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महिला आरक्षण बिलः अहम पड़ाव

९ मार्च २०१०

लगभग 14 साल का सफ़र तय करने के बाद महिला आरक्षण बिल संसद के ऊपरी सदन में पास हो पाया. इस दौरान कभी मंत्री को महिला सांसदों को ढाल की तरह इस्तेमाल करना पड़ा तो कभी बिल की प्रतियां सरेआम फाड़ कर उछाल दी गईं. अहम पड़ाव.

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तस्वीर: UNI

12 सितंबर 1996: उस वक्त की एचडी देवेगौड़ा सरकार ने महिलाओं को संसदीय प्रणाली में 33 फ़ीसदी आरक्षण देने के लिए विधेयक पहली बार लोकसभा में पेश किया गया.

9 दिसंबर 1996: लोकसभा में पेश न किए जा सकने के बाद महिला आरक्षण बिल को गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय कमेटी में भेज दिया गया.

जून, 1997: शरद यादव इस बिल के शुरू से विरोधी रहे हैं. उन्होंने कहा, "क्या आपको लगता है कि ये छोटे बालों वाली महिलाएं हमारी महिलाओं के बारे में बात करेंगी."

13 जुलाई 1998: अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने फिर से विधेयक को संसद में पेश किया.

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तस्वीर: picture alliance/Bildagentur Huber

राष्ट्रीय जनता दल के सांसद सुरेंद्र प्रसाद यादव ने विधेयक की कॉपी उस वक्त के लोकसभा स्पीकर जीएमसी बालयोगी के हाथों से छीन ली और टुकड़े टुकड़े कर दिए.

1999: एनडीए सरकार ने एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश किया लेकिन रज़ामंदी पाने में नाकाम रही.

2002: एनडीए सरकार ने एक बार फिर विधेयक संसद में लाया और कांग्रेस के साथ साथ लेफ़्ट पार्टियों ने सरकार को भरोसा दिया कि वे बिल का साथ देंगी.

2003: बीजेपी की सरकार ने बिल को फिर से संसद में पेश करने की कोशिश की. विरोध होने पर बीजेपी नेता विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा था कि वह इसी सत्र में बिल को पास कराएंगे, चाहे इस पर एक राय बने या न बने.

मई 2003: बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी ने महिला आरक्षण बिल को थोड़े दिनों बाद लाने की बात कही. कुछ सांसद हल्ला करते हुए सदन के बीच में आ गए और उन्होंने कहा कि मौजूदा स्वरूप में वे इस बिल को पास नहीं होने देंगे.

2004: उस वक्त के प्रधानमंत्री और बीजेपी के क़द्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस पर इलज़ाम लगाया कि वह इस बिल को पास होने में अड़ंगा लगा रही है. वाजपेयी ने एलान किया कि अगर उनकी पार्टी चुनाव जीती तो फ़ौरन महिला आरक्षण बिल पास होगा. वाजपेयी चुनाव हार गए.

उसी साल कांग्रेस ने चुनाव जीतने के बाद महिला आरक्षण के मुद्दे को अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में शामिल कर लिया.

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तस्वीर: AP

2005: बीजेपी ने बिल को पूरा समर्थन देने का एलान कर दिया. हालांकि उनकी पार्टी में उमा भारती जैसे कुछ नेता कोटा के अंदर कोटा की मांग कर रहे थे.

06 मई, 2008: क़ानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने जब बिल पेश करने की कोशिश की तो समाजवादी पार्टी के सांसद ने उनके हाथ से इसे छीनने का प्रयास किया. इसके बाद भारद्वाज दो महिला मंत्रियों के बीच में जाकर बैठ गए.

समाजवादी पार्टी के अबु असीम ने जब फिर से हमला किया, तो कांग्रेस की रेणुका चौधरी ने उन्हें धक्का देकर एक तरफ़ कर दिया.

दिसंबर 2009: क़ानून और न्याय पर बनी संसदीय कमेटी ने सिफ़ारिश की कि इस विधेयक को पारित किया जाना चाहिए.

25 फ़रवरी 2009: यूपीए सरकार की कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी.

09 मार्च 2010: राज्यसभा ने महिला आरक्षण बिल को पास कर दिया.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए जमाल

संपादनः प्रिया एसेलबॉर्न