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राजनीतिअफगानिस्तान

अफगान शरणार्थियों को बाहर क्यों निकाल रहा है पाकिस्तान

हारून जंजुआ (इस्लामाबाद से)
२८ फ़रवरी २०२५

पाकिस्तान ने अफगानों को वापस भेजने की कोशिशें फिर से शुरू कर दी है. इससे तालिबान के कई विरोधियों पर इस्लामी शासन वाले देश में वापस जाने का खतरा मंडरा रहा है. इन सब के बीच बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान ऐसा क्यों कर रहा है?

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पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों को बड़े स्तर पर बाहर निकालने का सिलसिला 2023 से शुरु हुआ
पाकिस्तान से अफगान शरणार्थियों को बड़े स्तर पर बाहर निकालने का सिलसिला 2023 से शुरु हुआतस्वीर: FAROOQ NAEEM/AFP/Getty Images

फातिमा (बदला हुआ नाम) दिसंबर 2021 में अपने परिवार के साथ अफगानिस्तान से भाग निकली थीं. वह 2021 की गर्मियों में अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान से जाने और तालिबान के दोबारा सत्ता में आने तक काबुल में एक अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन के लिए काम करती थीं.

अब वह पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में रहती हैं और फिलहाल काफी मुश्किल में हैं. उनका पाकिस्तानी वीजा समाप्त होने में कुछ ही दिन बचा है और अधिकारी अभी भी उनके वीजा को बढ़ाने के आवेदन पर विचार कर रहे हैं.

फातिमा ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैं अपने वीजा के रीन्यूअल को लेकर परेशान हूं. अगर समय पर वो रीन्यू नहीं किया गया, तो अधिकारी मुझे और मेरे परिवार को देश में अवैध रूप से रहने के आरोप में गिरफ्तार कर लेंगे.”

हाल ही में महिला अधिकारियों को साथ लेकर पुलिस ने बिना दस्तावेज वाले अफगान शरणार्थियों की तलाश में एक इमारत में छापेमारी की. फातिमा भी इसी इमारत में रहती हैं. छापेमारी के समय फातिमा इमारत में नहीं थीं, लेकिन उनके भाई को हिरासत में ले लिया गया.

फातिमा कहती हैं, "बाद में, हमने उन्हें अपने वीजा नवीनीकरण आवेदन की रसीदें और सबूत दिखाए, लेकिन पुलिस ने सहयोग नहीं किया.” फातिमा अब अधिकारियों से छिपकर रह रही हैं.

इस्लामाबाद और रावलपिंडी में समाप्त हो रहा शरणार्थियों का समय

वर्ष 2023 में पाकिस्तान ने पिछले 40 सालों में देश में आए लगभग 40 लाख अफगानों को वापस भेजने का एक बड़ा अभियान शुरू किया. पिछले साल अधिकारियों ने थोड़ी ढील दी थी, लेकिन अब पाकिस्तान सरकार ने देश में गैर-कानूनी रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों को निकालने के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय कर दी है. इसके तहत, जनवरी और फरवरी में तलाशी अभियान भी जारी है.

कानून विशेषज्ञ और मानवाधिकार कार्यकर्ता उमर गिलानी ने डीडब्ल्यू को बताया, "इस्लामाबाद और उसके नजदीकी शहर रावलपिंडी में रहने वाले ‘अफगान शरणार्थियों को 28 फरवरी तक पाकिस्तान छोड़ने के लिए मौखिक रूप से कहा गया है'.

पाकिस्तान में शरणार्थियों के लिए काम करने वाली वकील मोनिजा काकर ने कहा कि क्षेत्र में अफगानी नागरिकों के बीच ‘अनिश्चितता और भय' का माहौल है. उन्होंने कहा, "इस साल की शुरुआत से, इस्लामाबाद में 1,000 से अधिक अफगानों को हिरासत में लिया गया है. सरकारी आदेशों के कारण 18,000 से अधिक लोगों को इस्लामाबाद और रावलपिंडी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है.”

‘हमने कई वर्षों तक अमेरिका के लिए काम किया'

28 वर्षीय अमीन काबुल से हैं. उन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका का कई वर्षों तक साथ दिया. जब तालिबान फिर से सत्ता में आ गया, तो वह भागकर पाकिस्तान आ गए.

उन्होंने कहा कि कुछ ही दिनों बाद उन्हें अमेरिका ले जाया जाना था, लेकिन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा पिछले महीने शरणार्थी पुनर्वास कार्यक्रम को निलंबित करने के एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने के बाद उनके जाने पर रोक लग गई है.

ट्रंप के आदेश का खामियाजा भुगत रहे पाकिस्तान में फंसे अफगान

फिलहाल, पाकिस्तान में लगभग 20,000 अफगान अमेरिकी सरकार के कार्यक्रम के माध्यम से अमेरिका में पुनर्वास के लिए मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं.

अमीन ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमने वर्षों तक अमेरिकियों के साथ काम किया है. हमने अफगानिस्तान में उनकी मदद की और उनका साथ दिया. हमने उन्हें अपने जीवन का एक हिस्सा दिया है और अब उन्हें हमारा साथ देना होगा, ताकि हम शांति से रह सकें.”

काबुल और इस्लामाबाद के बीच बढ़ रहा विवाद

पिछले तीन वर्षों में पड़ोसी अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते खराब हो गए हैं. इस्लामाबाद मानता है कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) नाम के एक आतंकवादी संगठन को काबू में नहीं रख पा रही है. यह आतंकवादी संगठन 2007 में बना था और इसने पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर कई बार हमले किए हैं.

तालिबान सरकार के साथ सीमा पर तनाव बढ़ने के कारण, पाकिस्तान में अफगानों के साथ कथित तौर पर डराने-धमकाने और गिरफ्तारियों की खबरों से उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ी है. संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने अपनी चिंता जताते हुए कहा कि उस इलाके में अफगानों के साथ इंसानियत भरा व्यवहार होना चाहिए.

मानवाधिकार कार्यकर्ता गिलानी ने कहा कि पाकिस्तान में लाखों अफगान शरणार्थियों को ‘दोनों देशों के बीच तनाव होने पर दबाव बनाने के लिए बंधक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.'

पिछले सप्ताह, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान में अफगान शरणार्थियों के साथ दुर्व्यवहार के संबंध में अफगान प्रतिनिधियों द्वारा किए गए दावों को खारिज कर दिया था. मंत्रालय ने इन आरोपों को ‘गलत' करार दिया था और अफगानिस्तान से आग्रह किया कि वे अपने नागरिकों को आसानी से वापसी करा ले.

दशकों तक पाकिस्तान में रहने के बाद मजबूरन जाना पड़ा

पाकिस्तान ने अपने उत्तरी पड़ोसी देश से आए लाखों शरणार्थियों को जगह दी है, जो कई दशकों से इलाके में चल रही अशांति की वजह से हुआ है. अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद जो अफगानी पाकिस्तान आए, वे देश में रहने के लिए वीजा को बार-बार रिन्यू करवा रहे हैं, जो कि एक खर्चीला, अनिश्चित और अक्सर बहुत देर से होने वाला काम है.

काकर ने कहा, "शरणार्थियों की कहानियाँ बहुत ही भयावह हैं. जो परिवार वर्षों, यहां तक कि दशकों से पाकिस्तान में रह रहे हैं, वे अब दोनों देशों के बीच तनाव के कारण उजड़ रहे हैं. बच्चे, महिलाएं और पुरुष जो पहले ही बहुत कुछ झेल चुके हैं, उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है कि मानो उनकी कोई अहमियत ही न हो. यह केवल शरणार्थी संकट नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय संकट है.”

पाकिस्तान में यूएनएचसीआर की शीर्ष प्रतिनिधि फिलिपा कैंडलर ने डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान ने सितंबर 2023 से पिछले साल के अंत तक 8,00,000 से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को वापस भेजा है. उन्होंने कहा, "दिसंबर 2024 तक, पाकिस्तान में 28 लाख से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को शरण मिली हुई थी, जिनमें 69 फीसदी शरणार्थी, शरणार्थियों के लिए बने गांव से बाहर रहते थे.”

कैंडलर ने माना कि पाकिस्तान ने दशकों तक अफगान शरणार्थियों को शरण देकर बहुत उदारता दिखाई है. साथ ही, यह भी माना कि पाकिस्तान में अभी जो ‘आर्थिक और सुरक्षा संबंधी मुश्किलें' हैं उन्हीं की वजह से लोगों को वापस भेजने की कोशिशें हो रही हैं.

इन सब के बीच, यूएनएचसीआर ने पाकिस्तान सरकार से आग्रह किया कि वह ‘अफगानों की स्थिति को मानवीय दृष्टिकोण से देखे' और ‘कमजोर अफगानों को सुरक्षा देने की अपनी पुरानी परंपरा जारी रखे, चाहे उनकी स्थिति कुछ भी हो.'

उन्होंने कहा, "यह बहुत जरूरी है कि हम उन देशों के साथ मिलकर काम करें जहां शरणार्थी रह रहे हैं और उन देशों के साथ भी जहां से वो आए हैं, ताकि हम ऐसे तरीके बना सकें जिनसे शरणार्थी सुरक्षित और सम्मान के साथ अपनी जिंदगी फिर से शुरू कर सकें. इसमें शरणार्थियों का अपनी मर्जी से मूल देश वापस जाना भी शामिल है.” वह कहती हैं, "हमारी मांग है कि दोनों देश आपस में बात करें और शरणार्थी समस्या को राजनीति से दूर रखा जाए.”