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कानूनी लड़ाई के बाद पगड़ी से उतरा लोगो

३१ मई २०१२

न्यूयॉर्क के सार्वजनिक परिवहन में काम करने वाले मुस्लिम और सिख अब सरकारी ठप्पे के बिना टोपी या पगड़ी पहन सकेंगे. 9/11 हमलों के बाद पगड़ी या टोपी पर सरकारी पहचान चिह्न लगाना अनिवार्य कर दिया गया था.

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तस्वीर: AP

अमेरिकी न्याय विभाग और न्यूयॉर्क ट्रांजिट अथॉरिटी (एनवाईसीटीए) आठ साल बाद समझौते पर पहुंचे. 2004 में शिकायत दर्ज कराई गई थी कि एनवाईसीटीए धार्मिक भेदभाव की तरफ बढ़ रहा है. बुधवार को हुए समझौते के तहत न्यूयॉर्क में बस और लोकल ट्रेनों के कर्मचारी अब बिना पहचान चिह्न वाली पगड़ी, स्कार्फ, हिजाब, यहूदी टोपी, कुफी और अन्य तरह की टोपियां पहन सकेंगे.

Tejdeep Singh Rattan US Armee Sikh Soldaten
अमेरिकी सेना में सिख अधिकारीतस्वीर: AP

समझौते से पहले कर्मचारियों को सिर पर पहनी जाने वाली इन चीजों पर मेट्रोपॉलिटन ट्रांजिट अथॉरिटी का लोगो लगाना पड़ रहा था. एनवाईसीटीए आठ वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों को 1,84,500 डॉलर का मुआवजा भी देगी. इनमें कुछ सिख और मुसलमान हैं. इन लोगों ने टोपी, हिजाब या पगड़ी में लोगो लगाने से इनकार कर दिया था. बाद में इन लोगों ने आरोप लगाया कि उनके साथ धार्मिक वजहों से भेदभाव हुआ.

नए समझौते के तहत सिख कर्मचारियों को अब वर्दी के रंग की नीली पगड़ी पहननी होगी. नागरिक अधिकार शाखा के सहायक अटॉर्नी जनरल थोमस पेरेज ने कहा, "समझौते से साफ संदेश जा रहा है कि न्याय विभाग धार्मिक भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेगा."

समझौते को अपनी जीत बताते हुए सिख गठबंधन कार्यक्रम के निदेशक अमरदीप सिंह ने कहा, "हमें खुशी है कि हमारे शहर में 9/11 की प्रतिक्रिया का एक अध्याय खत्म हुआ. बेकसूर सिख और मुस्लिम लोगों को उस दिन की वजह से अलग थलग किया गया और सजा दी गई."

मेट्रोपॉलिटन ट्रांजिट अथॉरिटी ने 11 सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद सिख और मुस्लिम कर्माचारियों को या तो सिर ढकने वाली धार्मिक चीज उतारने को कहा था या उसमें पहचान चिह्न लगाने का निर्देश दिया. आरोप है कि 2002 से सिख और मुस्लिम कर्मचारियों पर ही जानबूझकर ऐसे नियम थोपे गए.

ओएसजे/एमजे (पीटीआई)