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स्वास्थ्यसंयुक्त राज्य अमेरिका

अमेरिकी कटौती के चलते mRNA वैक्सीनों के विकास पर संकट गहराया

मैथ्यू वार्ड आगीयूस
१८ अगस्त २०२५

अमेरिकी सरकार के एमआरएनए वैक्सीन के रिसर्च बजट में कटौती से ना सिर्फ नई वैक्सीन बनाने के प्रयासों पर असर पड़ेगा, बल्कि ये काफी महंगी भी हो सकती हैं.

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जर्मन कंपनी बायोनटेक के रिसर्चर mRNA वैक्सीन पर रिसर्च करते हुए
जर्मन कंपनी बायोनटेक के रिसर्चर mRNA वैक्सीन पर रिसर्च करते हुएतस्वीर: Thomas Lohnes/AFP/Getty Images

एमआरएनए वैक्सीन को कोरोना महामारी को खत्म करने और लाखों लोगों की जान बचाने में मदद करने का श्रेय दिया जाता है. उसके काफी पहले से दुनिया के कई देशों में रिसर्चर कई तरह के गंभीर संक्रामक रोगों और खासकर कैंसर की रोकथाम के लिए एमआरएनए वैक्सीनें विकसित करने में लगे हैं. अब अमेरिकी स्वास्थ्य सचिव रॉबर्ट एफ कैनेडी ने एमआरएनए तकनीक से जुड़े रिसर्च के बजट में कटौती की घोषणा की है, जिससे इस दिशा में हो रही प्रगति बुरी तरह प्रभावित हुई है. अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग ने 8 अगस्त को घोषणा की थी कि वह ऐसे कॉन्ट्रैक्ट रद्द करेगा और 50 करोड़ डॉलर के रिसर्च फंड को वापस ले लेगा.

यह घोषणा, राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में लाई गई कई विज्ञान-विरोधी नीतियों की कड़ी में एक और कदम है. इनमें संघीय शोध अनुदानों पर राजनीतिक कब्जा और विश्व स्वास्थ्य संगठन से बाहर निकलना भी शामिल है. अमेरिकी सरकार के इस कदम से एमआरएनए वैक्सीन के विकास का भविष्य अब अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण हो सकता है. आइए जानते हैं कि इससे कितना गंभीर असर हो सकता है.

सुरक्षित और असरदार रही है एमआरएनए वैक्सीन

एमआरएनए वैक्सीन का परीक्षण सबसे पहले 1990 के दशक में फ्लू के खिलाफ चूहों पर किया गया था. फिर 2013 में रेबीज के खिलाफ इंसानों पर किया गया. इतने दशकों के शोध और परीक्षण की बदौलत ही कोरोना महामारी के दौरान एमआरएनए वैक्सीन तकनीक तैयार की गई और यह सुरक्षित रही.

अमेरिकी स्वास्थ्य सचिव कैनेडी लंबे समय से इस तरीके के आलोचक रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में कहा कि एमआरएनए प्रोग्राम ‘समस्याग्रस्त' हैं. कैनेडी ने वीडियो में कहा, "हमारा मुख्य ध्यान ऐसी वैक्सीन बनाने पर है जो ज्यादा सुरक्षित और असरदार हों. इसमें ‘होल-वायरस' वैक्सीन जैसी तकनीक शामिल हैं, ताकि अगर वायरस अपना रूप बदल भी ले तो भी वैक्सीन असरदार हो.”

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किस तरह की वैक्सीन विकसित की जा रही हैं?

कई तरह की वैक्सीन विकसित हो रही हैं, जो अलग-अलग तरीकों से शरीर को वायरस से लड़ने में मदद करती हैं. हर तरह की वैक्सीन के अपने फायदे और सीमाएं होती हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी कौन सी है, किसे वैक्सीन देनी है, और इसे बनाने में कितना समय और पैसा लगेगा.

वैक्सीन बनाने के कई तरीके हैं. इनमें से एक तकनीक में वायरस को कमजोर करके लाइव वैक्सीन बनाई जाती है. वहीं, दूसरी तकनीक में उसे पूरी तरह से निष्क्रिय करके वैक्सीन बनाई जाती है. उदाहरण के लिए, पोलियो वैक्सीन दोनों रूपों में उपलब्ध है. टॉक्साइड-आधारित वैक्सीन भी होती हैं, जिनमें निष्क्रिय किए गए बैक्टीरियल टॉक्सिन का उपयोग किया जाता है. इसके अलावा, वायरल वेक्टर वैक्सीन भी हैं, जिनमें शरीर में छोटे वायरस के टुकड़े डालकर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को सिखाया जाता है कि वायरस से कैसे लड़ना है.

डीएनए-आधारित थेरेपी को भी एक नया तरीका माना जा रहा है, जिससे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस से लड़ने के लिए सही निर्देश दिए जा सकें. जर्मनी के हेल्महोल्त्स सेंटर फॉर इंफेक्शन रिसर्च के वायरल इम्यूनोलॉजिस्ट लुका सिसिन-साइन, रेस्पिरेटरी सिंकिटियल वायरस (आरएसवी) के लिए वैक्सीन विकसित करने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे हैं. आरएसवी वैक्सीन एक वायरल वेक्टर प्रॉडक्ट है, जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली में आरएसवी स्पाइक प्रोटीन पहुंचाने के लिए कम जोखिम वाले माउस वायरस का उपयोग करता है. हालांकि, अभी इसका परीक्षण किया जा रहा है. फिर भी, सिसिन-साइन को उम्मीद है कि उनकी वैक्सीन की सिर्फ एक खुराक से आरएसवी के खिलाफ लंबे समय तक सुरक्षा मिलेगी.

कैसी होंगी भविष्य की दवाएं

कई अन्य वैक्सीन भी काम की हैं, लेकिन वे उतनी असरदार नहीं हैं जितनी एमआरएनए वैक्सीन. एमआरएनए तकनीक का फायदा यह है कि इसे किसी भी नए वायरस से लड़ने के हिसाब से बहुत जल्दी बदला जा सकता है. किंग्स कॉलेज लंदन की फार्मास्युटिकल फिजिशियन पेनी वार्ड ने कहा, "एक बार जब आप वायरस की संरचना और जेनेटिक्स को समझ लेते हैं, तो आप बेहद तेजी से वैक्सीन बना सकते हैं.”

कभी-कभी एमआरएनए वैक्सीन शरीर को वायरस से लड़ने के लिए सिखाने में अन्य वैक्सीन से ज्यादा असरदार हो सकती हैं. वार्ड ने कहा, "डीएनए वैक्सीन लेने पर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली वैसी प्रतिक्रिया नहीं देती, जैसी कि एमआरएनए वैक्सीन लेने पर देती है.”

क्या एमआरएनए रिसर्च पर असर से अन्य वैक्सीन को फायदा होगा?

इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि 50 करोड़ डॉलर का यह फंड अन्य वैक्सीन की रिसर्च के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. कैनेडी हमेशा से वैक्सीन की आलोचना करते रहे हैं. उन्होंने उस कमेटी को बर्खास्त कर दिया है जो वैक्सीन पर सलाह देती थी. उन्होंने वैक्सीन विरोधी बातें भी कही हैं, जिनमें मई में अमेरिका में चेचक फैलने के दौरान की गई टिप्पणी भी शामिल है.

सिसिन-साइन को इस बात की चिंता है कि एमआरएनए वैक्सीन की रिसर्च में बजट कटौती से इस क्षेत्र में हो रही पूरी रिसर्च पर बुरा असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि एमआरएनए वैक्सीन से सभी समस्याएं हल हो जाएंगी, लेकिन जब हमारे पास यह एक अच्छा विकल्प है, तो हमें इसका इस्तेमाल बंद क्यों करना चाहिए?”

उन्होंने आगे कहा कि कैनेडी की ओर से फंडिंग में की गई इस कटौती से एमआरएनए तकनीक को लेकर हो रहे काम की गति धीमी हो जाएगी. अमेरिकी वैज्ञानिकों को शोध जारी रखने के लिए विदेशों में फंडिंग के स्रोत तलाशने पर मजबूर होना पड़ेगा. यह स्थिति अमेरिका में वैक्सीन विज्ञान के क्षेत्र में हो रही प्रगति को बाधित कर सकती है.

क्या अन्य संस्थाएं धन मुहैया कराने के लिए आगे आएंगी?

एमआरएनए वैक्सीन तकनीकों को फंड करने के लिए अन्य निजी और परोपकारी अनुसंधान फंड मौजूद हैं, लेकिन उनसे ट्रंप प्रशासन की ओर से की गई 50 करोड़ डॉलर की कमी को पूरा करना मुश्किल है. इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि अन्य देश की सरकारें अमेरिकी सरकार की इस कटौती को पूरा करने के लिए आगे आएंगी. सिसिन-साइन कहते हैं, "यूरोप में फंडिंग स्थिर रही है. साथ ही, ऐसे निजी निवेशकों की संख्या काफी कम है जो यह मानते हों कि वैक्सीन में पैसा लगाना उनके वेंचर कैपिटल का सबसे अच्छा इस्तेमाल है.”

वार्ड ने वैक्सीन अनुसंधान में सरकारी फंड की कटौती से होने वाली एक और समस्या का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि जो सरकारें वैक्सीन अनुसंधान को फंड करती हैं, उन्हें सफल उत्पादों तक सबसे पहले पहुंच मिलती है. इसी वजह से ब्रिटेन के लोगों को सबसे पहले ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन मिला था. वार्ड ने डीडब्ल्यू को बताया, "सरकारी फंडिंग से यह पक्का होता है कि जिन देशों ने उन उत्पादों के लिए आंशिक रूप से वित्तीय सहयोग दिया है, उन्हें वे उत्पाद पहले मिलें.”

अगर निजी निवेशक एमआरएनए वैक्सीन के अनुसंधान में पैसा लगाते हैं, तो हो सकता है कि आम लोगों को ये वैक्सीन सस्ती कीमत पर उपलब्ध न हो पाएं. वार्ड ने कहा, "अगर इस दिशा में आगे बढ़ना है और सरकारी फंडिंग का कोई स्रोत नहीं है, तो उद्योग इस शोध के लिए पैसे तभी देंगे जब उन्हें लगेगा कि इसका बाजार है और इससे उन्हें फायदा होगा. हालांकि, इसका सीधा असर यह होगा कि जब वैक्सीन बनेगी तो वह बहुत महंगी होगी.” सिसिन-साइन कहते हैं, "आप इसे किसी भी नजरिए से देखें, कुल मिलाकर नकारात्मक असर ही होगा.”