भारत चीन में होड़ बढ़ने की संभावना
२० जनवरी २०१०चीन ने ज़ोर शोर से अपनी जलसेना की साठवीं वर्षगांठ मनाने के साथ ही पूरे विश्व को ये संकेत भी दे दिए हैं कि चीन एक प्रभावशाली समुद्री खिलाड़ी बनना चाहता है. ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है. मध्य पूर्व से तेल का आयात हो या फिर स्वेज़ नहर के ज़रिए यूरोप में चीज़ों का निर्यात. चीन ने हमेशा समुद्री परिवहन की सहायता ली है. इतना ही नहीं चीन इस पूरे क्षेत्र में स्थिरता लाने की भूमिका भी बख़ूबी निभाता रहा है. हाल ही में सोमाली सीमा पर समुद्री डाकुओं के ख़िलाफ़ चीन के संघर्ष को ही ले लीजिए.
हालांकि हिंद महासागर में चीन की बढ़ती दख़लअंदाज़ी से बाकी देश खुश नहीं हैं. सैनिक सवालों पर अध्ययन करने वाले संस्थान एसएपीआरए सपरा के अध्यक्ष इंद्रनील बैनर्जी मानते हैं कि भारत पहले से विश्व राजनीति में एक मुश्किल स्थिति में है. "इंद्रनील बताते हैं भारत के पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में ग्वादार और दक्षिण में श्रीलंका है और अब अफ़्रीकी पोर्ट्स को लेकर भारत की चिंता बढ़ती जा रही है. इतना ही नहीं ये परिस्थिति भारत और यहां के युद्धविधा विशेषज्ञों के लिए भी सिरदर्द बन गयी है."
चीनी कारोबार इन सभी पोर्ट्स तक फैला हुआ है. इतना ही नहीं बंग्लादेश की राजधानी ढाका में चीन के पास एक बड़ा कंटेनर बंरगाह भी है. चीन एक ऐसी पाइपलाइन भी बनाने के प्रयास कर रहा है जिससे बंगाल की खाड़ी के साथ यूनान प्रांत को जोड़ा जा सके.
कुछ सैन्य पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस परिस्थिति को नियंत्रण में लेने में सिर्फ़ अमेरिका ही मदद कर सकता है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर काम कर रही अमेरिकी समिति के एडम सीग़ल इस बात से इत्तफ़ाक़ नहीं रखते. "सीग़ल का कहना है अमेरिका को पहले से चीनी सेना के कारण बहुत दिक्कतें हो रही हैं. जिसके कारण इस समय अमेरिका के लिए कोई बाहरी रोल अदा करना संभव नहीं है." तो कहा जा सकता है कि यदि स्थिति ऐसी ही बनी रही तो ये एशियाई देशों के बीच एक समुद्री हथियारों की नई दौड़ शुरू हो जाएगी.
रिपोर्टःडॉयचे वेले/तनुश्री सचदेव
संपादनः आभा मोंढे