फुटबॉलर मेहताब ने दिया बीजेपी को झटका
२४ जुलाई २०२०पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों से पहले अपने पैरों तले की जमीन मजबूत करने के मकसद से बीजेपी फिल्मकारों, कलाकारों, बुद्धिजीवियों और खिलाड़ियों को अपने पाले में खींचने का प्रयास कर रही है. उसे अपने मुहिम में कुछ हद तक कामयाबी भी मिली थी.
मेहताब ने बुधवार शाम को यह कहते हुए बीजेपी से इस्तीफा दे दिया कि वह अपने घरवालों और प्रशंसकों के विरोध की वजह से राजनीति से नाता तोड़ रहे हैं. हालांकि बीजेपी ने फुटबॉलर का फैसला रातोंरात बदलने के पीछे सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन तृणमूल नेतृत्व ने इन आरोपों को निराधार करार दिया है.
ऐसा क्या हुआ?
कोलकाता के ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसे मशहूर क्लबों के साथ ही भारतीय टीम के लिए खेल चुके मिडफील्डर मेहताब को मंगलवार को पार्टी का झंडा सौंप कर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने एक धमाका किया था. तब खेल से लेकर राजनीति तक तमाम हलकों में इस पर हैरत जताई गई थी. मेहताब जैसे राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी के साथ आने पर पार्टी की छवि तो सुधरती ही, अगले चुनावों के लिए उसे पार्टी का मुस्लिम चेहरा भी मिल गया था.
उसके बाद जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बुलावे पर घोष समेत पार्टी के तमाम शीर्ष नेता दिल्ली में थे, तो बुधवार को मेहताब ने अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए सबसे माफी मांगते हुए बीजेपी से इस्तीफा देने का एलान किया. उनका बीजेपी में शामिल होना जितना हैरत भरा रहा, इस्तीफा देने का फैसला उससे भी कहीं ज्यादा हैरत भरा रहा. सोशल मीडिया पर उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा मंगलवार शाम से ही थी. इस पर तमाम प्रतिक्रियाएं भी आ रही थीं.
इस्तीफा देने के अपने नाटकीय फैसले के बाद मेहताब ने कहा, "राजनीति में शामिल होना एक गलती थी. मेरे घरवाले और प्रशंसक इसके खिलाफ थे.” उन्होंने अपने इस्तीफे का एलान करते हुए सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट भी लिखी है. मेहताब ने लिखा, "अब मेरा किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई नाता नहीं है. मैंने आम लोगों की मदद के लिए बीजेपी का दमन थामा था. लेकिन उसके बाद तमाम लोग मुझसे राजनीति से दूर रहने का अनुरोध करने लगे. शायद फुटबॉलर के तौर पर मुझे पसंद करने वाले लोग मेरी राजनीतिक पहचान स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. इस गलती से मैंने सबक सीखा है और कुछ देर असमंजस में रहने के बाद मैंने बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला कर लिया.” उन्होंने साफ कर दिया है कि वे दूसरी किसी राजनीतिक पार्टी में नहीं जा रहे हैं.
लेकिन आखिर उन्होंने महज चौबीस घंटे के भीतर ही यह फैसला क्यों किया? इस पर मेहताब का कहना है कि उनके बीजेपी में शामिल होने की खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा हो गया. ज्यादातर लोग इस फैसले का विरोध कर रहे थे. पत्नी और दोनों पुत्रों ने भी इस फैसले का समर्थन नहीं किया.
मेहताब के इस फैसले के बाद भी खेल और राजनीतिक हलके में इस पर बहस तेज हो गई है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष आरोप लगाते हैं, "मेहताब ने तृणमूल कांग्रेस के दबाव में ही यह फैसला किया है. तृणमूल कांग्रेस पहले भी बीजेपी में शामिल होने के इच्छुक लोगों के साथ यह रणनीति अपना चुकी है. लेकिन वह लंबे समय तक अपनी बांह उमेठने की इस रणनीति में कामयाब नहीं हो सकती.” दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव बनर्जी ने बीजेपी के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा है कि पार्टी का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है.
जमीन मजबूत करने की कवायद
पश्चिम बंगाल में सत्ता पर अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए बीजेपी भी अब तृणमूल कांग्रेस के रास्ते पर चल रही है. तृणमूल कांग्रेस ने भी लेफ्टफ्रंट को सत्ता से हटाने के लिए पहले कलाकारों, फिल्मकारों और बुद्धिजीवियों को अपने साथ जोड़ा था. सिंगुर और नंदीग्राम की घटनाओं के खिलाफ बुद्धिजीवियों के समर्थन और जुलूस ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. उनके समर्थन से ही ममता के पक्ष में माहौल बना और 2011 के विधानसभा चुनावो में लेफ्ट को हरा कर वह भारी बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थीं. अब बीजेपी भी इसी फार्मूले को अपना रही है.
दो साल पहले हुए पंचायत चुनावों के बाद से ही उसने कलाकारों, फिल्मकारों और बुद्धिजीवियों को अपने साथ लेने की मुहिम चला रखी है. इस रणनीति के तहत अमित शाह और जेपी नड्डा समेत कई केंद्रीय नेता राज्य के कुछ बुद्धिजीवियों के सात बैठकें कर चुके हैं. बीते साल लोकसभा चुनावो में भारी कामयाबी के बाद पार्टी ने टॉलीवुड के नाम से मशहूर बांग्ला फिल्म उद्योग में सेंध लगाते हुए दो संगठन बनाए थे. उसी दौरान एक दर्जन से ज्यादा अभिनेता और कलाकार पार्टी में शामिल हुए थे.
बीजेपी ने लोकसभा चुनावों से पहले भी इसी फार्मूले पर बाबुल सुप्रियो, लाकेट चटर्जी और रूपा गांगुली समेत कई फिल्मी कलाकारों को अपने साथ लिया था. उसके बाद भी वह लगातार अपनी इस मुहिम को आगे बढ़ाने में जुटी थी. मेहताब को अपने खेमे में लाकर पार्टी अगले साल के चुनावों से पहले उसे बीजेपी का मुस्लिम चेहरा बनाना चाहती थी.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अमित शाह की वर्चुअल रैली से ही बंगाल में बीजेपी का चुनाव अभियान शुरू हो गया है. इसलिए उसने समाज के विभिन्न तबके के लोगों को अपने साथ जोड़ने की मुहिम तेज कर दी है. राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "दरअसल, बीजेपी तृणमूल कांग्रेस के हथियार से ही उसे मात देने की रणनीति पर चल रही है. इसलिए अगले साल के अहम चुनावों से पहले वह तमाम तबके के लोगों को जोड़ने का प्रयास कर रही है. इस कड़ी में मेहताब को साथ लेना उसके लिए एक बड़ी कामयाबी थी. लेकिन उसकी यह खुशी चौबीस घंटे भी नहीं टिकी. ऐसे में आगे से उसे पार्टी में लोगों को शामिल करने का फैसला काफी सोच-समझ कर करना होगा.” वह कहते हैं कि तृणमूल से बीजेपी में आए वरिष्ठ नेता मुकुल राय को ऐसे मामलों में महारत हासिल थी. लेकिन फिलहाल पार्टी में वह हाशिए पर हैं और तमाम चीजों की बागडोर प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के हाथों में आ गई है.
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