खिलाड़ियों की अबूझ बीमारी को पहचानने की कोशिश
१९ नवम्बर २०११क्रॉनिक ट्रॉमैटिक एंकेफेलोपैथी (सीटीई) नाम की यह बीमारी हो जाती है तो भी पता नहीं चलता. इसका पता मृत्यु के बाद मस्तिष्क की जांच से ही पता चल पाता हो. बोस्टन यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों ने 70 से ज्यादा पूर्व खिलाड़ियों के मस्तिष्क का अध्ययन किया है. अब वे जिंदा एथलीटों पर अध्ययन शुरू कर रहे हैं. यूनिवर्सिटी का सेंटर फॉर स्टडी ऑफ ट्रॉमैटिक एंकेफेलोपैथी के सह निदेशक रॉबर्ट स्टर्न ने बताया कि इसके लिए 50 रिटायर खिलाड़ियों को बाकायदा नौकरी पर रखा जाएगा. बीते बुधवार और गुरुवार को पहली खिलाड़ी की जांच पूरी भी कर ली गई.
खोज जरूरी
स्टर्न कहते हैं कि जब तक सीटीई को मरीज के जिंदा रहते पहचान लेने की युक्ति नहीं खोजी जाएगी, इसे ठीक करने के लिए दवाई भी नहीं बनाई जा सकती. वह कहते हैं, "हमें इस बीमारी पर जवाब चाहिए. और फौरन चाहिए."
सेंटर के सह महानिदेशक डॉ. एन मैकी 50 से ज्यादा पूर्व एथलीटों में सीटीई पा चुकी हैं. पिछले एक साल में इस सूची में नेशनल फुटबॉल लीग के डेव डुएरसन और नेशनल हॉकी लीग के रिक मार्टिन जैसे सितारों के नाम शामिल हो चुके हैं. सीटीई ऐसी बीमारी है जिसमें यादाश्त खो जाना, फैसले न कर पाना, अवसाद जैसे लक्षण नजर आते हैं और यह बीमारी बढ़ते बढ़ते डिमेंशिया तक भी ले जाती है.
अब जो रिसर्च हो रही है वह सीटीई पर अपनी तरह की पहली रिसर्च है. इसे नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ की तरफ से पैसा मिल रहा है. इसके लिए अलग अलग तरह की जांच के लिए खिलाड़ियों को बोस्टन लाया गया. पहले दिन लगभग दो घंटे तक उनके मस्तिष्क की तस्वीरें ली गईं. दूसरे दिन उन्हें एक लंबे मनोवैज्ञानिक इंटरव्यू से गुजरना पड़ा. फिर उनके स्नायुतंत्र और रक्त की जांच हुई.
खेल का असर
नेशनल फुटबॉल लीग के खिलाड़ियों को बहुत आक्रामक होना पड़ता है. जांच के लिए जिन खिलाड़ियों को बुलाया गया है. वे 40 से 69 साल के बीच के हैं. उन सभी में सीटीई के लक्षण पाए जाते हैं. और उन सभी का लंबा फुटबॉल करियर रहा है.
सीटीई के साथ समस्या यह है कि लक्षणों का बार बार दिखाई देना जरूरी नहीं होता. कई बार वे होते हैं और कई बार नहीं होते. इसलिए खिलाड़ियों को पता भी नहीं चलता.
एनएफएल के खिलाड़ियों की यूनियन भी जानती है कि यह समस्या कितनी गंभीर है. इसलिए वे रिसर्च करने में वैज्ञानिकों की मदद कर रहे हैं. स्टर्न कहते हैं कि लोग समस्या को समझ रहे हैं. उन्होंने बताया, "ऐसा लगता है कि पूर्व खिलाड़ी अपने लिए तो कुछ करना चाहते ही हैं, साथ ही वे चाहते हैं कि रिसर्च तेजी से आगे बढ़े ताकि भविष्य में औरों की भी मदद हो सके."
रिपोर्टः एपी/वी कुमार
संपादनः एन रंजन