दुनिया भर के बौने खिलाड़ियों ने दिखाया अपना दम
८ अगस्त २०२३भारत की अरुणाचलम नलिनी फाइनेंशियल मैनेजर हैं. नलिनी कहती हैं, "ये तो घर आने जैसा है." पैरालिम्पिक में भाला और तावा फेंक, तैराकी और भार उठाने के मुकाबले में ही बौने लोगों को मौके मिलते हैं. इसके उलट वर्ल्ड ड्वार्फ गेम्स में उनके लिए बैडमिंटन और बास्केट बॉल समेत कुल 10 मुकाबले होते हैं. इस साल इन खेलों का नौंवा साल है.
वातावरण सकून देने वाला है. दो कनाडाई एथलीटों के साथ सेल्फी लेते हुए नलिनी हंस कर कहती हैं कि वह इस आयोजन में अपने आप को पा लेती हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह बदलाव स्वागत करने योग्य है क्योंकि काम पर या जीवन के दूसरे क्षेत्रों में उन्हें लगता है कि खुद को साबित करने कि लिए दूसरों की तुलना में ज्यादा कुछ करना पड़ता है. नलिनी ने कहा, "जिन लोगों के जीवन में बंदिशें नहीं हैं वो हमेशा यह नहीं जान पाते कि कैसे सीढ़ी चढ़ने जैसी छोटी चीज भी हमारे लिए बड़ी बाधा है. मैं चाहती हूं कि यह बदले."
बौनों की दुनिया में रोशनी की किरण
55 साल की नलिनी ने बताया कि उन्होंने फिट रहने के लिए कई साल पहले खेलकूद शुरू किया था. उसके बाद उन्हें विकलांग लोगों के साथ खेले जाने वाले पैरास्पोर्ट्स के बारे में पता चला और फिर उन्होंने ट्रेनिंग शुरू कर दी. अब तक उन्होंने क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में 42 मेडल जीते हैं. उनका पसंदीदा खेल है बैडमिंटन जिसमें उन्होंने इस साल कोलोन में कांस्य पदक हासिल किया.
बैडमिंटन के मशहूर खिलाड़ी
उनकी टीम के मार्क धारमाइ दुनिया भर के बौने बैडमिंटन खिलाड़ियों के सबसे मशहूर खिलाड़ियों में एक हैं. वह एक ऐसे परिवार में पले बढ़े जहां खेल के लिए बहुत सारा उत्साह था. उनका कहना है कि उन्होंने फुटबॉल और हॉकी से शुरुआत की. हालांकि बाकी खिलाड़ियों से कद में बहुत ज्यादा अंतर होने की वजह से उन्होंने बैडमिंटन को चुन लिया. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि खेल अनुशासन और एकता सिखाता है, "और यह भी कि आपको दूसरों का ख्याल रखना है."
वह दूसरों के लिए सलाहकार का काम कर अपना ज्ञान दूसरे युवाओं को देना चाहते हैं. उनका कहना है कि खेल जागरूकता पैदा करने का बहुत अच्छा तरीका है. धारमाइ कहते हैं, "समाज को हमें जिस रूप में हम हैं उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए, हमें बेहतर समझना चाहिए. जब हम देश के लिए मेडल जीतते हैं तो यह एक तरह से लोगों के लिए आंखे खोलने जैसा है कि हम सक्षम हैं."
डब्ल्यूडीजी में सबसे युवा एथलीट
लुइजा बीयरमन, कोरा गेर्ट्स और फ्रीडा जूनी इस साल के वर्ल्ड ड्वार्फ गेम्स में सबसे युवा खिलाड़ी थे. जर्मनी के इन तीनों खिलाड़ियों की उम्र 11 साल है. बीयरमन कहती हैं, "अब तक मैं एथलेटिक्स को शौकिया तौर पर बिना किसी क्लब या कोच के सहारे खेलती रही हूं." इसी तरह गेर्ट्स ने कहा, "कुछ ढूंढ पाना बहुत मुश्किल था लेकिन उसके बाद मैंने तैराकी को खोज लिया. मैं तीन साल से एक क्लब में ट्रेनिंग कर रही हूं."
गेर्ट्स ने बताया कि क्लब में वो आराम से ट्रेनिंग करती हैं और उन्हें कई दोस्त भी मिल गए हैं. वह उन लोगों के साथ भी आराम से तैर लेती हैं जो उनकी तुलना में काफी तेज हैं." जूनी भी तैराक हैं. वह कहती हैं कि उनके लिए यह काफी प्रेरणादायी है, "मैं हमेशा लंबे लोगों को लक्ष्य बना कर चलती हूं और इस तरह से मैं तेज हो रही हूं." दुनिया भर से आए इन्हीं के जैसे बाकी खिलाड़ी भी इसी तरह से काफी उत्साह में हैं. हालांकि उन्हें अभी यह नहीं पता कि वर्ल्ड ड्वार्फ गेम्स के अगले संस्करण में वो हिस्सा ले पाएंगे या नहीं. 2027 में ये गेम ऑस्ट्रेलिया में होंगे.
खिलाड़ियों के लिए धन की समस्या
बहुत से खिलाड़ियों के लिए एक बड़ी समस्या यात्रा और अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों के लिए पैसे जुटाने की है. अकसर उन्हें अपने लिए खुद ही पैसे चुकाने पड़ते हैं. एक पेशेवर एथलीट के रूप में धरमाइ इस मामले में खुशकिस्मत हैं कि उन्हें सपोर्ट करने वाले कुछ प्रायोजक हैं. नलिनी को उनकी कंपनी सहायता देती है. उनका कहना है कि भारत सरकार ने बौने एथलीटों के महत्व को समझा है और धीरे धीरे फंडिंग की स्थिति में सुधार कर रही है. उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में भारत के बौने एथलीटों के लिए दूसरों के साथ ट्रेनिंग आसान होगी. आखिरकार, यह देश "इतना बड़ा है और हम लोग हर जगह हैं."
जर्मन एसोसिएशन के लिए आर्थिक चुनौती
जर्मन एसोसिएशन ऑफ शॉर्ट सैचुरेटेड पीपल एंड देयर फैमिलीज यानी बीकेएमएफ ने इस साल के खेलों का आयोजन किया था. बीकेएमएफ की अध्यक्ष पैट्रीशिया कार्ल इनिंग ने डीडब्ल्यू को बताया कि जर्मन एनजीओ आक्शियोन मेंश और कोलोन में जर्मन स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के सहयोग के बावजूद उन पर इसका काफी बोझ पड़ा है, "हालांकि जो अनुभव और मुकाबले हुए हैं उनके लिहाज से इसका काफी महत्व है. यह प्लेटफॉर्म बहुत अनोखा है."
नलिनी ने बताया कि आयोजन काफी अच्छा रहा और एथलीट इस साल जर्मनी आ कर काफी खुश हुए. भारतीय टीम की सबसे बुजुर्ग खिलाड़ी के रूप में वह अपनी तरह के बच्चों और युवा खिलाड़ियों को सलाह देती हैं. नलिनी ने जोर देकर कहा, "जरूरी है कि हर चीज के लिए कोशिश की जाए और जब यह काम ना कर रहा हो तब भी आगे बढ़ते रहा जाए."
बैडमिंटन चैंपियन धरमाई कहते हैं कि समाज को चुनौती देना जरूरी है और, "खुद को दिखाना" सिर्फ तभी भेदभाव और पूर्वाग्रह खत्म होगा. यह कहने के कुछ ही घंटे बाद उन्होंने एक गोल्ड मेडल जीत लिया.