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एबीवीपी ने रोडीज के एंकरों के मुंह पर कालिख पोती

P२४ अप्रैल २०११

पुणे में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने एमटीवी रोडीज के एंकरों पर हमला किया. अपने तालिबानी इरादों का उदाहरण पेश करते हुए एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने एंकरों के मुंह पर कालिख पोत दी.

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने एंकर रघु, राजीव लक्ष्मण और रणविजय सिंह के मुंह पर सरेआम कालिख पोत दी. खुद को समाज का ठेकेदार समझने वाले एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि ये तीनों एंकर रोडीज में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं. तालिबान जैसा कट्टरपंथी कदम उठाने वाले एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने कालिख पोतने के बाद तीनों एंकरों को पुणे से बाहर निकाल दिया.

बाद में एबीवीपी ने एक बयान भी जारी किया. धमकी भरे इस बयान में कहा गया है, ''हम टीवी शो में ऐसी अभद्र भाषा और महिलाओं का अपमान नहीं सहेंगे. अगर ऐसी भाषा के साथ शो चलता रहा तो इसके कलाकार देश भर में ऐसा ही विरोध सहेंगे.''

पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई

एबीवीपी कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी का शिकार हुए एमटीवी रोडीज के तीनों एंकरों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराने से भी इनकार कर दिया. उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि ऐसी घटना से एक राजनीतिक पार्टी सुर्खियां बटोरना चाह रही है. लेकिन नौजवानों को हिम्मत और दुस्साहस का पाठ पढ़ाने वाले एंकर्स यह साफ नहीं कर सके कि आखिर उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई. एबीवीपी वालों के पास इसका जवाब नहीं है कि उन्होंने अभद्र भाषा को लेकर अपनी आपत्ति सेंसर बोर्ड या पुलिस के सामने क्यों दर्ज नहीं कराई.

समाज का ठेकेदार

यह पहला मौका नहीं है जब एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने कानून की खिल्ली उड़ाते हुए ऐसी ओछी हरकत की है. अगस्त 2006 में भी एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने उज्जैन के डिग्री कॉलेज में घुसकर प्रोफेसर सभरवाल की पिटाई की. प्रोफेसर सभरवाल को इतना पीटा गया कि मौत हो गई. मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को बचाने की खूब कोशिश की. 2009 में निचली अदालत ने सबूतों के अभाव में हत्या के आरोपियों को बरी कर दिया.

एबीवीपी बीजेपी की छात्र ईकाई है. एबीवीपी के ऐसे ही गुंडे किस्म के कई नेता देर सबेर बीजेपी में आकर राष्ट्रीय राजनीति में शुमार होने की चाहत रखते हैं.

कुछ सामाजिक कार्यकर्ता पुणे की घटना को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हैं. उनका कहना है कि भारत में एक तरफ आंख बंद कर होड़ में जुटे टीवी कार्यक्रम हैं. दूसरी तरफ हरकत में बहुत कम आने वाला सेंसर बोर्ड या प्रसारण मंत्रालय है. तीसरी तरफ खुद को समाज का ठेकेदार समझने वाले हैं. नियम कायदों और कानून की बात तो न जाने कहां है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: ईशा भाटिया