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समाज

अमेरिका में मौत की सजा का तरीका तय नहीं कर पा रही अदालत

१२ अप्रैल २०१९

26 साल बीत जाने के बाद भी एक आदमी को मौत की सजा नहीं दी जा सकी है. वजह है मौत दिए जाने का तरीका. दोषी का कहना है कि उसे जहरीला इंजेक्शन ना देकर एक दूसरे तरीके से मौत दी जाए. क्या है वो दूसरा तरीका. आइए जानते हैं.

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Russland US-Konsulat in Sankt Petersburg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Sputnik/A. Galperin

अमेरिका के अल्बामा प्रांत में मृत्युदंड के एक दोषी को ढाई दशक बाद भी सजा नहीं दी जा सकी है. उसने 1991 में एक हत्या की थी. इसके लिए उसे 1993 जिला अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी. दोषी आज भी कैद में है. 22 दिसंबर 1991 को क्रिस्टफर प्राइस ने अपने एक साथी के साथ मिल कर एक मंत्री और उनकी पत्नी पर हमला किया. मंत्री विलियम लिन की मौत हो गई और पत्नी जख्मी हुई. सजा के तरीके के खिलाफ अपील अदालत में तीन जजों की बेंच ने मृत्युदंड पर 60 दिन की रोक लगाई थी. इसके खिलाफ अल्बामा के अटॉर्नी जनरल ने एक इमरजेंसी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई फैसला नहीं दिया. इसलिए जेल अधिकारियों ने प्राइस को मौत न देने का फैसला किया.

क्यों टली मौत की सजा?

प्राइस के वकील ने दलील दी थी कि उसे मारने के लिए दिए जाने वाला इंजेक्शन पहले भी बड़ा खतरनाक साबित हुआ है. इसकी वजह से दर्दनाक मौत होती है. इसलिए उसे नाइट्रोजन हायपोक्सिया से मौत दी जानी चाहिए. अपील अदालत ने इस पर फैसला देते हुए कहा कि इस मामले पर वो जिला अदालत के निर्णय को पूरी तरह देखकर फैसला देगी. इस लिए फैसला आने तक प्राइस की सजा पर रोक लगा दी गई. अमेरिका में मौत की सजा देने के लिए एक जहरीला इंजेक्शन दिया जाता है जिससे आदमी की मौत हो जाती है. लेकिन मानवीय आधार पर इस सजा पर विवाद होता रहा है. इसके लिए नाइट्रोजन हायपोक्सिया एक नया तरीका है. इसमें सजा पाए आदमी को ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन सांस लेने के लिए दी जाती है. इससे उसकी मौत हो जाती है.

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कैसे चला पूरा केस?

विलियम लिन क्रिसमस पर अपने बच्चों को देने के लिए तोहफे इकट्ठे कर रहे थे. वो और उनकी पत्नी बेसी चर्च से वापस घर आए तो दोनों दोषियों ने तलवार और चाकू से उन पर हमला कर दिया. लिन मारे गए और उनकी पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं. क्रिस्टफर प्राइस और केल्विन कोलमैन को सात दिन बाद इस हमले और डकैती के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. केल्विन को आजीवन कारावास और प्राइस को मौत की सजा सुनाई गई.

प्राइस के वकील ने दलील दी कि मौत की सजा में इस्तेमाल होने वाला जहरीले इंजेक्शन का तरीका अमानवीय है. इसलिए उसे नाइट्रोजन हायपोक्सिया से मौत दी जानी चाहिए जो एक कम दर्दनाक तरीका है. इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को 60 दिन का समय दिया जिससे तय किया जा सके कि मौत की सजा देने का कौन सा तरीका सही रहेगा.

इस महीने की शुरुआत में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए 5-4 के मत से एक फैसला दिया जिसमें कहा गया कि संविधान में यह नहीं लिखा कि एक दोषी को दर्दविहीन मौत दी जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने एक हत्यारे रसेल बक्ले की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला था. रसेल का कहना था कि उसे जहरीले इंजेक्शन की जगह नाइट्रोजन हायपोक्सिया दिया जाए. 2019 के मार्च तक पहले से निर्धारित छह मौत की सजाओं को इसी के चलते रोक दिया गया है.

प्राइस को लगा था कि यह उसका आखिरी दिन होगा इसलिए वो पहले ही अपनी पत्नी, अकंल और आंट से मिला. उसने नाश्ता नहीं किया और बस थोड़ी सी आइसक्रीम खाई. लेकिन उसे मौत की सजा नहीं दी जा सकी.

आरकेएस/ओएसजे (रॉयटर्स)