कनफ़िकर की डिजिटल महामारी
२३ जनवरी २००९महामारी शब्द सुनते ही एक ऐसे रोग का ख़याल आता है, जो सीमाएं तोड़ता हुआ फैलता चला जाता है - एक से दूसरे को लगता हुआ. हम भी एक महामारी की आशंका की बात कररहे हैं. अंतर है तो इतना कि यह संभावित प्लेग एक डिजिटल महामारी है, जो इंटर्नैट पर वार कर रही है. अब तक वह दुनिया में लगभग पंचानवे लाख कंप्यूटरों में घर कर चुकी है. मध्यपूर्व में, इंग्लैंड में, दुनिया भर के देशों में. इस तरह के आंकड़ों की सही खोज-ख़बर रखना मुश्किल होता है, लेकिन एक कंप्यूटर-सुरक्षा कंपनी के अनुसार, दुनिया में हर तीन में से एक पीसी, इस कंप्यूटर-कीट से ग्रस्त है, जो "कनफ़िकर" या "डाउनैडप" नाम से जाता है. दिलचस्प बात यह है कि अभी तक यह कंप्यूटर-कीट उन मशीनों में सुप्तावस्था में है, जिनमें उसने घर किया है. यानी फ़िलहाल उसने कोई नुक़सान नहीं पहुंचाया है, लेकिन कोई नहीं जानता कि वह कब जाग जाए और कितनी आफ़त बर्पा कर दे.
अक्तूबर 2008 से सक्रिय है
"कनफ़िकर" के बारे में किसी विशेषज्ञ से बात की जाए, यह सोचकर हमने, वॉशिंग्टन के पास मैरीलैंड राज्य के बॉल्टीमोर में स्थित जॉन्स हॉप्किन्स विश्वविद्यालय में सूचना टैक्नॉलजी के प्रोफ़ेसर अनिल खत्री को टेलीफ़ोन किया, जिन्होंने बताया, "कंप्यूटर-कीट कनफ़िकर ने अक्तूबर, 2008 में वार शुरू किया और माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज़ के विंडो ऐक्स पी, विंडोज़ 2000, विंडोज़ विस्टा, विंडोज़ सर्वर 2003 या 2008 में जाकर अपनी जगह बना लेता है. जब आप लॉग इन करने के बाद कंप्यूटर पर काम-काज करते हैं, तो यह उसकी कॉन्फ़िगरेशन को, उसके संरूप को बदल देता है."
प्रोफ़ेसर खत्री ने बताया कि यह वायरस, यू एस बी ड्राइव (USB Drive) यानी मैमोरी स्टिक और एम पी थ्री (MP3) प्लेयर के रास्ते भी फैल रहा है. कुशल प्रोग्रामरों द्वारा तैयार किए जाने के कारण यह काफ़ी चतुर भी है, स्वयं यह फ़ैसला करने में समर्थ कि किस सर्वर के साथ संपर्क किया जाए. लेकिन इस तरह के वायरस फैलाने वाले ये लोग कौन होते हैं, और किस मकसद से इस तरह का खिलवाड़ करते हैं. प्रोफ़ेसर खत्री ने बताया कि कई लोग बस शरारत के तौर पर ऐसा करते हैं, उन्हें इससे कोई लाभ नहीं होता. लेकिन उद्योग के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी व्यवसायों के प्रोग्रामर ऐसे वायरस की रचना करते हैं, जो बुनियादी तौर पर निर्देशों के एक संक्षिप्त कोड के रूप में कंप्यूटर-प्रोग्राम ही होता है, स्वयं अपना संचालन कर सकता है और मशीनों को ख़राब कर देता है. प्रोफ़ेसर खत्री ने कहा कि यह एक तरह का साइबर-आतंकवाद या साइबर-अपराध ही कहा जाएगा.
बचाव कैसे करें
अनेक कंप्यूटर-उपयोक्ताओं को शायद यह पता भी नहीं चल पा रहा कि उनकी मशीनें "कनफ़िकर" का शिकार हो गई हैं, जिसे 2003 के स्लैमर वायरस के बाद अब तक का सबसे ख़तरनाक वायरस कहा जा रहा है. आम कंप्यूटर-उपयोक्ता इससे अपने बचाव के लिए क्या कर सकता है, इसके संबंध में प्रोफ़ेसर अनिल खत्री ने बताया, "कंप्यूटर वायरसों से कंप्यूटर की आंतरिक, 'सी' ड्राइव के ख़राब होने की आशंका अधिक होती है. उससे बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जब भी आप इंटर्नेट से फ़ाइलें या सामग्री डाउनलोड करें, तो यह पक्का करें कि जो वायरस-विरोधी प्रोग्राम या सुरक्षा पैच आप इस्तेमाल करें, वे बिल्कुल ताज़ा हों, बिल्कुल नए."
"कनफ़िकर से बचाव के लिए विंडोज़ की निर्माता कंपनी माइक्रोसॉफ़्ट की ओर से बाक़ायदा एक सुरक्षा पैच उपलब्ध है. कंप्यूटर पर यह अपडेट उतारने के बाद अपने पासवर्ड बदलकर नए, बेहतर, अधिक सशक्त तरह के पासवर्ड बनाना ज़रूरी होगा.