प्राचीन मशीन या मॉडर्न गैजेट है कंप्यूटर?
२६ जनवरी २०१२1837 में चार्ल्स बैबेज ने भाप से चलने वाले तांबे और इस्पात के एक इंजन का डिजाइन बनाया. बैबेज अपना "एनैलिटिकल इंजन" कभी बना नहीं पाए और उनकी खोज उनके वैज्ञानिक दस्तावेजों में कहीं लुप्त हो गई. 100 साल बाद ऐलन ट्यूरिंग ने नए युग के कंप्यूटरों के लिए वैज्ञानिक सिद्धांत बनाए, जिनको औपचारिक तौर पर कंप्यूटर और इंफरमेशन क्रांति की शुरुआत कहा जा सकता है. अगर ट्यूरिंग बैबेज के आविष्कार के बारे में जानते तो शायद इतनी मेहनत से बचा जा सकता था.
'प्राचीन मशीन'
बैबेज की मशीन के बारे में 20वीं शताब्दी के वैज्ञानिकों को कुछ नहीं पता था. लेकिन अब कंप्यूटरों के इतिहास के जानकार डोरोन स्वेड और जॉन ग्रैम कमिंग दोबारा एनैलिटिकल इंजन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. डॉयचे वेले से खास बातचीत में स्वेड ने कहा, "एनैलिटिकल इंजन में नए युग के डिजिटल इलैक्ट्रॉनिक कंप्यूटर जैसे सोचने की क्षमता है. लेकिन यह मैकेनिकल है, यानी यह एक प्राचीन किस्म की मशीन है."
ग्रैम कमिंग कहते हैं कि मशीन की अपनी एक मेमोरी है जो आजकल के कंप्यूटरों में सिलिकन की जगह तांबे की बनी है. इसकी सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट यानी सीपीयू की चिप पुराने जमाने की घड़ियों की तरह गोल चक्रों से बनी है. बैबेज की डिजाइन में हर एक पहिए को एक अंक दिया गया है और पहियों को एक के ऊपर एक रखा गया है. इससे एक अंक से लेकर 30 अंकों वाली लंबी संख्याओं को कंप्यूटर याद रख सकता है.
कंप्यूटर प्रोग्राम के लिए हाथीदांत या गत्ते में छोटे छोटे छेद किए जाते हैं और इसमें प्रिंटर लगाने की भी सुविधा है. ग्रैम कमिंग का कहना है कि इस इंजन की मेमोरी एक किलोबाइट तक की हो सकती है, यानी आज कल के लैपटॉप से 10 लाख गुना कम. बैबेज की मशीन में सीपीयू को "मिल" कहा गया है. अंकों को जोड़ने और घटाने के अलावा यह गणित के मुश्किल सवाल भी हल कर सकती है. ग्रैम कमिंग के मुताबिक जिस व्यक्ति को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का अनुभव है, वह आसानी से एनैलिटिकल इंजन पर काम कर सकता है.
प्लैन तैयार है
प्लैन 28 नाम का यह प्रोजेक्ट आने वाले हफ्तों में शुरू होगा. अब तक दोनों वैज्ञानिकों ने एक लाख 20 हजार यूरो जमा कर लिए हैं. उनका कहना है कि पूरे काम के लिए एक करोड़ 20 लाख यूरो लगेंगे और ज्यादातर निजी निवेशक इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं. पैसों के अलावा वैज्ञानिकों को और परेशानियां भी हैं.
एनैलिटिकल इंजन की डिजाइन पूरा नहीं है इसलिए ग्रैम कमिंग और स्वेड को सबसे पहले बैबेज की किताबों से पूरा डिजाइन निकाल कर बनाना होगा. फिर दोनों मिलकर एक मॉडल बनाएंगे और अगर यह सफल हुआ तो असली मशीन बनाई जा सकेगी. 10 साल में मशीन तैयार होने की उम्मीद है.
स्वेड और ग्रैम कमिंग इस परियोजना के तहत एक अहम सवाल का जवाब ढूंढ रहे हैं. सवाल है कि अगर बैबेज अपनी मशीन बनाने में कामयाब होते तो क्या 19वीं शताब्दी में ही कंप्यूटर क्रांति आ गई होती? या क्या आधुनिक कंप्यूटर वाकई आधुनिक युग में अमेरिका के सिलिकन वैली के वैज्ञानिकों की देन है?
रिपोर्टः मॉली गिनेस/एमजी
संपादनः ओ सिंह