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बम धमाकों के बाद मानवाधिकारों के साथ खिलवाड़

२ फ़रवरी २०११

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने आरोप लगाया है कि भारत में 2008 में हुए बम धमाकों के बाद पुलिस ने लोगों को मनमाने तरीके से गिरफ्तार कर उनका शोषण किया. इस दौरान उनके साथ धार्मिक आधार पर भेदभाव किया गया.

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तस्वीर: picture-alliance /dpa

ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक जयपुर, अहमदाबाद और नई दिल्ली में धमाकों के बाद सुरक्षा एजेंसियां दोषियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी और इस दौरान मानवाधिकारों का उल्लंघन खूब हुआ. मानवाधिकार संस्था एचआरडब्ल्यू ने प्रशासन को चेतावनी दी है कि उनकी गैरकानूनी आतंकवाद से जंग में नुकसानदेह साबित हो सकती हैं. संस्था के मुताबिक सुरक्षा मामलों के जानकारों की राय में ट्रेनिंग, जागरुकता और संसाधनों की कमी के कारण ऐसा हुआ.

Anschlag in Jaipur Indien mindestens 45 Tote
तस्वीर: AP

रिपोर्ट में कहा गया है,"सुरक्षा एजेंसियों पर इस तरह के हमलों को रोकने के लिए बनाया गया दबाव मानवाधिकारों के उल्लंघन को जायज नहीं ठहरा सकता, इससे आतंकवाद के खिलाफ जंग की कोशिशें कमजोर होती हैं."

रिपोर्ट के मुताबिक ताकत और कई बार झूठे कबूलनामों के आधार पर भारत सरकार गलत संदिग्धों को सजा देने का जोखिम उठा रही है जबकि दोषी छूट जा रहे हैं. इसके साथ ही इस तरह की कार्रवाइयों के कुछ और खतरे भी बताए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है,"दुर्व्यवहार के आरोप पूरे भारत में मुस्लिम समुदाय के मन में आक्रोश पैदा करते हैं और इससे एक बड़ा नुकसान ये भी होता है कि कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों को ऐसी जानकारी नहीं मिलती जिनके आधार पर भविष्य में होने वाले हमलों को रोका जा सके. प्रताड़ित किए जाने की खबरें आतंकवादियों की भर्ती में भी मददगार साबित होती हैं."

Bombenserie in Touristenmetropole Jaipur
तस्वीर: AP

पुलिस का दुर्व्यवहार

रिपोर्ट के मुताबिक हर बम धमाके के बाद पकड़े जाने वाले लोग ज्यादातर मुस्लिम होते हैं जिनपर पुलिस इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य होने का आरोप लगाती है. ये वही इस्लामी संगठन है जिसने हमलों की जिम्मेदारी ली है. 2008 में मई से सितंबर के बीच हुए लगातार बम धमाकों में 150 से ज्यादा लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में धमाके के एक हफ्ते बाद मालेगांव में हुए धमाके में सात लोगों की जान गई. इसके पीछे हिंदु राष्ट्रवादियों की संदिग्ध भूमिका बताई जा रही है. पुलिस ने इनके साथ भी दुर्व्यवहार किया. एक संदिग्ध हिंदु चरमपंथी ने कहा कि पुलिस ने हिरासत में रखने के दौरान उसे जबर्दस्ती गोमांस खिलाया. रिसर्च करने वालों को पता चला है कि कई बार संदिग्धों को बिना औपचारिक रूप से गिरफ्तार किए कई हफ्तों तक हिरासत में रखा गया. पुलिस संदिग्धों से जुर्म कबूलवाने के लिए उन्हें 15 दिन से ज्यादा हिरासत में रखने पर लगी कानूनन रोक का खूब उल्लंघन करती है.

मानवाधिकार संस्था ने यह रिपोर्ट संदिग्धों, उनके परिवार, वकीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कानून का पालन कराने वाले अधिकारियों और सुरक्षा मामलों के जानकारों से बातचीत के आधार पर तैयार की है. इसमें आरोप लगाया गया है कि न्यायिक प्रक्रिया के हर चरण में लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है. अदालतों में आमतौर पर जज दुर्व्यवहार की शिकायतों को नजरअंदाज कर देते हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने पूरी न्यायिक प्रक्रिया में बदलाव की मांग की है. संगठन की मांग है कि आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए बनाए गए अस्पष्ट व्याख्या वाले कानूनों को खत्म किया जाए.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ईशा भाटिया

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