किन वजहों से डॉनल्ड ट्रंप से टैरिफ समझौता नहीं कर सका भारत?
४ अगस्त २०२५पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से होने वाले आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया. सामने आया कि भारत और अमेरिका के बीच तय समयसीमा में समझौता ना हो पाने की सबसे अहम वजह रहे, कृषि उत्पाद. अमेरिका के साथ लंबी चली व्यापार बातचीत के अंत में भारत अपने कृषि उत्पादों के बाजार में उसे उतना हिस्सा देने को तैयार नहीं हुआ, जितना अमेरिका चाहता था.
भारत की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी है. फिर भी भारत के कुल कामगारों में से करीब आधे आज भी इसी क्षेत्र में काम करते हैं. ऐसे में बहुत कमाई वाला क्षेत्र ना होने के बाद भी कृषि भारत में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देता है और इस वजह से ये राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील भी होता है. केंद्र की मजबूत मोदी सरकार को चार साल पहले जिस तरह से विवादित कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था, वह इस क्षेत्र की राजनीतिक ताकत को दिखाता है.
डॉनल्ड ट्रंप बहुत सारे कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार को खोलने का दबाव बना रहे थे, मसलन अमेरिकी डेयरी उत्पाद, पोल्ट्री, मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं, इथेनॉल, फल और ड्राई फ्रूट्स. भारत अमेरिकी ड्राई फ्रूट्स और सेबों के लिए अपने बाजार को खोलने को तैयार था लेकिन मक्के, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी उत्पादों पर बात अटकी हुई थी और इन पर आखिरी वक्त तक सहमति नहीं बन सकी.
जीएम फसलों पर मतभेद
इस बातचीत में सबसे अहम कड़ी ये थी कि अमेरिका से आने वाला ज्यादातर मक्का और सोयाबीन, जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम कैटेगरी का होता है. भारत जीएम फसलों को बेचे जाने की अनुमति नहीं देता है.
भारत में आमतौर पर जीएम फसलों को इंसानी सेहत और पर्यावरण के लिए खतरनाक माना जाता है. भारत के सत्ताधारी दल बीजेपी से जुड़े कई कृषि संगठन जीएम फसलों का विरोध करते रहे हैं. यहां तक कि खुद भारत में ही विकसित की गई, ज्यादा उपज देने वाली जीएम सरसों की एक किस्म की व्यापारिक खेती की अनुमति नहीं है क्योंकि इस पर अभी कानूनी लड़ाई चल रही है.
जीएम फसलों की तरह ही डेयरी उत्पाद भी भारत में एक बहुत संवेदनशील मसला हैं. दरअसल भारत के लाखों किसानों की आजीविका डेयरी से आती है. डेयरी बिजनेस से जुड़े बहुत से किसान ऐसे भी हैं, जिनके पास पर्याप्त खेती लायक जमीन नहीं है, या ऐसी बहुत कम जमीन है. भारत में कृषि आज भी बहुत हद तक मानसून पर निर्भर रहती है. ऐसे में खराब मानसून वाले वर्षों में, डेयरी उद्योग ही बहुत से किसानों का आखिरी सहारा होता है.
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डेयरी में सांस्कृतिक असहमतियां
भारत, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा मांस नहीं खाता. यहां कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियां भी अमेरिका के लिए डेयरी उद्योग को खोलने में रोड़ा बनीं. भारतीय उपभोक्ताओं की एक चिंता यह भी रही कि अमेरिका में अक्सर जानवरों को मांस आधारित खाना दिया जाता है. यह बात भारतीयों की खाने की आदतों से अलग है.
ज्यादातर खाद्य उत्पादों के मामले में भारत आत्मनिर्भर देश है. बड़े खाद्य उत्पादों में सिर्फ खाद्य तेल है, फिलहाल जिसका बड़ी मात्रा में भारत को आयात करना पड़ता है. तीन दशक पहले खाद्य तेल के आयात में उदारीकरण के बाद, अभी भारत में इस्तेमाल होने वाले कुल खाद्य तेल का दो-तिहाई हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है. भारत ऐसी गलती, अन्य सामान्य कृषि उत्पादों के लिए नहीं करना चाहता है. जबकि भारत के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में इन कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी करीब आधी है.
अमेरिकी किसानों के सामने नहीं टिकेंगे भारतीय किसान
कुछ जानकारों को डर है कि अमेरिका की ओर से सस्ते कृषि उत्पादों का आयात, स्थानीय कृषि उत्पादों का दाम गिरा देगा और इसके साथ ही विपक्षी पार्टी को सत्ताधारी दल पर हमला करने का अवसर मिल जाएगा. भारत सरकार को यह डर भी है कि जिस तरह की छूट वो अमेरिका को देगी, शायद भारत के साथ व्यापार कर रहे, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे ब्लॉक भी वैसी ही छूट अपने लिए भी मांगना शुरू कर देंगे.
भारत और अमेरिका में खेती के तरीकों में भी बहुत अंतर है. इसके चलते भी भारतीय किसान, अमेरिकी किसानों के सामने नहीं ठहर सकते. दरअसल भारत में डेयरी किसानों के लिए काम में आने वाली किसी आम जमीन का इलाका 1.08 हेक्टेयर का है. जबकि अमेरिकी किसान के लिए यह 187 हेक्टेयर का है. वहीं एक आम भारतीय डेयरी किसान के पास दो से तीन मवेशी होते हैं, वहीं एक आम अमेरिकी डेयरी किसान के पास सैकड़ों.
इसके अलावा ज्यादातर भारतीय किसान बिना मशीनों वाली पारंपरिक तकनीकों के हिसाब से अपना काम धंधा चलाते हैं. जबकि अमेरिकी किसान टेक्नोलॉजी का बहुत ज्यादा उपयोग करते हैं और उनका डेयरी उद्योग बहुत ज्यादा कुशल है. जानकार मानते हैं कि भारतीय डेयरी किसान उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे.
राजनीति पर बुरा असर
भारत के अहम लक्ष्यों में से एक है, अपने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के जरिए ऊर्जा आयात को घटाना. इस कार्यक्रम से भारत के किसानों की मदद भी होती है. दरअसल बायोफ्यूल बनाने के लिए गन्ने और मक्के की जरूरत होती है, जिसे स्थानीय किसान उगाते हैं.
भारतीय कंपनियों ने नई डिस्टिलरियों में भारी निवेश कर रखा है और किसानों ने इथेनॉल की जरूरत को पूरा करने के लिए इन फसलों का उत्पादन भी बढ़ाया है. भारत ने हाल ही में पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा किया है.
भारत के पूर्वी राज्य बिहार में जल्द चुनाव हैं, यह मक्के का उत्पादन करने वाला एक अहम राज्य है. अमेरिका से इथेनॉल का आयात, मक्के के स्थानीय दामों को चोट पहुंचाएगा. इससे स्थानीय किसानों का गुस्सा वर्तमान में राज्य की बीजेपी की साझेदारी वाली सरकार के खिलाफ भड़कने का डर है. ऐसे में डिस्टिलरी के बढ़ते उद्योग को भी नुकसान पहुंचेगा और बीजेपी नहीं चाहेगी कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा हो.