ऑस्ट्रेलिया में रहना-जाना हुआ मुश्किल--छात्र परेशान
८ फ़रवरी २०१०20 हज़ार से ज़्यादा ऐसे विदेशियों को, जो ऑस्ट्रेलिया में एक नई ज़िन्दगी का सपना देख रहे थे, सोमवार को मालूम हुआ कि वीसा बढ़ाने या अधिवास अनुमति पाने के उनके आवेदन स्वीकार नहीं किए जाएंगे क्योंकि ऑस्ट्रेलिया अपनी आप्रवासन नीति बदलने जा रहा है.
नई नीति के हिसाब से अब उन्हीं लोगों को ऑस्ट्रेलिया आने दिया जाएगा जो किसी एक क्षेत्र में प्रवीण होंगे, यानी हाई स्किल्ड वर्कर्स होगे. इस बदलाव के कारण ऑस्ट्रेलिया में रह कर पढा़ई करने वाले और योग्यता ग्रहण करने वाले पांच लाख छात्रों के ऑस्ट्रेलिया में रह सकने की संभावनाएं कम हो जाएंगी. इनमें से कई छात्र भारत के हैं, जिन्हें आप्रवासन एजेटों ने सलाह दी थी कि वे खाना पकाने, हेयरड्रेसिंग, या अकाउटिंग के कोर्स में दाखिला लें. इससे उनकी ऑस्ट्रेलिया में स्थायी तौर पर रह सकना पक्का हो जाएगा.
18 महीने का समय
ऑस्ट्रेलिया के आप्रवास मंत्री क्रिस इवान्स ने कहा है कि जिन लोगों पर इस नीति का असर पड़ेगा उन्हें18 महीने का समय दिया जाएगा ताकि वे कोई ऐसा नियोक्ता ढूंढ सकें, जो उन्हें नए वीज़ा के लिए स्पॉन्सर करे.
इवान्स ने जानकारी दी कि "वह वीज़ा आवेदनों लायक सूची में से 106 प्रकार की ऐसी नौकरियां कम कर रहे हैं, जिन्हें अब तक प्राथमिकता दी जाती थी. यह सूचि अब एकदम छोटी कर दी जाएगी."
पहले ऑस्ट्रेलिया में ऐसे लोगों को एक लिस्ट(एमओडीएल) के तहत वीज़ा दिया जाता था, जो उन लोगों को नौकरी और नागरिकता देने के लिए बनी थी, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कोई कोर्स किया हो और जिन्हें इंग्लिश नहीं आती हो. उन्हें कम निपुणता वाली नौकरियां दी जाती थीं. इस कारण ऐसी संस्थाओं की संख्या ऑस्ट्रेलिया में बढ़ गई थी जो कुकिंग, हेयरड्रेसिंग और अकाउन्टेन्सी सिखाती थीं.
क़रीब नब्बे हज़ार भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया में ऐसे हैं जो ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता या वहां स्थायी तौर पर रहने का अधिकार पाने के लिए इस तरह के कमों में प्रवीणता वाले कोर्से कर रहे हैं.
इवान्स का कहना था कि "एमओडीएल सूचि के कारण कई छात्र हेयरड्रेसिंग, अकाउन्टेन्सी जैसे विषय सीख रहे थे क्योंकि ये पेशे वीज़ा पाने की उस सूचि में थे, जिससे स्थायी नागरिकता मिल सकती थी."
छात्र मुश्किल में
नयी नीति के कारण कई ऐसी संस्थाएं तुरंत बद हो जाएंगी जो ऑस्ट्रेलिया में वीज़ा फ़ैक्ट्री की तरह काम कर रहीं थीं. साथ ही इन संस्थां में ट्रेनिंग पूरी करने वाले दसियों हज़ारों छात्रों को नौकरी मिलना मुश्किल हो जाएगा और उन्हें नागरिकता भी नहीं मिलेगी.
आप्रवासन मंत्री का कहना था कि "हमारी आप्रवासन नीति और हमारी शिक्षा-ज़रूरतें मेल नहीं खातीं इसलिए आप्रवासन नीति बदलना ज़रूरी है."
ऑस्ट्रेलिया का कहना है कि वह देश की अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी उच्च प्रवीणता वाली नौकरियां बढ़ाने के लिए और चीन की मांग पूरी करने के लिए अपनी आप्रवासन नीति बदल रहा है. सरकार के इस कदम का ऑस्ट्रेलिया के खनन उद्योग ने स्वागत किया है. क्योंकि वहां इस क्षेत्र में लगी कंपनियां बीएचपी बिलिटन, रियो टिंटो अपना विस्तार कर रहीं हैं लेकिन मुश्किल में हैं क्योंकि उनके पास स्किल्ड वर्कर्स नहीं हैं.
ऑस्ट्रेलिया की नीति में इस बदलाव का असर सीधे उसके शिक्षा उद्योग पर पड़ेगा, जो देश का तीसरा सबसे बड़ा उद्योग है. उससे उसे 13 अरब डॉलर सालाना मिलते हैं. भारतीयों पर हाल ही के दिनों में हुए हमलों के कारण शिक्षा उद्योग पर भारी असर पड़ा है.
रिपोर्टः एजेंसियां/आभा मोंढे