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क्रिकेट की हवा में बह गए राष्ट्रीय खेल

१ मार्च २०११

अधिकारी और खिलाडी शिकायत करते है कि क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण भारत में बाकी खेलों को प्रोत्साहन नहीं मिलता. लेकिन झारखंड में राष्ट्रीय खेलों के चर्चा से दूर होने और बड़े खिलाड़ियों के हिस्सा न लेने की और वजह भी थीं.

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तस्वीर: AP

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इन खेलों की बदहाली के जिम्मेदार खेलों को चलाने वाले संघ और उनके अधिकारी ही हैं. इसकी मिसाल है शनिवार को झारखण्ड में सम्पन्न हुए 34वें राष्ट्रीय खेल.

पांच बार टाले गए खेल किसी तरह हुए तो लेकिन उन्हें महज खाना पूरी ही कहा जाएगा. एक तो कॉमनवेल्थ गेम्स और कुआन्ग्चो एशियन गेम्स में भाग लेने के बाद खिलाडी थोडा आराम चाहते थे. इसलिए अधिकतर बड़े नामों ने खेलों में हिस्सा नहीं लिया.

दूसरा क्रिकेट वर्ल्ड के समय क्या कोई भी खेल भारत में सफल हो सकता है? भारतीय ओलंपिक संघ ने इस दलील को दरकिनार करते हुए झारखंड में खेलों का आयोजन किया. ऐसे में खेलों का पूरी तरह सफल होना नामुमकिन था.

किसी भी देश में राष्ट्रीय खेल इसलिए भी होते हैं कि विद्यार्थी और उभरते खिलाडी देश के टॉप के खिलाड़ियों से प्रोत्साहन लें. लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं हो सका. उत्तर प्रदेश की प्रियंका सिंह ने 3000 मीटर स्टीपलचेज इवेंट में गोल्ड मेडल जीता तो लेकिन एशियन गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट सुधा सिंह की गैरमौजूदगी में. उत्तर प्रदेश की गोल्ड मेडल जीतने वाली प्रियंका सिंह ने इस बात को माना भी.

पुरषों के हैमर थ्रो में भी हरविंदर सिंह ने फीके प्रदर्शन के साथ स्वर्ण पदक जीता. और भी स्पर्धाओं में ऐसा ही हुआ. ऐसे में क्या राष्ट्रीय खेल सही मायने में राष्ट्रीय खेल कहे जा सकते हैं?

जो कुछ झारखण्ड में हुआ उसकी भी मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं हुई. समाचार पत्रों में तो खेलों को कुछ जगह मिली भी जबकि निजी टीवी चैनल में तो उनका नामोनिशान नहीं था. भारतीय ओलंपिक संघ अगर समझ से काम लेता तो निश्चय ही खेलों को करवेज मिलती. आयोजक और ओलंपिक संघ इसी में खुश थे की उत्तर-पूर्व से खिलाडियों ने खेलों में हिस्सा लिया. लेकिन वो इस पर कुछ नहीं बोले की टॉप के खिलाडी क्यों नहीं आए.

मजे की बात यह है की ओलंपिक संघ ने झारखंड खेलों से सबक नहीं लिया. संघ ने फैंसला किया है कि अगले राष्ट्रीय खेल केरल में दिसंबर में साल 2012 में होंगे.

ध्यान रखने की बात यह है की अगले साल लन्दन में अगस्त-सितम्बर में ओलंपिक खेल हैं और इन खेलों में भाग लेने के बाद एक बार फिर टॉप खिलाडी केरल में हिस्सा नहीं लेंगे और इन खेलों का हश्र भी झारखंड खेलों जैसा होगा. ऐसे में क्या इन खेलों की बदहाली के लिए क्रिकेट को दोषी ठराया जा सकता है?

यह बात सही है की खेलों के बहाने झारखंड में बुनियादी खेल सुविधाएं तो बन गईं, लेकिन दिशा निर्देशन के अभाव में क्या उनका सदुपयोग हो सकेगा? हां, यह जरूर है कि झारखंडवासियों ने खेलों में भरपूर लुत्फ उठाया. रांची के बिरसा मुंडा स्टेडियम में हजारों दर्शको ने रोज हॉकी के मैच देखे.

रिपोर्ट: नौरिस प्रीतम, दिल्ली

संपादन: एस गौड़