महिला जगत की कुछ ताज़ा ख़बरें
२४ अप्रैल २००८1996 और 2001 के बीच, यानी तालिबान के शासन के दौरान, लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी. केयर इंटरनेशनल का कहना है कि लड़कियों को अब भी स्कूल न भेजने का कारण यह है कि बहुत-से माता-पिता नहीं चाहते कि कोई मर्द उनकी लड़की को पढ़ाए. अब तक सिर्फ 28 प्रतिशत अध्यापक महिलाएं हैं. लड़कियों को स्कूल भेजने की दूसरी बाधा यह है कि स्कूल बहुत दूर हैं. खुशी की बात यह है कि करीब तीन करोड़ आबादी वाले अप़ग़ानिस्तान में इस समय, सरकारी सूत्रों के अनुसार, रिकॉर्ड 35 लाख बच्चे स्कूल जा रहे हैं.
जर्मनी में कन्या दिवस
जर्मनी में 24 अप्रैल का दिन गर्ल्स डे अर्थात कन्या दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन पांचवीं से दसवीं कक्षा तक की लड़कियां उन कामों का परिचय पा सकती हैं, जो आम तौर पर पुरुषों के काम कहलाते हैं. 2001 से जर्मनी के वैज्ञानिक संस्थान और कार्यालय अप्रैल महीने के चौथे गुरुवार को मनाये जाने वाले इस दिन स्कूली लड़कियों के लिए अपने दरवाज़े खोल देते हैं. जर्मनी ने यह परंपरा अमेरिका को देख कर शुरू की थी. इस बीच कई अन्य यूरोपीय देश भी ऐसा ही करने लगे हैं.
राष्ट्रीय पोशाक से बने मानसिक स्वास्थ्य
लंदन में एक सर्वे के अनुसार, ऐसे प्रवासी बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य, जो अपने देश की पोशाकें पहनते हैं, उन बच्चों की तुलना में ज़्यादा अच्छा होता है, जो पश्चिमी कपड़े पहनते हैं. 11 से 14 साल की उम्र के 1000 बांग्लादेशी और ब्रिटिश बच्चों के बीच करवाए गए इस सर्वे के मुताबिक, अपनी राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पहचान बनाए रखना किसी हद तक बच्चों को मानसिक तनाव से बचा सकता है. ब्रिटेन की छह करोड़ की आबादी में 30 लाख से भी ज्यादा प्रवासी दक्षिण एशिया के हैं.
नॉर्वे में सेक्स वर्कर के पास जाना अपराध
महिलाऔं को मानव तस्करी से बचाने के लिए नॉर्वे की सरकार ने नया कानून पारित किया है. इस कानून के तहद सेक्स वर्कर के पास जाना ग़ैरकानूनी है और इस पर छह महीने तक कैद की सज़ा हो सकती है. नॉर्वे की सरकार का कहना है कि इससे महिलाओं के देह- व्यापार को रोका जा सकता है क्योंकि उनकी मांग घटेगी. नॉर्वे में यह देखा गया है कि बहुत सारी सेक्सवर्कर कम उम्र की प्रवासी हैं, जिसकी वजह से उनकी स्थिति बेहद नाज़ुक है. सरकार का लक्ष्य इन महिलाओं को देह व्यापार से दूर रख कर समाज में नये सिरे से घुलाना मिलाना है. इस कानून के विरोधियों का कहना है कि महिलाएं अब अपना धंधा छिप छिपा कर करने के लिए मज़बूर हो जाएंगी, जो उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. स्वीडन ने भी 1999 में ही नॉर्वे जैसा कानूम पास कर दिया था.