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कौन हैं राजा सुहेलदेव जिन पर कई अधिकार जता रहे हैं

समीरात्मज मिश्र
१६ फ़रवरी २०२१

यूपी में प्रधानमंत्री मोदी ने राजा सुहेलदेव स्मारक का वर्चुअल शिलान्यास किया और वहां कई अन्य परियोजनाओं की घोषणा की. माना जाता है कि राजा सुहेलदेव ने बहराइच और श्रावस्ती के पास के इलाकों में 11वीं सदी में राज्य किया.

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Indien Kalkutta | Narendra Modi
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images

बहराइच जिले में सैयद सालार मसूद गाजी की समाधि पर हर साल लाखों लोग आते हैं. माना जाता है कि सालार मसूद गाजी का राजा सुहेलदेव से युद्ध हुआ और सालार मसूद गाजी इस युद्ध में मारे गए. उसके बाद उनकी समाधि बनाई गई. दिलचस्प बात यह है कि इस समाधि पर मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं की आस्था है और पूर्वी यूपी के तमाम जिलों से लोग यहां पहुंचते हैं. राजा सुहेलदेव के बारे में इतिहास के पन्नों में बहुत कम जानकारी मिलती है लेकिन लोककथाओं के जरिए उनका इतिहास लोगों की जबान पर है. यूपी सरकार राजा सुहेलदेव को सुहेलदेव राजभर के तौर पर प्रचारित कर रही है लेकिन राजपूत समुदाय को इस बात पर आपत्ति है और इसके खिलाफ राजपूत समुदाय के लोगों ने सोशल मीडिया पर बीजेपी सरकार के खिलाफ एक अभियान भी चलाया है.

यही नहीं, इससे पहले सुहेलदेव को पासी समुदाय के नायक के तौर पर पेश किया गया लेकिन अब राजभर समाज उन्हें अपना नायक बता रहा है. राजपूत समाज को इस बात पर आपत्ति है कि उनके नायक को किसी अन्य जाति को क्यों सौंपा जा रहा है. रविवार को इस बारे में ट्विटर पर राजपूत_विरोधी_भाजपा नाम से हैश टैग को ट्रेंड कराया गया और इस हैश टैग से करीब 54 हजार ट्वीट किए गए.

दरअसल, पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समाज की भागीदारी करीब 18 फीसद है और राज्य की करीब साठ विधानसभा सीटों पर इनका प्रभाव है. जातीय प्रतीकों को उभारकर उनके राजनीतिक इस्तेमाल की शुरुआत यूपी की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी ने की और दलित-पिछड़े जातियों के प्रतीकों के जरिए उन जातियों को पार्टी से जोड़ा गया. सुहेलदेव के नाम से यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी है जिसके अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर कभी बहुजन समाज पार्टी में थे लेकिन साल 2002 में उन्होंने अलग पार्टी बनाई और बाद में भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया.

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ओमप्रकाश राजभर ने एनडीए छोड़ दिया और अब भारतीय जनता पार्टी सीधे तौर पर राजभर समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने में लगी है. ओम प्रकाश राजभर कहते हैं, "सुहेलदेव के नाम का बीजेपी राजनीतिक इस्तेमाल करना चाहती है लेकिन राजभर समाज को पता है कि उनका असली हितैषी कौन है. हमारा समाज बीजेपी के झांसे में नहीं आना वाला है.”

राजभर उत्तर प्रदेश की उन अति पिछड़ी जातियों में से हैं जो लंबे समय से अनुसूचित जाति में शामिल होने की मांग कर रहे हैं. समाजशास्त्री बद्री नारायण कहते हैं कि 1960 के दशक में बहराइच और इसके आस-पास के जिलों के नेताओं ने पासी समाज को आकर्षित करने के मकसद से सुहेलदेव को महान पासी राजा के रूप में चित्रित करना शुरू किया. उनके मुताबिक, दलित समाज ने भी सुहेलदेव पर दावा ठोंकते हुए उन्हें गर्व भरी निगाह से देखना शुरू किया. बाद में बहुजन समाज पार्टी ने इन सामाजिक प्रतीकों का राजनीतिक लाभ लिया और अब बीजेपी वही कर रही है.

वहीं राजपूत समाज का मानना है कि राजा होते हुए सुहेलदेव पिछड़े या फिर दलित कैसे हो सकते हैं. जहां तक ऐतिहासिक दस्तावेजों की बात है तो राजा सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी न के बराबर है. ऐसा माना जाता है कि 11 वीं सदी में महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण के वक्त सालार मसूद गाजी ने बहराइच पर आक्रमण किया लेकिन किसी भी समसामयिक इतिहासकार ने न तो राजा सुहेलदेव का कोई जिक्र किया है और न ही सालार मसूद गाजी का.

सालार मसूद गाजी और राजा सुहेलदेव के बीच हुए युद्ध की कहानी 17वीं सदी में लिखी गई किताब मिरात-ए-मसूदी में मिलती है लेकिन यहां भी सालार मसूद के बारे में ही जानकारी ज्यादा है, राजा सुहेलदेव के बारे में नहीं. इतिहासकार इसलिए भी राजा सुहेलदेव को ऐतिहासिक पात्र नहीं मानते क्योंकि उनके नाम का न तो अब तक कोई सिक्का मिला है और न ही कोई अभिलेख. यहां तक कि उतबी और अलबरूनी जैसे महमूद गजनवी के समकालीन इतिहासकारों ने भी इनका जिक्र नहीं किया है, जबकि मिरात-ए-मसूदी में सालार मसूद को महमूद गजनवी का भांजा बताया गया है.

सुहेलदेव की ऐतिहासिकता भले ही संदिग्ध हो लेकिन राजनीतिक कारणों से उनकी जाति को लेकर कई जाति समूह दावा जता चुके हैं. बाद के लेखकों और ब्रिटिशकालीन गजेटियर में सुहेलदेव को भर, राजभर, बैस राजपूत और नागवंशी क्षत्रिय तक बताया है. शायद इसी आधार पर क्षत्रिय समाज उन्हें अपना मानता है जबकि राजभर समाज अपना.

राजपूत करणी सेना के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह रघुवंशी ने तो बाकायदा चुनौती देते हुए कहा है कि सरकार की इन कोशिशों के विरोध में क्षत्रिय समाज जल्दी ही सड़कों पर उतरेगा. वहीं ओमप्रकाश राजभर कहते हैं कि बीजेपी की यह नीति एक ही समाज के भीतर लोगों को बांटने वाली है. जबकि बीजेपी का कहना है कि वो तो इतिहास के गुमनाम पात्रों को उनकी वो जगह दिलाने की कोशिश में है, जो उन्हें नहीं मिल सकी है.

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