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ब्रिक्स से इतना डरे हुए क्यों हैं डॉनल्ड ट्रंप?

निक मार्टिन
११ जुलाई २०२५

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्रिक्स के उन देशों पर ज्यादा शुल्क लगाने की घोषणा की है जो अमेरिकी ताकत को चुनौती देने वाले इस समूह की योजनाओं में शामिल होंगे. आखिर ट्रंप ब्रिक्स समूह से क्यों डरे हुए हैं?

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रूसी नेता पुतिन और चीन के शी इस बार ब्राजील में हुई ब्रिक्स देशों की बैठक से दूर ही रहे लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने हिस्सा लिया
रूसी नेता पुतिन और चीन के शी इस बार ब्राजील में हुई ब्रिक्स देशों की बैठक से दूर ही रहे लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने हिस्सा लियातस्वीर: Mika Otsuki/AP/picture alliance

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका सहित तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं वाले ब्रिक्स समूह पर सख्त रुख अपना रहे हैं. उनका कहना है कि ये देश अमेरिकी डॉलर की ताकत को कमजोर करना चाहते हैं. उनकी कोशिशें अमेरिका के आर्थिक वर्चस्व के लिए खतरा हैं.

जैसे ही ब्रिक्स नेता अपने वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए रियो डी जेनेरियो में इकट्ठा हुए, ट्रंप ने रविवार को इस समूह की ‘अमेरिका विरोधी नीतियों' का समर्थन करने वाले किसी भी देश पर 10 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाने की कसम खाई. इससे मौजूदा और संभावित व्यापार शुल्कों पर दबाव ज्यादा बढ़ गया है.

वाइट हाउस के मुताबिक, उच्च शुल्क पर ट्रंप सरकार की 90 दिवसीय रोक भी बुधवार को खत्म हो गई है. दर्जनों देशों को उनके नए अमेरिकी आयात शुल्क के बारे में जानकारी देने के लिए पत्र भेजे गए हैं.

7 जुलाई को ट्रंप ने 14 देशों के प्रमुखों को पत्र भेज कर अमेरिका की नई टैरिफ दरों की जानकारी दी
7 जुलाई को ट्रंप ने 14 देशों के प्रमुखों को पत्र भेज कर अमेरिका की नई टैरिफ दरों की जानकारी दीतस्वीर: Evelyn Hockstein/REUTERS

इस साल जनवरी में ट्रंप ने ‘डॉलर के साथ खिलवाड़ करने वाले' देशों पर 100 फीसदी शुल्क लगाए जाने की धमकी दी थी. इस लिहाज से, इस बार उन्होंने काफी कम शुल्क लगाए जाने की बात कही है, लेकिन ट्रंप अभी भी इस बात पर अड़े हुए हैं कि दुनिया की सबसे प्रमुख मुद्रा को बचाना बहुत जरूरी है.

पिछले एक दशक में, ब्रिक्स के सदस्यों की संख्या चार से बढ़कर दस हो गई है. इनमें इंडोनेशिया भी शामिल है, जो जनवरी में इस समूह से जुड़ा था. सऊदी अरब को सदस्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन उसने अभी तक अपनी स्थिति की पुष्टि नहीं की है. इस समूह में नौ सहयोगी देश भी हैं, जबकि दर्जनों अन्य देश इसमें शामिल होने की कतार में हैं.

चीन इस समूह को जी7 (सात धनी देशों के समूह) के विकल्प के तौर पर बताता है. यह समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई हिस्से और दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, जो इसकी बढ़ती वैश्विक अहमियत को दिखाता है.

ब्रसेल्स स्थित थिंक टैक ‘ब्रूगेल' की सीनियर फेलो एलिसिया गार्सिया-हेरेरो ने डीडब्ल्यू को बताया, "ट्रंप की चिंता जायज है. ब्रिक्स समूह साफ तौर पर पश्चिम विरोधी रुख अपनाए हुए है. इसका मकसद दुनिया की मौजूदा व्यवस्था को बदलना है.”

डॉलर पर निर्भरता कम करने का कोई और विकल्प नहीं

ब्रिक्स ने हाल ही में सदस्यों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देकर डॉलर पर निर्भरता कम करने के प्रयासों को तेज कर दिया है.

पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और शुल्कों से परेशान होकर, रूस और चीन डॉलर के प्रभुत्व को खत्म करने की मुहिम चला रहे हैं. इसके तहत वे ऊर्जा सौदों का भुगतान रूबल और युआन में कर रहे हैं. इसी बीच, भारत ने भी 2023 से सस्ता रूसी तेल खरीदने के लिए युआन, रूबल, और यहां तक कि संयुक्त अरब अमीरात की मुद्रा दिरहम का भी इस्तेमाल किया है.

ब्रिक्स देशों की सोने पर आधारित साझा मुद्रा ‘यूनिट' बनाने की बड़ी योजना अभी अटक गई है. इसकी वजह यह है कि समूह के बड़े सदस्यों के बीच आपस में सहमति नहीं बन पा रही है. चीन के युआन को ज्यादा मजबूत होता देखकर भारत ने इस योजना को अस्वीकार कर दिया है. 2025 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाला ब्राजील भी चाहता है कि एक नई ब्रिक्स मुद्रा बनाने के बजाय आपसी व्यापार अपनी-अपनी मुद्राओं में ही हो.

फ्रांसीसी निवेश बैंक ‘नैटिक्सिस' में मुख्य अर्थशास्त्री (एशिया प्रशांत) गार्सिया-हेरेरो ने कहा, "चीन और रूस के प्रभाव में ब्रिक्स में जो पश्चिम विरोधी बातें हो रही हैं, भारत और ब्राजील उन्हें संतुलित करने की कोशिश कर रहे हैं.”

ब्रिक्स मुद्रा: क्या टैरिफ बढ़ाने की ट्रंप की धमकी जायज है?

ब्रिक्स की वेबसाइट के अनुसार, 2024 में होने वाले लगभग 33 ट्रिलियन डॉलर के वैश्विक व्यापार में से, ब्रिक्स देशों के भीतर व्यापार केवल 3 फीसदी या लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का था. अर्थशास्त्री हर्बर्ट पोएनिश ने डीडब्ल्यू को बताया, "वैश्विक व्यापार का बड़ा हिस्सा अभी भी डॉलर और अन्य पारंपरिक मुद्राओं में ही होता है. इस व्यवस्था को खत्म करने में बहुत समय लगेगा.”

दुनिया के करीब 90 फीसदी लेन-देन और 59 फीसदी फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व में अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल होता है. इसलिए, कई विशेषज्ञों का मानना है कि डॉलर की जगह किसी और मुद्रा का इस्तेमाल फिलहाल संभव नहीं है. डॉलर को हटाने की प्रक्रिया (डी-डॉलराइजेशन) अभी दूर की बात है.

उनका मानना है कि ब्रिक्स की किसी भी वैकल्पिक मुद्रा को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. जैसे, चीन की मुद्रा युआन पर सख्त नियंत्रण है, रूबल बहुत अस्थिर है और कुछ देश डॉलर को छोड़ना नहीं चाहते हैं.

ब्रिक्स में सदस्य देशों की बढ़ रही संख्या, लेकिन प्रगति बहुत कम

हाल ही में मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया जैसे देशों के शामिल होने के साथ-साथ अल्जीरिया और मलेशिया जैसे संभावित नए साझेदारों की मौजूदगी से यह साफ है कि ब्रिक्स तेजी से विस्तार की राह पर है.

कई देश व्यावहारिक कारणों से इस समूह की ओर आकर्षित हो रहे हैं. वे ऐसी वैश्विक व्यवस्था चाहते हैं जिसमें केवल पश्चिमी देशों का दबदबा न हो. उनका मानना है कि ब्रिक्स ग्लोबल साउथ (दक्षिणी देशों) की आवाज को वैश्विक मंच पर और मजबूती से सामने लाएगा.

पश्चिमी प्रतिबंधों से डरने वाले देश, जैसे ईरान और रूस उम्मीद कर रहे हैं कि ब्रिक्स उनकी अर्थव्यवस्थाओं को बचाने में मदद करेगा. इसके लिए वे ब्रिक्स पे और ब्रिक्स ब्रिज जैसे प्रस्तावित विकल्पों पर भरोसा कर रहे हैं, जो कि पश्चिमी भुगतान प्रणाली स्विफ्ट का विकल्प बनने की योजना में हैं.

अन्य देश, जैसे इथियोपिया और मिस्र, ऐसी आर्थिक मदद चाहते हैं जिसमें पश्चिमी मदद की तरह राजनीतिक शर्तें न जुड़ी हों, लेकिन ट्रंप की हालिया धमकी उन्हें दोबारा सोचने पर मजबूर कर सकती है. गार्सिया-हेरेरो ने डीडब्ल्यू को बताया, "अचानक, ब्रिक्स का हिस्सा बनने की एक कीमत चुकानी पड़ रही है. यह शायद कुछ देशों, खासकर गरीब देशों को हतोत्साहित करेगा.”

हालांकि, ब्रिक्स समूह में सदस्यों की संख्या बढ़ रही है और इसके वादे भी बड़े-बड़े हैं, फिर भी यह समूह अपने इरादों को जमीन पर उतारने में संघर्ष कर रहा है. इसमें संस्थागत एकता की कमी है और गहरे भू-राजनीतिक मतभेद हैं, खासकर भारत और चीन के बीच.

नई वित्तीय संस्थाएं बनाने की कोशिशें बहुत सीमित और संभल-संभल कर की गई हैं. विश्व बैंक के प्रतिद्वंद्वी माने जाने वाले न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) अब तक सिर्फ 39 अरब डॉलर का लोन दे पाया है, जबकि विश्व बैंक ने 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है.

ब्रिक्स के नेताओं को अब यह तेजी से एहसास हो रहा है कि सिर्फ सदस्य बढ़ा लेने से प्रभाव नहीं बढ़ता. कुछ जानकारों का मानना है कि अगर इस समूह के पास कोई स्पष्ट रणनीति, बेहतर तालमेल और ठोस विकल्प नहीं हुए, तो यह बदलाव लाने वाली ताकत बनने के बजाय सिर्फ एक प्रतीकात्मक क्लब बनकर रह जाएगा.

अर्थशास्त्री हर्बर्ट पोएनिश ने डीडब्ल्यू को बताया, "ट्रंप को चिंतित नहीं होना चाहिए. ब्रिक्स अभी शुरुआती दौर में है. इसमें शामिल देशों की प्राथमिकताएं काफी अलग-अलग हैं, जिन्हें एक करना काफी मुश्किल काम होगा.”

वैचारिक मतभेदों को सुलझाना मुश्किल

कई मतभेदों के बावजूद, ब्रिक्स नेताओं ने ब्राजील सम्मेलन के दौरान ट्रंप की शुल्क नीति पर सख्त रुख अपनाया. सोमवार (7 जून) को जारी एक घोषणा पत्र में नेताओं ने एकतरफा प्रतिबंधों और संरक्षणवादी शुल्कों की आलोचना की. हालांकि उन्होंने ट्रंप का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया. इस समूह ने चेतावनी दी कि इस तरह के कदम ‘वैश्विक व्यापार को बिगाड़ते हैं' और विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन करते हैं.

अब ब्रिक्स सिर्फ आर्थिक मुद्दों तक सीमित नहीं रहा. नेताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), जलवायु परिवर्तन और वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिलकर काम करने की बात कही. साथ ही, दुनिया में चल रहे संघर्षों की आलोचना भी की.

ब्रिक्स देशों की ब्राजील में अहम बैठक: अमेरिकी टैरिफ संकट, डॉलर प्रभुता और नई वैश्विक रणनीतियां

ब्रिक्स नेताओं ने पिछले महीने ईरान पर हुए हमलों को ‘अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन' बताया, लेकिन उन्होंने अमेरिका या इस्राएल का नाम नहीं लिया. इसके साथ ही उन्होंने फलीस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने का समर्थन दोहराया और गाजा में ‘भुखमरी को हथियार की तरह इस्तेमाल करने' की निंदा की.

रूस ब्रिक्स का हिस्सा है. इसलिए, घोषणा पत्र में उसकी सीधी आलोचना नहीं की गई, लेकिन इसमें यूक्रेन द्वारा रूसी बुनियादी ढांचे पर किए गए हमलों की निंदा की गई और ‘स्थायी शांति समाधान' की अपील की गई.

ब्रिक्स नेताओं ने बहुपक्षीय सहयोग, अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने ब्राजील, भारत और किसी एक अफ्रीकी देश को स्थायी सदस्यता देने का समर्थन भी किया.