अर्जेंटीना में महिला संगठन के संघर्ष की दास्तान
२२ जनवरी २०१०अतीत से सबक सीखना कितना ज़रूरी है, इस बात को कई देशों में देखा जा सकता है. जर्मनी ने हिटलर की तानाशाही से उबरने के लिए बड़े प्रयास किए हैं, रवांडा जैसे अफ़्रीकी देश में भी ऐसी कोशिशें हो रही हैं जहां 90 के दशक में भयानक नरसंहार हुआ.
लास माद्रेस दे ला प्लाज़ा देल मायो. यह उन महिलाओं के संगठन का नाम है जो 1977 से न्याय के लिए लड़ रही हैं. 1976 से 1983 तक अर्जेंटीना में क्रूर सैनिक शासन था. वहां पहले भी कई बार लोकतंत्र खतरे में पड़ा था लेकिन इस दौरान हुई बर्बरताओं का वर्णन करना बहुत मुश्किल है. हज़ारों लोगों की मौतें हुईं. अब भी 20 हज़ार से 30 हज़ार लोग लापता हैं. आशंका है कि कइयों की हत्या कर दी गई. उनमें से कई महिलाएं के बच्चे भी हैं.
ऐसी ही महिलाएं 30 अप्रैल 1977 से हर गुरुवार को राष्ट्रपति भवन के सामने प्लाज़ा देल मायो यानी मई क्रांति चौक पर मिलती हैं और मौन प्रदर्शन करती हैं. आज तक. सब एक सफेद स्कार्फ पहनती हैं जो उनके विरोध का प्रतीक बन गया है. एस्तेला दे कार्लोटो लास माद्रेंस दे ला प्लाज़ा मायो की अध्यक्ष हैं. वे कहती हैं कि आश्चर्यजनक बात यह है कि समाज में शुरू शुरू में कोई भी अतीत से सबक सीखने के लिए तैयार नहीं था. वह बताती हैं, "अधिकारियों ने बहाना बनाया कि हमारे बच्चों ने देश छोड़ दिया. कहा गया कि वह दूर चले गए, यूरोप चले गए और उन्होंने हमे भुला दिया. उन्होंने क़ब्रिस्तान पर गुमनाम क़ब्रों को मान्यता नहीं दी और कहा कि कोई ऐसे मामले नहीं हैं कि बच्चे लापता हुए हैं. और जब हम कई मामलों की जांच करने में सफल रहे तो कइयों ने कहा, चलिए अब तो आप काम बंद कर दीजिए और उन बच्चों की क़िस्मत जानने का काम बंद कर दीजिए."
दरअसल इस तरह अधिकारी इतिहास को भुला देना चाहते थे. वे इसे नई शुरुआत का नाम दे रहे थे. वैसे सैनिक शासन के दौरान कई बच्चों की उनके मां बाप के साथ ही हत्या कर दी गई. बहुत से बच्चों का अपहरण हुआ या फिर उनको अवैध तरीके से गोद लिया गया. यह भी एक रास्ता था शासन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले लोगों को दंडित करने का. उन बच्चों का पता लगाना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि अगवा किए गए बच्चों के नाम बदल दिए गए. उनके जन्म की तारीख़ बदल दी गईं.
कितनी ही बार उन अधिकारियों को धमकी दी गई जिन्होंने लास माद्रेस दे ला प्लाज़ा देल मायो संगठन की महिलाओं को मदद की. लेकिन फिर भी उन महिलाओं की आवाज़ें ख़ामोश नहीं हुईं. और आज तक उन्होंने 500 ऐसे बच्चों के मामलों का पता लगाया जो सैनिक शासन के दौरान लापता हो गए थे.
अपने काम के लिए लास माद्रेस दे ला प्लाज़ा देल मायो संगठन की महिलाओं को मानवाधिकार संगठन ऐमनेस्टी इंटरनेशनल या विश्व चर्च परिषद से भी मदद मिली. और फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, स्पेन या ब्रिटेन ने भी उनकी मदद की. वोल्फगांग कालेक एक ऐसे संगठन के प्रवक्ता हैं जो अर्जेंटीना में रहने वाले जर्मन मूल के कई लोगों के मामलों को जानने के लिए काम कर रहा है. वह कहते हैं, "अगर हम यातना देने और मानवाधिकारों के उलंघन की बात करते हैं, तब हम सिर्फ अतीत की बात नहीं करते हैं. सभी घटनाओं का असर हमारी आज की दुनिया पर पड़ रहा है."
लास माद्रेस दे ला प्लाज़ा देल मायो संगठन की सफलता यह मानी जा सकती है कि उनके दबाव की वजह से एक डाटाबेस बना जिसमें परिवारों की सभी जेनेटिक सूचनाएं है. इतिहास के बारे में जानकारी देने के लिए बजट में भी करोड़ों का प्रावधान है. लास माद्रेस दे ला प्लाज़ा देल मायो संगठन की महिलाएं समय समय राष्ट्रपति जैसे बड़े अधिकारियों से मिलती हैं और उन्हे अपने काम के लिए कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
सच्चाई, न्याय और याद, यह हैं संगठन के सिद्धांत. संगठन की महिलाएं एक वेबसाइट भी चलाती हैं. उनकी एक पत्रिका भी है और वे दुनिया भर में मुहिम चलाती हैं. फेसबुक पर भी उनका प्रोफ़ाइल हैं.