दिल्ली की एक कॉलोनी में कचरा कूड़ेदान में नहीं जाता
दिल्ली की नवजीवन विहार कॉलोनी की सूरत बीते 6 वर्षों में पूरी तरह से बदल गई है. वहां गीला कचरा खाद बन जाता है और सूखा कचरा पूरी तरह से रिसाइकिल हो जाता है. इस कॉलोनी को देख कर आस पास के लोग भी बदलाव की कोशिश कर रहे हैं.
रिड्यूस, रियूज और रिसाइकिल
दक्षिणी दिल्ली के एक छोर पर बसे मालवीय नगर में नवजीवन विहार कॉलोनी में 280 घर हैं. पिछले 6 सालों से इन घरों से निकलने कचरा कूड़ेदान में नहीं जाता उसको रिसाइकिल कर दिया जाता है. इस कॉलोनी में रिड्यूस, रीयूज और रिसाइकिल की नीति अपनाई जा रही है.
मुश्किल सफर की दृढ़ शुरुआत
कॉलोनी की तारीफ भी होने लगी है. छोटे बच्चे भी सफाई और व्यवस्था का महत्व समझने लगे हैं. कॉलोनी में रहने वाली रंजना खरबंदा कहती हैं, “मेरा 7 साल का नाती शिवांश और ढाई साल की नातिन आरिणी को भी अब पता है कि अगर कोई पेपर या कचरा फेंकता है तो इसे डस्टबिन में फेंका जाना चाहिए. ये एक बड़ी जागरूकता है.”
साफ सफाई की शुरुआत
कॉलोनी के लोगों को अलग-अलग डस्टबिन रखना और गीला कचरा, सूखा कचरा और सैनिटरी कचरे को अलग-अलग फेंकने का महत्व बताने के साथ डॉ. रूबी ने लगभग 1 साल तक पूरी तैयारी की. शुरू में लोगों को समझाने में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन फिर कूड़ा अलग होना शुरू हो गया. इसके बाद ही कॉलोनी में ही कूड़ा डालने वाली तीन कंपोस्ट पिट बना गया. घर से निकलने वाले गीले कचरे को उनमें डालकर खाद बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई.
जरूरतमंदों की मदद
सूखे कचरे को रिसाइकिल करवाकर उससे पेंसिल, नोटबुक जैसी कई चीज बनाई जाती हैं जो गरीब बच्चों को दी जाती हैं. कॉलोनी में एक फ्रिज भी रखा है. इसमें कॉलोनी के लोग बचा हुआ भोजन या खाने की दूसरी चीजें रख जाते हैं, इन्हें कोई जरूरतमंद ले जा सकता है
सहयोग में बदला विरोध
यह सब करना आसान नहीं था. सबसे पहले विरोध किया कॉलोनी में घर का काम और साफ सफाई करने वाले लोगों ने. उनका कहना था कि कूड़ा छांटने में उनका समय जाता है. समाधान के तौर पर आरडब्ल्यूए ने कर्मचारियों को निःशुल्क बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी नैपकिन की पेशकश की. सभी कामगारों को बुलाया और कचरे को अलग-अलग करने का महत्व समझाया. फिर उन्हें भी समझ में आया कि यह करना अच्छा है.
शुरुआत हुई तो जुड़ गए साथी भी
गीले कचरे से बनी खाद को कॉलोनी के ही तीन पार्कों में इस्तेमाल होने लगा. इसके बाद पार्कों की सूरत भी बदल गई. इसके अलावा सूखे कचरे जैसे कागज, पन्नी, चिप्स- बिस्किट के पैकेट, बोतलें आदि को भी अलग-अलग कर उनके रिसाइकिल की ओर ध्यान दिया गया. कुछ कंपनियों से भी बात की गई जो सूखे कचरे को रिसाइकिल कर सकें.
किसी के लिए बेकार, किसी के काम की चीज
कॉलोनी में आरआरआर (रियूज, रिसाइकिल, रिड्यूस) सेंटर है. इसमें प्लास्टिक के सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, कागज और फर्नीचर जैसे कचरे को रिसाइकिल किया जाता है. जो सामान लोगों के काम का होता है, वह उसे ले जाते हैं. बाकी जो बेकार सामान है वह रिसाइकिल होता है.
बदबू से छुटकारा
कंपोस्ट पिट में पड़ने वाले गीले कचरे से कुछ दिनों में बदबू आना शुरू हो जाती थी और उसके आसपास होना भी मुश्किल हो जाता था. इस के हल के लिए कॉलोनी के ही फंड से 6 गया कंपोस्टिंग बिन मंगाए गए जो ढक्कन के साथ थे. इनसे बदबू बाहर नहीं जाती. नवजीवन विहार कॉलोनी में बीते 6 वर्षों में अब तक 7 लाख किलो कूड़ा रीसायकल हो चुका है. इसका 60% गीला और 40% सूखा कचरा था. हर साल लगभग 10 से 12 हजार किलो खाद बनती है.
मुश्किल सफर की दृढ़ शुरुआत
यह सब शुरू हुआ कॉलोनी की डॉ रूबी मखीजा के प्रयासों से. पेशे से वह नेत्र चिकित्सक हैं. जब रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की वह सेक्रेटरी बनीं तो उन्होंने सबसे पहले कचरे पर ही ध्यान दिया. डॉ मखीजा का कहना है, "डॉक्टर होने के नाते मुझे इस बात का एहसास है कि अपने घर के साथ आसपास भी साफ-सफाई कितनी जरूरी है. आरडब्ल्यूए की जिम्मेदारी मिली तो मैंने सबसे पहले सफाई पर ही ध्यान देना शुरू किया.”
कॉलोनी वासियों के लिए भी बदला जीवन
नवजीवन विहार में रहने वाले 16 वर्षीय छात्र आदित्य कहते हैं, “जब मैं छोटा था और पार्क में खेलने जाता था तो वहां हरियाली बिल्कुल नहीं थी, कुछ एक पेड़ ही होते थे. पर अब पार्क में इतने सारे पौधे और बड़े पेड़ हो गए हैं कि वहां जाकर खेलने में बहुत मजा आता है.”
बदल गई कॉलोनी की तस्वीर
साफ सफाई के साथ ही रिसाइकिलिंग के प्रयासों ने कॉलोनी की काया बदल दी है. अब सब तरफ हरियाली और रौनक दिखाई देती है. पेड़ों पर फुदकती चिड़ियों से कॉलोनी गुलजार रहता है और घर से निकलने पर लोगों का मन प्रसन्न होता है. इन सबके साथ ही सामाजिक रूप से जो बदलाव आ रहा है वह भी काफी अहम है