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व्यापार युद्ध वास्तव में होता क्या है?

आर्थर सलिवन
११ अप्रैल २०२५

डॉनल्ड ट्रंप की ओर से दूसरे देशों पर शुल्क बढ़ाने की होड़ ने चीन के साथ कारोबारी जंग को बढ़ा दिया है. इससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं खतरनाक रास्ते पर चल पड़ी हैं. इसके बाद दूसरे व्यापार युद्ध भी हो सकते हैं.

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न्यूजर्सी के कंटेनर टर्मिनल पर लगी क्रेन और उनके पीछे से उड़ान भरता विमान
अमेरिकी और चीन एक के बाद एक कर आयात शुल्क बढ़ाते जारहे हैंतस्वीर: CHARLY TRIBALLEAU/AFP/Getty Images

अमेरिका के चीन पर लगाए जाने वाले शुल्क को 20 फीसदी तक बढ़ाने के जवाब में बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने करीब एक महीने पहले तीखी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने 4 मार्च को कहा था, "अगर अमेरिका शुल्क युद्ध, व्यापार युद्ध या किसी अन्य तरह का युद्ध जारी रखता है, तो चीन उससे अंत तक लड़ेगा.”

अगर 20 फीसदी की दर होने पर इस तरह की बयानबाजी की जा रही थी, तो अब इसमें कोई शक नहीं है कि अमेरिका और चीन के बीच गंभीर व्यापार युद्ध चल रहा है, क्योंकि अब अमेरिका ने कुल शुल्क को बढ़ाकर 145 फीसदी तक कर दिया है.

बीते बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने चीन के ऊपर लगाए गए नए शुल्क को बढ़ाकर 125 फीसदी कर दिया. इसके बाद, गुरुवार को व्हाइट हाउस ने साफ किया कि चीनी उत्पादकों को अमेरिका में आयात पर कुल 145 फीसदी शुल्क देना होगा, क्योंकि 125 फीसदी का शुल्क साल की शुरुआत में लगाए गए 20 फीसदी के अतिरिक्त है.

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दोनों तरफ से की जा रही बयानबाजी और अमेरिका की ओर से शुल्क में लगातार की जा रही बढ़ोतरी को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि दोनों में से कोई भी देश पीछे हटने को तैयार नहीं है.

चीन ने नई अमेरिकी शुल्क की प्रतिक्रिया में 9 अप्रैल को घोषणा की थी कि वह 10 अप्रैल से सभी अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाकर 84 फीसदी कर देगा. शुक्रवार को उसने इसे बढ़ा कर 125 फीसदी कर दिया. यह वृद्धि वैश्विक अर्थव्यवस्था को संभावित रूप से बहुत नुकसानदेह आर्थिक संघर्ष की ओर ले जा रही है.

व्यापार युद्ध क्या है?

व्यापार युद्ध एक तरह का आर्थिक झगड़ा होता है, जिसमें देश एक-दूसरे देश से आयात की जाने वाली वस्तुओं पर शुल्क और दूसरे तरह के प्रतिबंध लगाते हैं या उन्हें बढ़ा देते हैं. यह आमतौर पर आर्थिक संरक्षणवाद से शुरू होता है यानी कि जब कोई देश अपने देश की चीजों को बचाने के लिए बहुत ज्यादा सख्त सुरक्षा नीति अपनाता है. इसमें अक्सर एक-दूसरे के जवाब में कदम उठाए जाते हैं, जैसे कि आपने बढ़ाया है तो हम भी बढ़ाएंगे.

व्यापार से जुड़े झगड़े और बड़े स्तर के व्यापार युद्ध इतिहास में कई बार हो चुके हैं. 17वीं शताब्दी में पहले और दूसरे एंग्लो-डच युद्ध जैसे कई असली युद्ध कारोबारी विवाद की वजह से हुए थे. इसी तरह 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य और चीन के बीच हुआ पहला अफीम युद्ध भी एक व्यापारिक विवाद का ही नतीजा था.

क्या होता है रेसिप्रोकल टैरिफ

पिछली दो शताब्दियों में कई व्यापार युद्ध हुए हैं. कभी ये सिर्फ कुछ खास उत्पादों की वजह से हुए हैं और कभी-कभी अलग-अलग देशों और बड़े आर्थिक समूहों के बीच होने वाले पूरे व्यापार की वजह से.

ऐतिहासिक रूप से, कई व्यापार युद्धों और विवादों को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) जैसे संस्थाओं की मध्यस्थता के जरिए हल किया गया है. मुक्त व्यापार सौदे और दूसरे समझौते भी व्यापार युद्ध को समाप्त कर सकते हैं.

व्यापार युद्ध को सुलझाने में एक बड़ा बदलाव तब आया जब 1947 में जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स ऐंड ट्रेड (जीएटीटी) बना. यह एक कानूनी समझौता था जिसका मकसद शुल्क कम करना और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देना था.

2019 में जापान में जी20 की बैठक के दौरान चीन और अमेरिका के राष्ट्रपति
डॉनल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग एक दूसरे के देश के खिलाफ आयात शुल्क बढ़ाते जा रहे हैंतस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS

मौजूदा व्यापार युद्ध कितना बड़ा है?

इस सप्ताह अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है, लेकिन यह ट्रंप के पहले कार्यकाल से ही प्रभावी रूप से जारी है. जनवरी 2018 में, ट्रंप प्रशासन ने चीनी आयात पर शुल्क लगाए, जिसके कारण बीजिंग ने जवाबी कार्रवाई की. हालांकि, 2020 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ था, लेकिन ज्यादातर शुल्क हाल ही में बढ़े तनाव तक लागू रहे.

ईयू ने लगाया अमेरिका पर जवाबी टैरिफ, व्यापार युद्ध तेज होगा?

2024 में चीन और अमेरिका के बीच वस्तुओं का व्यापार लगभग 585 अरब डॉलर का था. चीन का अमेरिका के साथ व्यापार में बहुत बड़ा सरप्लस है, जिसका मतलब है कि वह अमेरिका से जितना सामान खरीदता है, उससे कहीं ज्यादा सामान उसे बेचता है.

2024 में, अमेरिका ने चीन से लगभग 440 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया, जबकि चीन ने अमेरिका से सिर्फ 145 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया. 

व्यापार से जुड़ी दूसरी बाधाओं की बात करें, तो चीन ने दुर्लभ खनिज ‘रेयर अर्थ' के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है और अमेरिकी रासायनिक कंपनी ड्यूपॉन्ट की चीनी सहायक कंपनी पर एंटीट्रस्ट जांच शुरू कर दी है.

हालांकि दोनों देशों में शुल्क की दरें अभी और तेजी से बढ़ सकती हैं, लेकिन इसके साथ-साथ व्यापारिक बाधाएं भी बढ़ सकती हैं, जैसे कि निर्यात पर रोक लगाना या निवेश पर पाबंदियां लगाना.

एशियाई देशों का कारोबार छीन भारत को देंगे टैरिफ

बीजिंग जवाबी हमले के तौर पर चीन में काम कर रही अमेरिकी कंपनियों, जैसे कि एप्पल पर कार्रवाई कर सकता है. उसने पहले ही गूगल और एनवीडिया जैसी टेक कंपनियों पर एकाधिकार विरोधी (एंटी-मोनोपॉली) जांच शुरू कर दी है. साथ ही, वह चीनी कंपनियों को अमेरिका में निवेश करने से रोकने की कोशिश भी कर सकता है.

अमेरिका की तरफ से, ट्रंप ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह शुल्क बढ़ाने के लिए तैयार हैं. वह चीन की कंपनियों को अमेरिका में निवेश करने से और ज्यादा रोक सकते हैं. साथ ही, अमेरिकी कंपनियों को भी चीन में जरूरी तकनीकी क्षेत्रों में निवेश करने से रोक सकते हैं. इसका मकसद चीन की तकनीकी तरक्की को धीमा करना है.

क्या दूसरे व्यापार युद्ध भी होंगे?

8 अप्रैल से ट्रंप के तथाकथित ‘जवाबी शुल्क' लागू होने वाले थे, लेकिन चीन को छोड़कर बाकी देशों के लिए इन पर 90 दिनों की रोक लगा दी गई है. हालांकि, इन 90 दिनों के दौरान उन देशों पर लगाया गया 10 फीसदी का एक समान शुल्क जारी रहेगा.

कुछ विदेशी नेताओं ने व्हाइट हाउस से बातचीत करने की कोशिश की है, लेकिन कई देशों के साथ व्यापार युद्ध होने का खतरा अब भी बहुत ज्यादा है. खासकर इसलिए क्योंकि ट्रंप और उनके आर्थिक सलाहकारों का कहना है कि सिर्फ अमेरिका पर लगाए जाने वाले शुल्क को कम करना काफी नहीं है, वे संतुलित व्यापार और दूसरी रियायतें भी चाहते हैं.

यूरोपीय आयोग ने सोमवार को कहा कि उसने व्यापार युद्ध रोकने के लिए ‘जीरो फॉर जीरो' शुल्क समझौते की पेशकश की है, लेकिन साथ ही उसने ट्रंप के लगाए गए स्टील और एल्यूमिनियम शुल्क के जवाब में अमेरिका से आने वाली कई चीजों पर 25 फीसदी का जवाबी शुल्क लगाने का प्रस्ताव भी दिया है. हालांकि, ट्रंप ने यूरोपीय संघ पर जो 20 फीसदी का पारस्परिक शुल्क लगाया है उसका कोई औपचारिक जवाब अभी तक ईयू ने नहीं दिया है.

यूरोपीय संघ की प्रतिक्रिया अब तक संयमित रही है, लेकिन अप्रैल के अंत तक इसके जरिए बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई किए जाने की उम्मीद है. ईयू के व्यापार आयुक्त मारोस सेफकोविक ने कहा कि यूरोपीय संघ ने अपने सभी विकल्प खुले रखे हैं. इसमें उसका एंटी-कोएर्सियन इंस्ट्रूमेंट (एसीआई) शामिल है. इस एसीआई नियम के तहत, यूरोपीय संघ अमेरिकी निवेश को सीमित कर सकता है या रोक सकता है. साथ ही, तकनीकी कंपनियों सहित अमेरिकी सेवाओं को टारगेट किया जा सकता है.

यह सब कैसे खत्म होगा?

यह कहना मुश्किल है कि आगे क्या होगा. 2018 में ट्रंप के चीन पर लगाए गए शुल्क के पहले दौर के बाद बातचीत हुई और एक समझौता हुआ जिसे ‘फेज वन ट्रेड एग्रीमेंट' कहा गया. हालांकि, इस समझौते के बाद भी दोनों देशों के बीच शुल्क की दरें पहले से कहीं ज्यादा रहीं.

कुछ देश ऐसे समझौते कर सकते हैं जिससे शुल्क की दरें कम हो सकती हैं. उदाहरण के लिए, ट्रंप ने सोमवार को कहा कि जापान बातचीत के लिए एक टीम भेज रहा है. इससे लगता है कि जापान खास समझौता करने वाला पहला देश हो सकता है.

हालांकि, जब चीन की बात आती है, तो जल्दी या आसानी से समझौता होने के आसार कम दिखते हैं. दोनों ही पक्ष अपनी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को देखते हुए खुद को मजबूत मानते हैं. फिलहाल, कोई भी पीछे हटने का संकेत नहीं दे रहा है और विवाद लगातार बढ़ता जा रहा है.