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स्वास्थ्यस्विट्जरलैंड

दुनिया भर के बच्चों में तेजी से फैल रहा है कैंसर: डब्ल्यूएचओ

सोनम मिश्रा
५ फ़रवरी २०२५

कैंसर से होने वाली मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है. हर साल लगभग 400,000 बच्चे कैंसर से प्रभावित होते हैं. पीड़ित बच्चों को अगर समय रहते इलाज मिल जाए तो उनकी जान बचाई जा सकती है.

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बच्चे की जांच करता डॉक्टर
हर साल लगभग चार लाख बच्चे और किशोर कैंसर की चपेट में आ जाते हैंतस्वीर: Matej Kastelic/Zoonar/picture alliance

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार साल 2020 में हुई छह में से एक मौत कैंसर की वजह से हुई थी. विश्व कैंसर दिवस के मौके पर डब्लूएचओ ने कहा, "2050 तक दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में कैंसर के नए मामले और मौतों की संख्या 85 फीसदी तक बढ़ सकती है." साल 2022 में, दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में कैंसर के 24 लाख नए मामले सामने आए थे, जिनमें 56,000 बच्चे शामिल थे.

हर साल लगभग चार लाख बच्चे और किशोर कैंसर की चपेट में आ जाते हैं. बच्चों में होने वाले कैंसर में ल्यूकीमिया, ब्रेन ट्यूमर, लिम्फोमा, न्यूरोब्लास्टोमा और विल्म्स ट्यूमर मुख्य रूप से शामिल हैं. बच्चों में होने वाले कैंसर को सामान्य रूप से रोका नहीं जा सकता और स्क्रीनिंग के माध्यम से इसे पहचानना भी मुश्किल है, फिर भी अधिकांश बच्चों में होने वाले कैंसर का इलाज सामान्य दवाओं और उपचार के दूसरे तरीकों, जैसे- सर्जरी और रेडियोथेरेपी के जरिए किया जा सकता है.

डब्ल्यूचओ का बोर्ड
डब्ल्यूचओ के अनुसार साल 2020 में हुई छह में से एक मौत कैंसर से हुई थीतस्वीर: Denis Balibouse/REUTERS

उच्च आय वाले देशों में कैंसर से प्रभावित 80 फीसदी से ज्यादा बच्चों का सफल इलाज हो जाता है. जबकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में केवल 30 फीसदी बच्चों का ही इलाज हो पाता है. मध्यम आय वाले देशों में बच्चों में कैंसर से होने वाली मौतों का कारण इलाज की कमी, गलत इलाज या देर से मिलने वाला इलाज है. उच्च आय वाले देशों में जहां 96 फीसदी लोगों को आसानी से कैंसर की दवाएं मिल जाती हैं वहीं निम्न आय वाले देशों में महज 29 फीसदी लोगों के लिए ही कैंसर की दवाएं सामान्य रूप से उपलब्ध हैं.

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बच्चों में बढ़ते कैंसर की वजह

कैंसर किसी भी शरीर में उम्र देखकर नहीं बनता, यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है और शरीर के किसी भी हिस्से को नुकसान पहुंचा सकता है. इसकी शुरुआत कोशिकाओं में जेनेटिक बदलाव के रूप में शुरू होती है, जो बाद में गांठ या ट्यूमर में बदल सकती है और शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलकर उन्हें भी अपनी चपेट में ले लेती है. समय रहते इलाज न मिलने पर ये मौत की वजह भी बन सकती है.

ज्यादातर बच्चों में कैंसर फैलने के सटीक कारणों के बारे फिलहाल कोई पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन कई अध्ययन बच्चों में कैंसर के लिए पर्यावरण या जीवन शैली से जुड़ी चीजों को जिम्मेदार मानते हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चों के बीच कैंसर की रोकथाम के लिए जरूरी है कि उनके व्यवहार पर ध्यान दिया जाए ताकि वयस्क होने पर उन्हें इससे बचाया जा सके.

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मौजूद आंकड़ो से यह संकेत मिलता है कि लगभग दस फीसदी बच्चों में कैंसर का खतरा जेनेटिक वजहों से होता है. लेकिन कुछ पुराने संक्रमण जैसे- एचआईवी, एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) और मलेरिया से भी बच्चों में कैंसर का जोखिम हो सकता है. कुछ संक्रमण बच्चों के वयस्क होने पर कैंसर के विकसित होने का जोखिम बढ़ा सकते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि बच्चों को बीमारियों से लड़ने के लिए टीके जरूर लगवाए जाएं.

कैंसर का इलाज

अगर समय रहते कैंसर के लक्षण की पहचान हो जाए तो इसका इलाज संभव है. जितने तरह के कैंसर, उतने ही तरह के इलाज. इसलिए यह जरूरी है कि कैंसर की पहचान भी सही से की जाए. इलाज के तीन मुख्य चरण होते हैं. पहला- लक्षणों की पहचान, दूसरा- सही समय पर मूल्यांकन, निदान और स्टेजिंग और तीसरा- जल्द से जल्द इलाज की शुरुआत. सही से इलाज हो तो 80 फीसदी बच्चों का इलाज किया जा सकता है.

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डब्लूएचओ विभिन्न पहलों के जरिए कई देशों को जरूरी सेवाएं मुहैया करा रहा है ताकि वे बच्चों के लिए कैंसर से बचाने वाले कार्यक्रम विकसित कर सकें. इसका लक्ष्य 2030 तक बच्चों में कैंसर के इलाज की दर को बढ़ाकर कम से कम 60 फीसदी तक लाना है.