किसान की बेटी कश्मीर की पहली मुस्लिम महिला आईएएस
१५ मई २०११लद्दाख क्षेत्र के सुदूर गांव चाछूट की रहने वालीं इकबाल इस साल जम्मू कश्मीर से चुने गए सात आईएएस उम्मीदवारों में एक हैं. 25 साल की इकबाल के लिए यह सफर आसान नहीं रहा. किसान पिता की बेटी का लद्दाख में पैदा होना भी राह की बड़ी बाधा बनी. यह इलाका साल में छह महीने भयानक ठंढ की चपेट में रहता है और दूर दूर तक बर्फ के अलावा और कुछ नजर नहीं आता. इस दौरान पूरी दुनिया का संपर्क इस इलाके से कट जाता है.
आराम नहीं मेहनत चुनी
चंडीगढ़ के कॉलेज से केमिकल इंजिनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद ओवैसा के पास क्लास के दूसरे सहपाठियों की तरह इंजिनियरिंग या मैनेजमेंट के शानदार करियर का विकल्प था. लेकिन वह अपने लोगों की दुनिया बदलना चाहती हैं, इसलिए नागरिक सेवा का रास्ता चुना. ओवैसा कहती हैं, "मेरे पास एमबीए या इंजीनियरिंग का रास्ता था. मेरे दोस्त अक्सर उन लोगों को मिलने वाले शानदार वेतन और सुविधाओं की चर्चा करते. लेकिन मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी. मैं कुछ अलग करना चाहती थी और मैंने सिविल सर्विस के लिए मन बना लिया."
2008 में आईएएस परीक्षा पास करने की उनकी पहली कोशिश बुरी तरह नाकाम रही. वह प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर सकीं. उसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत की और दूसरी बार मुख्य परीक्षा में शामिल हुईं. लेकिन आखिरी बाधा वह पार न कर सकीं और एक बार फिर नाकामी मिली. इसी दौरान ओवैसा ने कश्मीर प्रशासनिक सर्विस केएएस की परीक्षा दी और सफलता हासिल की.
रुके नहीं कदम
लेकिन वह वहीं नहीं रुकना चाहती थीं. उन्होंने अगले साल आईएएस की परीक्षा का तीसरी बार सामना किया और इस बार कामयाबी को उनके कदम चूमने ही पड़े.
अपनी कामयाबी का श्रेय वह अपने परिवार को देती हैं जिनके सहयोग के बिना उनके लिए इसे हासिल कर पाना मुमकिन नहीं था. वह चाहती हैं कि कश्मीरी युवा सफल उम्मीदवारों की राह पर चलें और उस अन्याय को खत्म करें जिसका उन्हें लगातार सामना करना पड़ रहा है. ओवैसा कहती हैं, "लोगों का शोषण रोकने के लिए युवाओं को आगे आना होगा और सिविल सर्विस के जरिए बदलावा लाना होगा."
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार