अमेरिकी सेना में हजारों महिलाओं की भर्ती
९ फ़रवरी २०१२अमेरिकी रक्ष मंत्रालय पेंटागन गुरूवार को कांग्रेस को नियमों में बदलाव के बारे में सूचित करेगा ताकि समय रहते इस पर चर्चा की जा सके. एक उच्च अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में कहा, "मंत्रालय चौदह हजार ऐसी नौकरियों की घोषणा करेगा जो अब तक महिलाओं के लिए बंद थीं." अपना नाम न बताने की शर्त पर इस अधिकारी ने कहा कि यह केवल पहला कदम है और आने वाले समय में महिलाओं को सेना में और भी जगह मिल सकेगी. "अभी तो यह शुरुआत है. इसे परख लेने के बाद इस बात की कल्पना की जा सकती है कि भविष्य में सेना में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी."
अधिकारी ने बताया कि नए नियम थल सेना और मरीन कॉर्प्स में लागू होंगे. महिलाओं के लिए इन दोनों में नौसेना और वायु सेना की तुलना में काफी सख्त नियम रहे हैं. साथ ही नेवी सेल्स और आर्मी डेल्टा फोर्स में भी ये नियम लागू नहीं किए जाएंगे.
अफगानिस्तान और इराक में महिलाएं
अमेरिका में महिलाओं की तैनाती खुफिया एजेंसियों में भी होती है और सेना में कई पदों पर भी. लेकिन उन्हें युद्ध में नहीं भेजा जाता. हालांकि अफगानिस्तान और इराक में मौजूद अमेरिकी टुकड़ियों में कई महिलाएं भी शामिल हैं. पिछले एक दशक से वहां महिलाएं जंग के मैदान में अपनी काबिलियत दिखाती आई हैं. 150 से अधिक महिलाओं ने वहां अपनी जान भी गंवाई है. लेकिन ऐसा इसलिए क्योंकि दस्तावों में अफगानिस्तान और इराक में युद्ध क्षेत्र की साफ परिभाषा नहीं दी गई है.
अमेरिकी सेना के अजीब नियमों के अनुसार महिलाएं युद्ध क्षेत्र में लड़ नहीं सकतीं, लेकिन सेना को युद्ध क्षेत्र तक पहुंचाने वाले हेलीकॉप्टर उड़ा सकती हैं. डॉक्टर होने के नाते उन्हें जंग के मैदान में सिपाहियों की मदद करने की अनुमति है, लेकिन बंदूक अपने हाथ में ले कर सिपाहियों के साथ आगे बढ़ने की अनुमति नहीं है. 1994 में बनाए गए नियम के अनुसार महिलाओं को ब्रिगेड के नीचे के स्तर पर काम करने की अनुमति नहीं है. एक ब्रिगेड में कई बटालियन होते हैं. महिलाएं ब्रिगेड से जुड़ा काम कर सकती हैं, लेकिन बटालियन का हिस्सा नहीं बन सकती. हालांकि यह देखा गया है कि युद्ध क्षेत्र में उन्हें बटालियन से जुड़े कई काम भी करने पड़ते हैं, लेकिन उन्हें उसका श्रेय नहीं दिया जाता. साथ ही उन्हें तरक्की के भी कम मौके मिलते हैं और इसलिए वे ऊंचे पदों तक नहीं पहुंच पातीं. जानकारों का मानना है कि ये नियम वास्तविकता से परे हैं.
मिली जुली प्रतिक्रिया
हालांकि नए नियम महिलाओं को अब भी सेना की लड़ाकू टुकड़ी में जगह नहीं देते, लेकिन कई नए दरवाजे उन के लिए खुल गए हैं. अमेरिका की 'सर्विस वुमंस एक्शन नेटवर्क' की अनु भगवती ने इस पर मिली जुली प्रतिक्रिया दिखाई. वह खुद मरीन कॉर्प्स में कैप्टन रह चुकी हैं, "एक तरफ तो यह सही दिशा में लिया हुआ एक बड़ा कदम है, लेकिन दूसरी तरफ यह काफी निराशा भी ले कर आया है. महिलाओं को अभी भी इन्फेंट्री का हिस्सा नहीं बनने दिया जा रहा और ऐसा कर के उनकी प्रतिभाओं को नजरअंदाज किया जा रहा है." अनु भगवती ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि सेना में महिलाओं को पुरुषों के साथ बराबरी का हक दिया जाए. वहीं सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल रॉबर्ट मेजिनिस ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा, "इसमें यौन उत्पीड़न पर कोई बात नहीं की गई है और ना ही महिलाओं और पुरुषों की अलग अलग मानसिकता पर, जिसका उनकी सेहत पर भी असर पड़ता है."
लम्बे समय से इस बात पर चर्चा होती रही है कि महिलाओं को युद्ध में तैनात किया जाना चाहिए या नहीं. कुछ लोगों का मानना है कि इस से सेना कमजोर हो सकती है और उसके प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ सकता है. वहीं दूसरे लोगों का मानना है कि अमेरिकी समाज में भी लोग इस बात को पसंद नहीं करेंगे कि महिलाएं साल में एक बार युद्ध मैदान से झोला उठा कर घर लौटें.
इस से पहले अमेरिका में 2010 में महिलाओं के लिए कानून बदले गए थे. उस समय महिलाओं को पनडुब्बियों पर तैनात होने की अनुमति दी गई थी.
रिपोर्ट: एएफपी/ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा