत कड़वी होती है. इनमें से ज्यादातर महिलाएं कभी बच्चों की खातिर तो कभी सामाजिक मर्यादाओं के नाम पर सब कुछ खामोशी से सहती रहती हैं. कई बार इसे उनकी व्यक्तिगत समस्या बता दिया जाता है तो कई बार महिलाएं खुद को ही दोषी मानने लगती हैं. वे अपने रिश्तेदारों, दोस्तों या दफ्तर में काम करने वाले साथियों से भी ये बातें कहने में हिचकती हैं. कह भी देती हैं तो कोई भी किसी के मामले में आसानी से हस्तक्षेप करने को तैयार नहीं होता.
"घरेलू हिंसा का शिकार बनने वाली महिलाओं में से 75 प्रतिशत को उनके पति काम पर भी तंग करते हैं. उन्हे दफ्तर में फोन करते हैं और धमकियां देते हैं, या घर लौटने पर ही गाली गलौच शुरू करते हैं. आंकड़ों के अनुसार इस तरह के हालात में रहने वाली 56 प्रतिशत महिलाएं हफ़्ते में कम से कम पांच बार देर से दफ्तर पहुंचती हैं. और लगभग 30 प्रतिशत ऑफिस का काम ख़त्म होने से पहले ही घर चली जाती हैं." -महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय संस्था तैरडे फाम की सेराप अल्टिनिस्टिक
डर से सहमे रहना, ठीक से नींद न आना और इस वजह से होने वाली थकान के चलते वह काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती हैं. इसीलिए करियर को आगे बढ़ाने में भी वे नाकाम रहती हैं. इससे उनका आत्मविश्वास कम होता है. वैसे पीड़ित महिलाओं के लिए उनके सहकर्मी ही भरोसे का एक स्रोत हो सकते हैं.
सबसे ज़रूरी यह है कि पीडित महिलाओं को अहसास हो कि उन्हें किसी को सफाई नहीं देनी है बल्कि उन्हें मदद और सुरक्षा मिल सकती है या उन्हें सहायता संगठन के नंबर मिल सकते हैं. सबसे ज़रूरी है उन महिलाओं को अपने परेशानियों के बारे में बताने का मौका देना. जब वह काम पर नहीं आतीं हैं या उनके काम पर असर पड़ता है तो उन्हें कुछ वक़्त के लिए माफ कर देना चाहिए.
अगर किसी कंपनी में ऐसे व्यक्ति के बारे में पता चलता है जो घर में अपने परिवार को तंग करता है और कंपनी उसके खिलाफ कदम नहीं उठाती है तो इससे कंपनी की छवि को नुकसान होता है. वैसे बर्लिन में कई कांपनियों ने घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ पहल की हैं. कायसेर्स सुपर मार्केट की 160 बेकरियों में महिलाएं ब्रेड और केक को पैक करती हैं जिस पर लिखा होता है हम हिंसा के खिलाफ हैं. साथ ही लिखा होते हैं ऐसे मामलों में सलाह मशविरा और मदद देने वाली संस्थाओं के फोन नंबर.
बर्लिन के नोए कोएल इलाके में बहुत सारे तुर्क मूल के लोग रहते हैं. वहां सब्ज़ी बेचने वाली दुकानों में 50, 000 प्लास्टिक की थैलियां बांटी गई हैं. उन पर तुर्की में लिखा है "परिवारों में हिंसा का अंत होना चाहिए". साथ ही यह बात अरबी में लिखी हुई थी.
"हम एक सरकारी संस्था हैं और इसलिए ऐसी योजनाओं में साथ देना हमारा फर्ज़ बनता है. यदि हर दूसरे हफ्ते हमारी एक सहकर्मी कहती है कि मैं सीड़ियों पर गिर गई हूँ या दरवाज़े से टकरा गई तब अफिस के लोगों को कार्रवाई करनी चाहिए." -बर्लिन नगर पालिका बीआरएस की प्रवक्ता ज़ाबीने थूएमलर
बर्लिन में ही 1999 में एक हॉटलाइन नंबर बनाया गया, जहां घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं फोन कर सकतीं हैं. सुबह नौ से रात के 12 बजे तक महिलाओं को मदद मिल सकती हैं. अलग अलग तरीके से इसके नंबर लोगों तक पहुंचाए गए. हर साल 7000 महिलाएं इस हॉटलाइन पर फोन करतीं हैं और पूरे शहर में लोगों को इसके बारे में पता है. वैसे अंतरराष्ट्रीय कॉस्मेटिक कंपनी बॉडी शॉप पिछले 10 साल से घरेलू हिंसा के ख़िलाफ अपनी कई योजनाओं के तहत क़दम उठा रही है. इस कंपनी में काम करने वालों में न सिर्फ 80 प्रतिशत महिलाएं हैं बल्कि कंपनी के ग्राहकों में भी 90 प्रतिशत से भी ज़्यादा महिलाएं ही हैं.