उत्तराखंड और हरियाणा में बीजेपी मुश्किल में
१० मार्च २०२१उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के अचानक इस्तीफा दे देने के बाद अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि राज्य में विधान सभा चुनाव से बस एक साल पहले इस तरह की उथल पुथल से बीजेपी पर क्या असर पड़ेगा. बुधवार को उत्तराखंड में बीजेपी विधायकों ने तीरथ सिंह रावत को अपना नेता चुना. वे राज्य के नए मुख्यमंत्री होंगे. वे गढ़वाल से बीजेपी के सांसद हैं.
इससे पहले समाचार वार्ता में जब पत्रकारों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत से बार बार पूछा कि आखिरकार उन्हें इस्तीफा क्यों देना पड़ा तो उन्होंने जवाब दिया कि इसका जवाब जानने के लिए पत्रकारों को दिल्ली जाना पड़ेगा. रावत खुद एक ही दिन पहले दिल्ली से लौटे थे, जहां उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाकात की थी.
बतौर मुख्यमंत्री रावत के प्रदर्शन से पार्टी के खुश ना होने की अटकलों के बीच रावत का यूं खुल कर दिल्ली की तरफ इशारा करना काफी महत्वपूर्ण है. उन्हें हटाने के निर्णय का आधार उनका प्रदर्शन हो सकता है, लेकिन उत्तराखंड में इस तरह की राजनीतिक उठा-पटक का पुराना इतिहास है.
2000 में राज्य की स्थापना के बाद से अभी तक बने नौ मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ एक ही पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं. वो थे कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी, जो राज्य के पहले विधान सभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री चुने गए थे. बीजेपी में भी उत्तराखंड के कई नेता मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं और इस वजह से पार्टी के अंदर खींच-तान लगी रहती है.
हरियाणा में विश्वास-मत
उधर हरियाणा में भी बीजेपी की सरकार के सामने एक मुश्किल आ खड़ी हुई है. बुधवार को विधान सभा में बीजेपी-जेजेपी की गठबंधन सरकार को विश्वास-मत का सामना करना पड़ सकता है. विधान सभा में विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हूडा ने पांच मार्च को विश्वास मत का प्रस्ताव पेश किया था जिसे अध्यक्ष ने मंजूर कर लिया था.
इसी कांग्रेस द्वारा किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के खिलाफ फैली नाराजगी का फायदा उठाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. पंजाब की ही तरह हरियाणा में भी कई किसान तीनों नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से मांग कर रहे हैं कि वो राज्य में इन कानूनों को लागू ना होने दें और केंद्र सरकार को इन कानूनों को निरस्त करने के लिए मनाएं.
बीजेपी के सहयोगी दल जेजेपी पर भी किसान उनके आंदोलन के समर्थन में सरकार से अपना समर्थन खींच लेने के लिए दबाव बना रहे हैं. जेजेपी के नेता और उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला समेत उनकी पार्टी के कई नेताओं के घरों के बाहर किसानों ने प्रदर्शन आयोजित किए हैं, लेकिन चौटाला ने सरकार को अपना समर्थन बनाए रखा है. हालांकि जानकार कह रहे हैं कि विश्वास मत का नतीजा सरकार के पक्ष में ही आने की संभावना है.
विधान सभा में इस समय 88 सदस्य हैं, जिनमें बहुमत साबित करने के लिए सरकार को 45 मत चाहिए. बीजेपी के सदस्यों की संख्या 40 है और जेजेपी की 10. कांग्रेस के 30 सदस्य हैं. सात विधायक निर्दलीय हैं जिनमें से पांच सरकार का समर्थन कर रहे हैं. एक सदस्य हरियाणा लोकहित पार्टी का है और उसने भी सरकार को समर्थन दिया हुआ है.
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