वित्त मंत्री की फटकार में भी छिपी थी सियासत
१६ मार्च २०२०बैंकिंग संगठनों ने वित्त मंत्री के इस रवैये के लिए उनकी आलोचना की है. लेकिन नाक की इस लड़ाई में मजदूरों का अहम मुद्दा पृष्ठभमि पर जाता नजर आ रहा है. दरअसल वित्त मंत्री ने सार्वजिनक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक के शीर्ष अधिकारी को जिस तरह खरी-खोटी सुनाई, उसकी वजह यह नहीं है कि उनको मजदूरों की बहुत चिंता है. इसकी वजह अगले साल राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं.
चाय बागान मजदूरों के वोट खास कर ऊपरी असम की कई सीटों पर निर्णायक हैं. असम सरकार ने 2017 में राज्य के लगभग सात लाख से ज्यादा मजदूरों का खाता खुलवा कर उसमें पांच-पांच हजार रुपये जमा करने का एलान किया था. लेकिन बैंक अधिकारियों की कथित लापरवाही और जरूरी दस्तावेजों की कमी के चलते उन खातों को निष्क्रिय कर दिया गया था. उसी वजह से निर्मला सीतारमण ने सरेआम बैंक के अध्यक्ष को लताड़ा. इस आडियो क्लिप के वायरल होने के बाद जहां उनके दफ्तर ने सफाई दी है, वहीं बैंकिंग उद्योग से संबद्ध संगठनों ने वित्त मंत्री की टिप्पणी के लिए उनको आड़े हाथों लिया है.
असम सरकार ने 2017-18 के बजट में चाय बागान मजदूरों के लगभग 7.21 लाख ऐसे खातों में प्रोत्साहन के रूप में 5,000 रुपये जमा कराने की घोषणा की थी जो नोटबंदी के ठीक बाद खोले गए थे. सरकार ने पहले चरण में 26 जिलों में 752 बागानों के इन मजदूरों के खाते में ढाई-ढाई हजार रुपये जमा कराए थे. पहले चरण में इस योजना पर 182 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसकी दूसरी किस्त बीते साल यानी वर्ष 2019 की जनवरी में जमा कराई गई थी. लेकिन किसी नामालूम वजह से बैंक ने उन खातों में लेन-देन पर रोक लगा दी थी. इससे राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार में भारी नाराजगी थी. उसने इसकी शिकायत वित्त मंत्री से की जो गुवाहाटी में स्टेट बैंक की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंची थीं.
मंत्री की जो ऑडियो क्लिप वायरल हुई है उसमें वे स्टेट बैंक अध्यक्ष रजनीश कुमार को सरेआम कहती सुनाई देती हैं कि बैंक ने खासतौर पर असम के चाय बागान मजदूरों के वित्तीय समावेशन पर ठीक से ध्यान नहीं दिया और सरकार को नीचा दिखाया है. वित्त मंत्री ने एसबीआई को संवेदनहीन बैंक तक कह डाला. उनका आरोप था कि कर्ज बांटने में विफलता की पूरी जिम्मेदारी बैंक की है. इस कार्यक्रम में कई और बैंकों के अधिकारियों के अलावा राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.
कथित ऑडियो क्लिप में सीतारमण चाय बागान मजदूरों को कर्ज मिलने में हो रही मुश्किलों पर नाराजगी जताते हुए कह रही हैं, "मुझे यह मत बताइए कि आप सबसे बड़े बैंक हैं. आप बेरहम और अक्षम बैंक हैं." वह पूछती हैं कि इन खातों को कैसे शीघ्र चालू किया जा सकता है. इस पर एक बैंक अधिकारी को यह कहते हुए सुना जाता है कि इसके लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कुछ मंजूरी की जरूरत है और यह काम एक सप्ताह के भीतर किया जा सकता है. इस पर वित्त मंत्री बेहद सख्ती से कहती हैं कि वह लोग उनके धैर्य की परीक्षा न लें. सीतारमण का कहना था कि लगभग सात लाख से ज्यादा बागान कर्मचारियों के जनधन खातों तक उनकी पहुंच खत्म कर दी गई है. इसकी वजह से उनको डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का फायदा नहीं मिल पा रहा है.
दूसरी ओर, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन ने वित्त मंत्री की ओर से देश के सबसे बड़े बैंक के अध्यक्ष को सार्वजनिक रूप से फटकार लगाने पर कड़ी आपत्ति जताई है. संगठन ने अफने एक बयान में कहा है कि बैंक अध्यक्ष रजनीश कुमार को इस तरह सार्वजनिक रूप से फटकार लगाने की वह निंदा करता है, "जन प्रतिनिधि को संयम बरतना चाहिए और सरकारी बैंकों के किसी भी शीर्ष अधिकारी को सार्वजनिक रूप से नीचा नहीं दिखाना चाहिए." हालांकि बाद में संगठन ने अपना बयान वापस ले लिया.
उसी कार्यक्रम में मौजूद असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने अपने कई ट्वीट में असम के हाशिए पर खड़े लोगों का दर्द समझने के लिए सीतारमण का आभार व्यक्त किया था. असम का चाय उद्योग पहले ही बदहाली के दौर से गुजर रहा है. राज्य के कई चाय बागानों से मजदूरों को समय पर वेतन नहीं मिलने और राशन समेत दूसरी सुविधाओं से उनको वंचित रखने के आरोप सामने आते रहे हैं.
जन-धन खातों पर रोक की वजह से मजदूर ना अपना पैसा निकाल पा रहे हैं और न ही उनको बैंक से कर्ज मिल पा रहा है. सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत नकद रकम सीधे उनके खातो में ट्रांसफर करती रही है. लेकिन मजदूर उस रकम को निकाल नहीं पाते. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मजदूरों के मुद्दे पर स्टेट बैंक के अध्यक्ष को डांट पिला कर केंद्रीय वित्त मंत्री ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मजदूरों की नाराजगी दूर कर पार्टी के इस वोट बैंक को अटूट रखने का प्रयास किया है. लेकिन ऐसा कर उन्होंने बैंकिंग उद्योग की नाराजगी मोल ले ली है.
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