ट्रंप के टैरिफ से बंद होने की कगार पर भारतीय फाउंड्रीज
२२ अगस्त २०२५कोलकाता भारत की स्टील फाउंड्रीज यानी ढलाई कारखानों का एक प्रमुख केंद्र है और सैनिटरी कास्टिंग का निर्यात करता है. यहां अब इस उद्योग में काम कम होता जा रहा है. कई कारखाने बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं या बंद हो गए हैं. कारोबार मालिक निजी तौर पर तो इस संकट की चर्चा करते हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से ज्यादा कुछ कहने से बचते हैं. वहीं, कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं. उन्हें डर सता रहा है कि कहीं किसी दिन वे बेरोजगार तो नहीं हो जाएंगे.
हालांकि, कुछ कारोबारी अब इस संकट पर खुलकर बोलने लगे हैं. कलकत्ता आयरन उद्योग के मालिक विजय शंकर बेरीवाल इस संकट के लिए, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की ओर से स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए 50 फीसदी आयात शुल्क को जिम्मेदार ठहराते हैं. यह शुल्क जून में लागू हुआ था.
ट्रंप ने इस कदम के लिए 1962 के अमेरिकी व्यापार विस्तार अधिनियम की धारा 232 के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं का हवाला दिया था. स्टील पर शुल्क के अलावा, ट्रंप ने ज्यादातर भारतीय वस्तुओं पर 25 फीसदी का ‘पारस्परिक शुल्क' भी लगाया है. रूसी तेल खरीदने के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर अतिरिक्त 25 फीसदी शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा है, जो इस महीने के अंत से लागू हो सकता है.
भारत के प्रति सख्त, लेकिन चीन के प्रति उदार क्यों हैं ट्रंप?
बेरीवाल कहते हैं, "अभी बाजार पर इसका पूरा असर नहीं पड़ा है, लेकिन दबाव दिखने लगा है. जिनके पास पहले से ही अमेरिका से ऑर्डर है, वे तेजी से काम पूरा कर रहे हैं और जल्द से जल्द ऑर्डर की डिलीवरी करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन नए ऑर्डर कम मिल रहे हैं या मिलने बंद हो गए हैं. कई फाउंड्रीज में काम बंद हो गया है.”
ट्रंप की संरक्षणवादी व्यापार नीतियों के तहत, स्टील और एल्युमीनियम पर लगाए गए 50 फीसदी शुल्क से पूर्वी भारत की निर्यात-आधारित फाउंड्रीज और छोटे-मझोले उद्योगों (एमएसएमई) पर गहरा असर पड़ रहा है. ये उद्योग अमेरिकी बाजार पर काफी हद तक निर्भर हैं. इतना ज्यादा शुल्क उनके कारोबार को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. ये उद्योग गंभीर खतरे में आ गए हैं.
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने पिछले वर्ष अमेरिका को 4.56 अरब डॉलर के लोहा, स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों का निर्यात किया था. इसमें 58.75 करोड़ डॉलर का लोहा और स्टील, 3.1 अरब डॉलर के लौह या स्टील उत्पाद और 86 करोड़ डॉलर के एल्युमीनियम उत्पाद शामिल हैं. यह भारत से अमेरिका को किए गए कुल 86.51 अरब डॉलर के निर्यात का लगभग 5.3 फीसदी हिस्सा है.
छोटी फाउंड्रीज को बड़ा झटका
इनकी हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम होते हुए भी भारत के फाउंड्री सेक्टर में इनका योगदान काफी अहम माना जाता है. इस सेक्टर में 5,000 से ज्यादा कारखानों में 2 लाख से अधिक लोग काम करते हैं. इनमें से 95 फीसदी से ज्यादा कारखाने लघु उद्योग की श्रेणी में आते हैं.
क्या लागू होकर रहेगा भारत पर लगा 25 पर्सेंट अतिरिक्त टैरिफ?
इसके अलावा, पूर्वी भारत का फाउंड्री उद्योग, महाराष्ट्र या तमिलनाडु के फाउंड्री उद्योग से अलग है. जहां महाराष्ट्र और तमिलनाडु में फाउंड्रीज घरेलू ऑटोमोटिव और निर्माण बाजार की मांगों को पूरा करती हैं, वहीं पूर्वी भारत की फाउंड्रीज मुख्य रूप से निर्यात के लिए उत्पाद बनाती हैं. यही कारण है कि अमेरिकी शुल्क जैसे व्यापारिक झटकों से उन पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है.
भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्टील और एल्युमीनियम पर टैरिफ के असर को कम करके आंका है. उनका तर्क है कि अमेरिका को भारत से स्टील और एल्युमीनियम का निर्यात बहुत कम होता है. बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "अगर आप 14.5 करोड़ टन में से 95,000 टन निर्यात नहीं कर पा रहे हैं, तो इससे क्या फर्क पड़ता है?”
चीनी स्टील की डंपिंग का असर
निर्यात के ऑर्डर कम होने से, कंपनियां अपना सारा माल भारत के बाजार में ही बेच रही हैं. इससे बाजार में बहुत ज्यादा सामान आ गया है और प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है.
कोलकाता स्थित इंडस्ट्रियल कास्टिंग कॉर्पोरेशन के मालिक आर.के. दमानी कहते हैं, "कुछ ग्राहक कीमतों में 5 फीसदी कटौती की मांग कर रहे हैं. वहीं, कुछ उधार पर सामान लेने की बात कर रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (एफआईईओ) का अनुमान है कि अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले स्टील में 85 फीसदी तक की कमी आ सकती है. इसका मतलब है कि भारत में बहुत ज्यादा स्टील जमा हो जाएगा. देश में स्टील की कीमतें 6 से 8 फीसदी तक कम हो सकती हैं. इससे छोटे और मझोले उद्योगों के लिए पैसा कमाना और भी मुश्किल हो जाएगा. उनका मुनाफा काफी कम हो जाएगा.
एफआईईओ के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा, "शुल्क के बाद, बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाएगी. बाजार में वही टिकेगा जो कम कीमत पर सामान बेचेगा. चीन जैसे देश बहुत कम कीमत पर सामान बेच सकते हैं. भारतीय छोटे और मझोले उद्योग शायद उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे.”
हालांकि, उनका बयान मुख्य रूप से कपड़ा जैसे क्षेत्रों के बारे में है, लेकिन स्टील क्षेत्र को भी इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह यह है कि चीन कम लागत वाले स्टील भारत में भेज सकता है और इससे छोटे उत्पादकों के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
इंडियन स्टेनलेस स्टील डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईएसएसडीए) का कहना है कि वित्त वर्ष 2023-24 से भारत तैयार स्टील का शुद्ध आयातक बन गया है, यानी वह शुद्ध स्टील का जितना निर्यात कर रहा है उससे ज्यादा आयात कर रहा है. 2021 से 2024 के बीच स्टील के आयात में काफी तेजी आई है, जिसमें से ज्यादातर आयात चीन से हो रहा है.
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव कहते हैं, "स्टील निर्यात की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सभी विकसित देश बाजार बंद कर रहे हैं. यूरोपीय संघ 2018 से ही शुल्क वसूल रहा है. जनवरी 2026 से वह कार्बन बॉर्डर अडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) लागू करने जा रहा है.”
सरकारी हस्तक्षेप
यूरोपीय संघ की ओर से लगाए गए शुल्कों की वजह से भारत का स्टील और एल्युमीनियम निर्यात पहले से ही दबाव में है. अब ज्यादा कार्बन उत्सर्जन वाले उत्पादों के आयात पर लगाए जाने वाले सीबीएएम यानी कार्बन टैक्स से भारत की प्रतिस्पर्धा क्षमता और कमजोर हो सकती है. इससे भारतीय कारोबारियों के लिए बाजार में बने रहना मुश्किल हो जाएगा.
भारत का फाउंड्री सेक्टर ज्यादातर छोटी कंपनियों से मिलकर बना है, जिनका मुनाफा पहले ही बहुत कम होता है. अब 50 फीसदी शुल्क की वजह से अमेरिकी बाजार से ऑर्डर लेना महंगा और घाटे का सौदा हो गया है. दूसरी ओर, इन कंपनियों के पास इतना समय और पूंजी नहीं है कि वे तुरंत अपने निर्यात को मध्य-पूर्व या दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे नए बाजारों की ओर मोड़ सकें.
भारतीय सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए कई मोर्चों पर काम कर रही है. वाणिज्य मंत्रालय अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहा है, ताकि शुल्क कम किए जा सकें. वहीं, एमएसएमई सेक्टर को सहारा देने के लिए ब्याज पर सब्सिडी, लोन गारंटी और सर्टिफिकेशन फीस में कमी जैसे कदमों पर विचार किया जा रहा है.
साथ ही, डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज (डीजीटीआर) ने चीनी डंपिंग से घरेलू बाजार को बचाने के लिए स्टील के कुछ उत्पादों पर 12 फीसदी सुरक्षा शुल्क (सेफगार्ड ड्यूटी) लगाने का प्रस्ताव भी रखा है.
कलकत्ता लौह उद्योग के मालिक बेरीवाल को उम्मीद है कि सरकार फाउंड्रीज को बचाने के लिए हस्तक्षेप करेगी. उन्होंने कहा, "इस उद्योग को बचाने के लिए सरकार से तत्काल कुछ मदद की जरूरत है. हम सरकार के पास एक प्रस्ताव लेकर जाएंगे, लेकिन अभी हम इंतजार कर रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति आगे क्या कदम उठाते हैं.”
इस बीच, उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर सरकार ने जल्द कुछ नहीं किया, तो 2026 की शुरुआत तक एमएसएमई में छंटनी शुरू हो सकती है और कंपनियां बंद होनी शुरू हो सकती हैं.