दुनिया में कितने तरह के कैलेंडर हैं
दुनिया में कम से कम 40 तरह के कैलेंडर हैं लेकिन 11 ज्यादा प्रचलित हैं. कैलेंडरों पर संस्कृति, धर्म और खगोल विद्या का असर रहा है. दिन, महीना और मौसम को एक चक्र में बांटने वाली व्यवस्था का महत्व बहुत पहले जान लिया गया था.
कितना पुराना है कैलेंडर
फ्रांस में मिले साक्ष्य 30,000 साल पहले से कैलेंडर के इस्तेमाल का संकेत देते हैं. प्राचीन काल में सुमेरियाई, मिस्री और माया सभ्यता के कैलेंडर थे. भारत में हिंदू कैलेंडर या पंचांग के ईसा पूर्व 1,000 के पहले से इस्तेमाल के भी प्रमाण हैं. ईसा पूर्व 46 से जूलियन कैलेंडर प्रचलित हुआ जिसने करीब 1,600 साल तक दुनिया का लेखा जोखा रखा. वर्तमान ग्रेगोरियन कैलेंडर इसी से बना जो 1582 में अस्तित्व में आया.
कितने तरह के कैलेंडर
कैलेंडर मोटे तौर पर चार प्रकार के हैं. सोलर, लूनर, लूनी-सोलर और सीड्रियल. सूरज, चांद और पृथ्वी की गति को आधार बना कर ये बनते हैं. सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी से आकाश के अलग अलग तारे- नक्षत्र दिखते हैं. संभवतया मिस्री, ग्रीक और बेबिलोनियाई समाजों ने तारों की गति के आधार पर सीड्रियल कैलेंडर तैयार किया होगा. सीड्रियल ईयर वह समय है जो पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा में लगते हैं यानी 365.2564 दिन.
सीड्रियल कैलेंडर
सभी समाजों ने नक्षत्रों की खोज की है. ये वो पैटर्न हैं जो तारों भरे आकाश का एक मतलब बनाते हैं. इसमें अकसर उनकी पौराणिक कथाओं की छाप दिखती है. आधुनिक खगोल विद्या भी आधिकारिक तौर पर 88 नक्षत्रों को मानती है जो साथ मिल कर पूरे खगोलीय क्षेत्र को बनाते हैं. इनमें से कई बेबिलोनियाई, ग्रीक और अरबी सभ्यताओं से आए हैं.
हिंदू कैलेंडर
हिंदू कैलेंडर या पंचांग लूनी-सोलर कैलैंडर है जो सूरज और चंद्रमा दोनों पर आधारित है. इसमें कई क्षेत्रीय कैलेंडरों को मिलाया गया है. 12 महीनों में बंटे कैलेंडर में सात महीने 30 और पांच महीने 31 दिनों के हैं. यह चैत्र मास की पहली तारीख से शुरू होता है जो 22 मार्च के आसपास आता है. विक्रम संवत के हिसाब से हिंदू कैलेंडर का पहला साल ईसा पूर्व 57 था जबकि शक संवत् के हिसाब से ईसा बाद 78.
हिब्रू कैलेंडर
लूनी-सोलर कैलेंडर यहूदियों के साथ ही इस्राएल का आधिकारिक कैलेंडर है, जो बेबिलोनियाई कैलेंडर से तैयार हुआ था. इसे मौजूदा रूप ईसा बाद 359 में मिला. इसमें दिन की शुरुआत सूर्यास्त से होती है. दिनों के नाम नहीं नंबर होते हैं सिवाय सातवें दिन के जिसे सबाथ कहा जाता है. साल तीन तरह के हैं डेफिसिएंट, रेगुलर और कंप्लीट. ये भी लीप और नॉन लीप ईयर में बंटे हैं. महीने 12 या 13 और साल के दिन 354-385 तक होते हैं
चायनीज कैलेंडर
यह भी लूनी-सोलर कैलेंडर है. इसमें दिन का मतलब मध्यरात्रि से अगली मध्यरात्रि तक है. सामान्य साल 12 और लीप ईयर 13 महीने का होता है. सालों के नंबर नहीं नाम होते हैं जो हर 60 साल पर दोहराये जाते हैं. इनके नाम 12 जानवरों पर हैं जिनका चक्र जब पांच बार पूरा होता है तो नया क्रम शुरू होता है. इसकी शुरुआत ईसा पूर्व 2637 में हुई. हालांकि सालों के नाम का यह तरीका करीब 2,000 साल से इस्तेमाल में है.
इस्लामिक कैलेंडर
चांद पर आधारित इस कैलेंडर में 29.5 दिनों के 12 महीने होते हैं और एक साल 354 दिनों का होता है. आधे दिन का होना संभव नहीं है इसलिए विषम महीने 29 या 30 दिनों के होते हैं. लीप ईयर के 12वें महीने में एक दिन अतिरिक्त होता है. कौन सा साल लीप ईयर होगा यह अलग तरीके से तय होता है. इस्लामिक कैलेंडर का पहला साल ईसा बाद 622 था. हर महीने की शुरुआत नंगी आंखों से चांद को देखने के साथ होती है.
जूलियन कैलेंडर
इसे जूलियस सीजर ने शुरू किया था और यह मिस्री कैलेंडर में सुधार कर बनाया गया था. मिस्री कैलेंडर से अलग इसमें साल 365 की बजाय 365.25 दिन का होता था और जिसमें हर चौथा साल लीप ईयर था. पहली बार इसी कैलेंडर में साल की शुरुआत एक मार्च की बजाय एक जनवरी से होने लगी.
ग्रेगोरियन कैलेंडर
वर्तमान दुनिया इसी कैलेंडर से चलती है. इसकी शुरुआत 1569 में हुई थी. इसमें साल ईसा मसीह के जन्मदिन से गिना जाता है जिसे 1एडी (हमारे ईश्वर का साल) कहा गया. 18वीं सदी में इसे शून्य का साल बना दिया गया यानी 1ईसा पूर्व का मतलब शून्य हुआ, 2 ईसा पूर्व का मतलब -1 है. गैर ईसाई देशों में प्रचलित होने के बाद ईसा बाद के सालों को कॉमन एरा (सीई) और ईसा पूर्व को बिफोर कॉमन एरा (बीसीई) का नाम मिला.
12 महीने 365 दिन
ग्रेगोरियन कैलेंडर में 12 महीनों के नाम जूलियन कैलेंडर से ही लिए गए. इसमें चार से पूरी तरह विभाजित होने वाले साल लीप ईयर होते हैं. लीप ईयर में साल 366 दिन का जबकि बाकी साल 365 दिन के होते हैं. हर 400 साल पर यह कैलेंडर अपने को दोहराता है. इसमें चार महीने 30 दिन के, एक महीना 28 या 29 का, और सात महीने 31 दिन के होते हैं.
सोवियत कैलेंडर
सोवियत कैलेंडर एक संशोधित ग्रेगोरियन कैलेंडर था. सोवियत रूस में यह 1918 से 1940 तक इस्तेमाल में रहा. हालांकि इसी दौर में इसमें कई बदलाव हुए. इसमें पांच लगातार काम के दिन थे और दो दिन की छुट्टी परिवार और दोस्तों के लिए. इसमें हर वर्कर को एक दिन आराम के लिए भी जब तब मिलता था.