अमेरिका और जापान का मुकाबला
१७ जुलाई २०११महिला फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले जब अमेरिका की स्वीडिश प्रशिक्षक पिया सुंडहागे से पूछा गया कि वह 17 जुलाई को कहां होंगी तो उन्होंने साफ शब्दों में पूरे विश्वास से कहा कि "फ्रैंकफर्ट में ट्रेनर की बेंच पर."
खचाखच भरे फ्रैंकफर्ट के स्टेडियम में वह रविवार को सचमुच ट्रेनर की जगह पर बैठेंगी और उनकी टीम कोशिश करेगी कि 1991 और 1999 के बाद अमेरिका को तीसरा वर्ल्ड कप खिताब मिले. लेकिन सफलता के इस लक्ष्य तक पहुंचने में सुंडहागे के आत्मविश्वास में कुछ कमी आई है. फाइनल के पहले अमेरिकी टीम में जापान की महिला टीम के लिए बहुत आदर देखा जा रहा है. ट्रेनर कहती हैं, "जिस तरह से वे खेल रही हैं मैं बहुत ही प्रभावित हूं."
सिर्फ सुंडहागे ही नहीं बल्कि फुटबॉल के जानकारों की भी आंखें जापान की महिला टीम के खेल से बहुत प्रभावित हुई हैं, खासकर यह देखने के बाद कि औसतन 1,64 मीटर ऊंची जापान की टीम ने दो फेवरेट टीमों को एक बाद एक खेल से बाहर कर दिया. क्वार्टर फाइनल में उन्होंने जर्मनी को बाहर का रास्ता दिखाया और फिर सेमीफाइनल में स्वीडन को. इस टूर्नामेंट से पहले जापान एक ऐसी टीम थी जो पहले चार बार ग्रुप मैचों के दौरान ही बाहर हो गई थी और दूसरे मौकों पर भी ज्यादा सफल नहीं हुई.
जापानी सफलता के पीछे कौन?
वैसे तो कहते हैं कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला होती है लेकिन इस महिला टीम की सफलता के लिए एक पुरुष की मेहनत और रणनीति है. नेशनल ट्रेनर नोरियो सासाकी, वर्ल्ड चैंपियनशिप के पहले ही उन्होंने फाइनल तक पहुंचने का दावा किया था. लेकिन तब कई लोगों ने उन्हें हल्के में लिया. लेकिन सासाकी और उनकी महिला टीम ने सफलता का रास्ता तय किया अपनी शानदार तकनीक के साथ. जापानी टीम की तकनीक इतनी टाइट है कि वह सामने वाली टीम को ऐसे दबाव में ला देते हैं कि वह गलती कर ही दे और इसी तरीके से उन्होंने स्वीडन और जर्मन टीम को बाहर कर दिया.
इसमें अहम भूमिका अनुभवी खिलाड़ियों की तो है ही लेकिन गोल की भूखी होमारे सावा जैसी खिलाड़ियों की भी जो अभी तक चार गोल दाग चुकी हैं. लेकिन साथ ही मानती हैं कि टीम की सफलता हर स्थिति में अहम है. मैदान से बाहर वह लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाती हैं क्योंकि एक संवाददाता सम्मेलन में वह पूरे समय खड़ी ही रहीं सिर्फ इसलिए क्योंकि पसीने से लथपथ हालत में वो वहां कुर्सी गंदी नहीं करना चाहती थीं.
फाइनल में आना ही काफी नहीं
इस तरह की शिष्टता अमेरिकी स्ट्राइकर एबी वैमबाख में नहीं हैं. उन्हें पिछले दोनों वर्ल्ड कप टूर्नामेंट में बेस्ट स्ट्राइकर का खिताब मिला हैं. वह वर्ल्ड कप के अलावा किसी भी खिताब को निराशा मानती हैं. उनका कहना है कि जो भी इस जीत के बीच में रोड़ा बनेगा उसे वह हटाना चाहेंगी और इसके लिए पूरी कोशिश करेंगी. "हमने अपना आधा काम तो कर ही लिया है." उनके आक्रामक खेल से अमेरिका को निश्चित ही फायदा होगा लेकिन अमेरिकी गोल कीपर होप सोलो को जापानी नादेशिको टीम के आक्रामक खेल से खुद का बचाव करना होगा. कुल मिला कर रविवार दोपहर को रोमांचक मैच और कांटे की टक्कर की उम्मीद है. इसमें जीतने वाली टीम को फुटबॉल वर्ल्ड कप तो मिलेगा ही साथ ही 10 लाख अमेरिकी डॉलर भी मिलेंगे.
तीसरे नंबर पर स्वीडन
तीसरे नंबर पर स्वीडन ने फ्रांस को 2-1 से हरा दिया. लोटा शेलिन और मिड फील्डर मारी हामरस्ट्रोम के गोलों ने टीम को जीत दिलाई. रोमांचक मैच में स्वीडन ने शुरू से आक्रामक खेल दिखाया और फ्रांस अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सका. पहले हाफ में लोटा शेलिन ने गोल किया लेकिन 56 वें मिनट में फ्रांस की एलोडी थोमिन ने स्कोर बराबरी पर ला दिया. इसके बाद 68वें मिनट में स्वीडन को झटका लगा जब उनकी स्ट्राइकर जोसेफीन ओक्विस्ट को आक्रामक व्यव्हार के कारण रेड कार्ड दे कर बाहर भेज दिया गया. ओक्विस्ट को बाहर किए जाने पर स्वीडन की टीम में सिर्फ 10 ही खिलाड़ी बचे थे लेकिन 29 साल की मैरी हैमरस्ट्रोम ने कॉर्नर से मिले पास को गोल में बदल दिया और टीम को जीत दिलाई.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे
संपादनः एन रंजन