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क्या फुटबॉल ला सकता है दुश्मनों को नज़दीक ?

७ सितम्बर २००८

तुर्की के राष्ट्रपति अब्दुल्लाह ग्युल पड़ोसी देश आर्मेनिया की यात्रा करने वाले पहले तुर्की नेता बन गए हैं. वे वहां एक फुटबॉल मैच देखने गए हैं लेकिन क्या इससे बरसों पुरानी दुश्मनी दोस्ती में बदल सकती हैं?

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तुर्की राष्ट्रपति ग्युल के पड़ोसियों की तरफ बढ़ते क़दमतस्वीर: AP

1991 में आर्मेनिया की आज़ादी की घोषणा के बाद, पहली बार तुर्की के किसी नेता ने पड़ोसी देश में क़दम रखा है. दोनों देशों के बीच 1993 से कोई कूटनीतिक संबंध नहीं हैं और सीमाएं भी बंद हैं.

असल में अब्दुल्लाह ग्युल तुर्की और आर्मेनिया के बीच पहली बार हो रहा फुटबॉल मैच देखने गए. यूरोपीय संघ के अध्यक्ष और फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सार्कोज़ ने ग्युल की यात्रा को एक "बहादुर" और "ऐतिहासिक" घटना बताया है.

आर्मेनियाई जनता का विरोध

आर्मेनिया में पड़ोसी नेता का स्वागत तो हुआ मगर तुर्की के खिलाफ नारों और प्रदर्शनों के साथ. हज़ारों आर्मेनियाई लोगों ने राजधानी येरेवान की सड़कों पर उतर कर तुर्की से क़रीब 100 साल पहले हुए जनसंहार को क़ुबूल करने की मांग की.

Türkei Armenien Präsident Abdullah Gül besuchr armenische Ruine
आर्मेनिया के प्राचीन खंडर देखने गए, ग्युलतस्वीर: AP

इतिहासकारों का अनुमान है कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमान-तुर्क साम्राज्य के समय 15 लाख आर्मेनियाई लोगों को मारा गया था. कई लोग इसे 20 वीं सदी का पहला जनसंहार भी कहते हैं. तुर्की मानता है कि हत्याएं हुईं थीं लेकिन इतनी नहीं कि उसे जनसंहार कहा जाए क्योंकि मृतकों की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. साथ ही अज़रबाइजान के नागोर्नो-काराबाख इलाक़े पर आर्मेनिया के क़ब्जे़ को लेकर भी दोनों देशों के बीच संबंध खराब रहे हैं. अज़रबाइजान तुर्की का सहयोगी देश है.

तुर्की की भूमिका पर दुनिया की नज़र

अंकारा से प्रस्थान करते समय ग्युल ने उम्मीद जताई थी कि फुटबॉल मैच के ज़रिये दोनों देशों वर्षों से खड़ी दीवारें गिर जाएंगी. तुर्की में भी इस यात्रा के बाद बड़े स्तर पर बरस शुरू हो गई है. कुछ राष्ट्रवादी कह रहे हैं कि आर्मेनिया के राष्ट्रपति सैर्ज़ सार्गस्यान का न्योता स्वीकार करके राष्ट्रपति ने देश के साथ धोखा किया है.

शीत युद्ध के बाद से तुर्की अपने शत्रु देशों के साथ रिश्ते बेहतर बनाते आया है. चाहे ग्रीस हो, बुल्गारिया हो या फिर सीरिया. केवल आर्मेनिया के साथ संबंध बेहतर नहीं हो पाए हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि इस समय कॉकेशस विवाद के चलते तुर्की अपनी भूमिका में विस्तार करना चाहता है. रूस द्वारा जॉर्जिया के पृथकतावादी प्रांतों दक्षिण ओसेतिया और अबखासिया को आज़ादी की मान्यता दिये जाने से तुर्की के लिए भी मुश्किलें बढ़ी हैं. उसे डर है कि देश के कुर्द पृथकतावाद इससे प्रेरित होंगे. इसके चलते तुर्की ने अपनी तरफ से कॉकेशियस में स्थिरता लाने के लिए एक प्रस्ताव भी पेश किया है जिसमें रूस, जॉर्जिया, अज़रबाइजान और आर्मेनिया शामिल हैं.