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कुवैत की किस्मत की चाबी महिलाओं के पास

प्रिया एसेलबोर्न२२ मई २००९

भारत की आधी आबादी एक तिहाई राजनीतिक हक़ के लिए साठ साल से संघर्ष कर रही है लेकिन छोटे से देश क़ुवैत ने सिर्फ़ मिसाल क़ायम कर दी है. वोट पाने के अधिकार के चार साल के अंदर कुवैत की औरतों को संसद की चाबी मिल गई.

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बड़े फ़ैसलों में साझीदार होंगी महिलाएं

अब महिलाएं पूरे उत्साह के साथ देश के बड़े फ़ैसलों में साझीदार होने रही हैं. जिस वक्त दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में दुनिया का सबसे लंबा चुनाव चल रहा था, उसी वक्त एशिया के ही छोटे से देश क़ुवैत के लोग भी वोट डाल रहे थे. दुनिया की नज़रों से दूर. चौंकाने वाले चुनाव नतीजे सिर्फ़ भारत में ही नहीं, क़ुवैत से भी आए. एक मुस्लिम अरब देश में पहली बार जनता ने महिलाओं को अपना नेता चुना.

Kuwait Wahlen Wahlurne
पहले सिर्फ़ पुरूषों को वोट डालने का अधिकार थातस्वीर: AP

मुस्लिम रूढ़ीवादी नियमों में जकड़ा क़ुवैत ऐसा देश माना जाता रहा है, जिसमें पहले औरतों को वोट डालने तक का अधिकार नहीं था. उन्हें यह हक़ मिला सिर्फ़ चार साल पहले, 2005 में. और इसके बाद हुए दूसरे चुनाव में ही उन्होंने अपनी ताक़त दिखा दी. क़ुवैत की महिला कार्यकर्ता रोला दशती कहती हैं कि यह देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूत बनाने का माध्यम है. महिलाओं का राजनीति में शामिल होना देश के लिए नई उम्मीद है. निर्णय लेने की क्षमता के साथ बदलाव शुरू होता है.

क़ुवैत में हाल के दिनों में काफ़ी बदलाव आया है. घर के अंदर भी अलग तरह की बहस होने लगी है. पहले महिलाएं ख़ुद भी राजनीति से दूर रहती थीं और परिवार के पुरुष सदस्य भी उन्हें इसमें नहीं शामिल करना चाहते थे. लेकिन अब हालात दूसरे हैं. राजनीति पर बहस भी हो रही है और महिलाएं इसमें शामिल भी हो रही हैं. क़ुवैत में इससे पहले दो बार 2006 और 2008 में भी चुनाव हुए लेकिन कोई सरकार नहीं बन पाई. इसके बाद राजनीतिक उथल पुथल के बीच 16 मई को फिर चुनाव हुए. उसी दिन जिस दिन भारत में चुनाव के नतीजे आए.

18.07.2006 projekt zukunft fragezeichen
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यूं तो कुवैत की 54 फ़ीसदी वोटर महिलाएं हैं लेकिन 210 उम्मीदवारों के बीच 16 महिलाओं ने चुनावी मैदान में उतरने की हिम्मत दिखाई. राजनीतिशास्त्री हाईला अल मेकाईमी को अफसोस है कि पहले महिलाओं ने महिलाओं को वोट नहीं दिया. लेकिन इस बार सोच बदली. महिलाओं ने बहुत कम संख्या में महिलाओं को वोट दिया. महिलाओं का समर्थन ज्यादातर पुरुष ही करते थे. राजनीति में सक्रिय महिलाओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा. यह साबित करने में कि वह पुरुषों जैसे या उनसे कई मामलों में बेहतर तरीके से भी इस ज़िम्मेदारी को निभाने के लायक हैं.

राजनीतिशास्त्री अल मेकाईमी का कहना है कि कुवैत में दो तरह की विचारधारा एक साथ चल रही है. एक तो रूढ़ीवादी विचार वाले, जो जाति और परंपरा के नाम पर समझते हैं कि विकास का काम सिर्फ़ पुरुष ही कर सकते हैं. कई संगठनों ने तो महिला उम्मीदवारों को वोट न डालने की अपील तक कर डाली थी. वैसे दूसरा वर्ग उन लोगों का है, जो कुवैत को दुनिया के सबसे खुले और आधुनिक देशों में से एक बनाता है. इस चुनाव ने तो उसे महिला अधिकारों के लिए भी रोल मॉडल की तरह पेश किया है.