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बढ़ते तापमान के बीच घरों को ठंडा रखने की चुनौती

नताली मुलर
२८ मार्च २०२५

जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है और तापमान बढ़ रहा है वैसे-वैसे घरों को ठंडा रखने के लिए एसी-कूलर की मांग बढ़ रही है. मुश्किल यह है कि हम जितना ज्यादा एसी का इस्तेमाल कर रहे हैं, पृथ्वी उतनी ही ज्यादा गर्म हो रही है.

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गर्मी से जूझते भारत के लोग
भारत और कई देशों में बढ़ती गर्मी से परेशान लोग एसी का सहारा ले रहे हैंतस्वीर: Sahiba Chawdhary/REUTERS

कई जगहों पर, जब पारा चढ़ता है, तो अपने घरों को ठंडा बनाए रखना सिर्फ सुख-सुविधा के लिहाज से जरूरी नहीं होता, बल्कि भीषण गर्मी हमारे स्वास्थ्य, हमारी कार्यक्षमता, अर्थव्यवस्था और यहां तक कि हमारी जिंदगी पर भी गंभीर असर डालती है.

औद्योगिक काल से पहले के स्तर से सिर्फ 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) की वृद्धि से 2.3 अरब लोगों को भीषण गर्मी की चपेट में आने का खतरा हो सकता है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर हम कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करते हैं, तो 2030 के दशक की शुरुआत तक हम उस तापमान वृद्धि को छू सकते हैं.

गर्म मौसम की वजह से पहले से ही हर साल लगभग 12,000 लोगों की मौत हो रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया है कि बुजुर्ग लोगों के गर्म हवाओं या लू के संपर्क में आने की वजह से 2030 तक हर साल 38,000 अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं.

हांगकांग के घरों में लगे एसी के यूनिट
भारत और दुनिया के कई देशों में एसी का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा हैतस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Hoelzl

इस भीषण गर्मी से बचने का एक आसान उपाय यह नजर आता है कि बाजार जाएं और एयर कंडीशनर खरीद लें, लेकिन हकीकत यह है कि काफी ज्यादा ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाले ये उपकरण बढ़ती गर्मी की समस्या से निजात दिलाने की जगह उसे बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं, एयर कंडीशनर से हानिकारक रेफ्रिजरेंट लीक हो सकते हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम से जुड़ी लिली रियाही ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमें इस दुष्चक्र से बाहर निकलने की जरूरत है. जिस तरह से हम अपने घरों और दफ्तरों को ठंडा रखते हैं, वह जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा कारण है.”

एसी की ठंडी हवा ने बढ़ाई दुनिया भर में बिजली की खपत

घर को ठंडा रखने की समस्या

वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में बिजली की मांग पिछले दशक की वृद्धि दर से लगभग दुगुनी हो गई यानी पिछले दस सालों की तुलना में लगभग दोगुनी बढ़ गई. हालांकि, एक अच्छी बात यह है कि इस बढ़ी हुई मांग का 38 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा से पूरा किया गया.

इसके बावजूद, अभी भी अधिकांश बिजली का उत्पादन जीवाश्म ईंधन की मदद से ही किया जाता है. आईईए ने कहा कि 2024 में दुनिया की दो-तिहाई बिजली कोयले से मिली और कोयले से मिलने वाली बिजली में लगभग 1 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. बिजली की इस बढ़ती मांग का एक बड़ा कारण है एयर कंडीशनिंग.

हसदेव जंगल जरूरी है या एयरकंडीशनर के लिए बिजली

ऊर्जा थिंक टैंक एम्बर ने दुनिया के तीन सबसे बड़े बिजली बाजारों, भारत, चीन और अमेरिका के विश्लेषण में भी इस निष्कर्ष की पुष्टि की. मार्च 2025 की शुरुआत में जारी रिपोर्ट में कहा गया, "भीषण गर्मी की वजह से एयर कंडीशनर का इस्तेमाल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जिससे बिजली की मांग बढ़ी और ग्रिड पर दबाव पड़ा.”

आईईए के मुताबिक, भारत और चीन जैसे देशों में तापमान, जनसंख्या और कमाई बढ़ने की वजह से दुनिया भर में एसी यूनिट्स की संख्या भी बढ़ रही है. फिलहाल, यह संख्या 2.4 अरब है, जो 2050 तक बढ़कर 5.6 अरब हो सकती है.

दुनिया भर में एयरकंडीशनर की संख्या का अनुमान
घरों को ठंडा रखने के लिए एसी का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है

एजेंसी का यह भी अनुमान है कि अगर एसी की क्षमता को बेहतर नहीं बनाया जाता है, तो इस सदी के मध्य तक घरों और दफ्तरों को ठंडा रखने के लिए बिजली की मांग तीन गुना बढ़ सकती है, यानी आज चीन और भारत जितनी बिजली इस्तेमाल करते हैं उतनी.

सस्टेनेबल कूलिंग को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहे कूल कॉएलिशन नेटवर्क की ग्लोबल कॉर्डिनेटर रियाही ने कहा कि यह स्थिति बिजली ग्रिडों पर अत्यधिक दबाव डालेगी और आखिरकार जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के प्रयासों को बाधित करेगी. 

वह कहती हैं, "अनुमानों के अनुसार, 2050 तक कई देशों में केवल कमरों को ठंडा रखने में ही 30 से 50 फीसदी बिजली की खपत होगी. आज यह औसतन 15 फीसदी है. ऐसे में कभी-कभी ग्रिड पर इतना दबाव बढ़ जाएगा कि वे काम करना बंद कर देंगे.”

तेज गर्मी के खतरे में 1 अरब से ज्यादा लोग

भीषण गर्मी से बचने का उपाय क्या है?

एयर कंडीशनिंग से गर्म देशों के लोगों को आराम से रहने और काम करने में मदद मिलती है. इसलिए, एयर कंडीशनिंग किसी भी देश की समृद्धि और आर्थिक विकास में एक अहम भूमिका निभाता है. हालांकि, अगर इन एसी को काफी हद तक जलवायु के अनुकूल नहीं बनाया जाता है, तो उनकी बढ़ती संख्या एक बड़ी चुनौती बन जाएगी.

रियाही ने कहा कि घरों को ठंडा रखने से जुड़े विकल्पों के बारे में जागरूकता की कमी है. साथ ही, पैसे की तंगी की वजह से भी लोग रेफ्रिजरेंट का कम उत्सर्जन करने और कम बिजली खपत वाले एसी नहीं खरीद पाते हैं.

उन्होंने बताया, "एसी का मतलब बाजार में सबसे सस्ता एयर कंडीशनिंग नहीं है. सबसे पहले यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि हम अपने शहरों और इमारतों को इस तरह कैसे डिजाइन करें कि कमरों को ठंडा रखने वाले उपकरणों की जरूरत ही कम पड़े. इसका मतलब यह भी है कि सबसे अच्छी तकनीकें बाजार में आएं और इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के तरीके ढूंढने होंगे.”

एसी यूनिट पर काम करता एक इलेक्ट्रिशियन
एयरकंडीशनर के इस्तेमाल से घर ठंडे होते हैं लेकिन पृथ्वी की गर्मी बढ़ जाती हैतस्वीर: Panthermedia/IMAGO

बस्तियों में छतों को ठंडा करना

भीषण गर्मी से बचने और उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए सिर्फ बेहतर परफॉर्मेंस वाले एसी का इस्तेमाल करने से बात नहीं बनेगी. इसके लिए, हमें कुछ और उपाय अपनाने होंगे. उदाहरण के लिए, इमारतों पर बाहरी शेडिंग, छतों पर पेड़-पौधे या सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट लगाना. इससे कमरे कम गर्म होंगे. शहरों में हरियाली, पानी वाले क्षेत्र और हवा बहने के लिए गलियारे बढ़ाने से भी फायदा हो सकता है.

भारत में, महिला हाउसिंग ट्रस्ट झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के साथ काम कर रहा है, जो अपने घरों को ठंडा रखने के लिए एसी का खर्च नहीं उठा सकते. यह संगठन कम लागत वाले उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है. जैसे, गर्मी को रोकने के लिए टिन की छतों को सफेद रंग से रंगना, छाया प्रदान करने के लिए घरों के पास पेड़ लगाना या बांस की चटाई से बनी छतें लगाना जो गर्मी को कम अवशोषित करती हैं.

ट्रस्ट की निदेशक बिजल ब्रह्मभट्ट ने कहा कि छतों पर सोलर रिफ्लेक्टिव पेंट लगाने से ही घर के अंदर का तापमान 6 डिग्री सेल्सियस तक कम हो सकता है. निवासियों ने बताया कि यह बदलाव एसी लगाने जैसा ही है.

उन्होंने कहा, "लोगों की जीवनशैली में काफी सुधार हुआ है. तापमान कम होने से आर्थिक उत्पादकता डेढ़ से दो घंटे बढ़ गई. लोगों का बिजली बिल कम हुआ है, क्योंकि अब उन्हें पंखे का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता.”

रेगिस्तान से सबक

मिस्र के रेगिस्तान में गर्मियों में तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. वहां भी गर्मी से बचने के लिए एक परियोजना तैयार की गई है, जिसके तहत स्मार्ट बिल्डिंग डिजाइन से इमारतें बनाकर गर्मी से निपटा जा रहा है.

ग्रीन बिल्डिंग फर्म इकोनसल्ट की संस्थापक और आर्किटेक्ट सारा अल बतूती का कहना है कि यांत्रिक समाधानों के बगैर ही उनकी कंपनी इमारतों का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में सफल रही है.

इकोनसल्ट कंपनी पांच करोड़ अस्सी लाख की आबादी वाले 4,000 गांवों को अपग्रेड करने के लिए मिस्र सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है, ताकि वे भीषण गर्मी का बेहतर तरीके से सामना कर सकें. हालांकि, ऊंची तकनीक वाले समाधान लाने के बजाय, अल बतूती कहती हैं कि बहुत से हरित बदलाव स्थानीय ज्ञान से प्रेरित थे.

वह कहती हैं, "ये गांव आज भी बचे हुए हैं, क्योंकि कड़ी स्थितियों में खुद को ढालने का यह ज्ञान हजारों वर्षों से रहा है. हम देखते हैं कि इनमें से कौन से समाधान इस्तेमाल किए जा सकते हैं. फिर हम उन्हें एक साथ जोड़ते हैं. हमें सब कुछ फिर से शुरू नहीं करना पड़ता है.”

इसका मतलब, स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री, जैसे कि चूना पत्थर और बलुआ पत्थर के इस्तेमाल से है जो दीवारों के जरिए हवा को बहने देती हैं. ढांचे भी जमीन से थोड़ा ऊपर उठाकर बनाए गए जिससे गर्मी नीचे से सोखी न जा सके, अंदर आने के रास्तों पर अंधेरा रखा गया, रिफलेक्टिव छतें लगाई गईं और गर्मी रोककर रोशनी को अंदर आने देने के लिए तिरछी खिड़कियां और छाया देने वाले हिस्सों का इस्तेमाल किया गया.

बड़ी चुनौती है घरों को ठंडा बनाए रखना

अल बतूती ने कहा कि आर्किटेक्चर सेक्टर में नई सोच की जरूरत है, ताकि इमारतें शुरू से ही ठंडी रहने के लिहाज से डिजाइन की जा सकें. वह कहती हैं, "जितनी गर्मी बढ़ेगी, गर्मियां जितनी लंबी होंगी, उतना ही ज्यादा लोग एयर कंडिशनिंग जैसे समाधानों की ओर देखेंगे. हमें खुद ही आवासीय क्षेत्र से सवाल करना चाहिए कि क्या ये गर्मी से निजात दिलाने के लिए बनी हैं या नहीं?”

अल बतूती ने आगे कहा कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन जैसे वार्षिक कार्यक्रमों में भी गर्मी से निपटने में घरों की भूमिका पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए. वह कहती हैं, "हमें घरों को ठंडा बनाए रखने की जरूरत को एक अत्यन्त महत्वपूर्ण मुद्दे की तरह देखना होगा, जैसे कि अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा को देखते हैं. घरों में ठंडक बनाए रखना अगली सबसे बड़ी चुनौती है.”