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रामजन्मभूमि के 'टाइम कैप्सूल' में क्या लिखा जाएगा?

समीरात्मज मिश्र
२८ जुलाई २०२०

अयोध्या में राम मंदिर नींव के भीतर टाइम कैप्सूल रखे जाने को ले कर खूब चर्चा है. लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. 2011 में नरेंद्र मोदी और 1973 में इंदिरा गांधी भी ऐसा कर चुके हैं.

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Indien - Hindu Nationalismus
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Armangue

अयोध्या में पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है. माना जा रहा है कि भूमि पूजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों संपन्न होगा और इसमें देश भर से दो सौ खास मेहमानों को भी आमंत्रित किया गया है. लेकिन इस बीच, मंदिर की नींव के भीतर रखे जाने वाले टाइम कैप्सूल की काफी चर्चा हो रही है. बताया जा रहा है कि राम मंदिर का इतिहास हजारों साल तक मौजूद रहे, इसके लिए मंदिर के गर्भगृह की 200 फीट गहराई में टाइम कैप्सूल रखा जाएगा.

इस टाइम कैप्सूल में मंदिर का पूरा विवरण और इतिहास अंकित रहेगा ताकि भविष्य में जन्मभूमि और राम मंदिर का इतिहास देखा जा सके और कोई विवाद न हो. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने मीडिया को सबसे पहले यह जानकारी दी. बिहार के रहने वाले कामेश्वर चौपाल वह व्यक्ति हैं जिन्होंने 9 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखी थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राम मंदिर निर्माण के लिए बने श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में भी उन्हें सदस्य बनाया गया है.

1989 में भी भूमि के नीचे दबाया गया था ताम्रलेख

राम मंदिर के चीफ आर्किटेक्ट निखिल सोमपुरा बताते हैं कि प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बाद मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा. उनके मुताबिक 200 मीटर गहराई की मिट्टी का सैंपल लिया गया था लेकिन अभी उसकी रिपोर्ट नहीं आई है. रिपोर्ट के आधार पर ही मंदिर का निर्माण करने वाली कंपनी एलएनटी नींव की खुदाई शुरू कर देगी. टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है और हर तरह के मौसम को सहन करने की इसमें क्षमता होती है. अयोध्या में राम मंदिर के नीचे डाला जाने वाला टाइम कैप्सूल कुछ सदियों के बाद एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जाना जाएगा. टाइम कैप्सूल को एक ऐसे ऐतिहासिक महत्व के दस्तावेज के रूप में जाना जाता है, जिसमें किसी काल की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्थिति का उल्लेख हो. यह दस्तावेज ताम्र पत्र पर लिखा जाएगा.

इस ताम्रपत्र पर मंदिर का संक्षिप्त इतिहास, शिलान्यास की तारीख, भूमिपूजन करने वाले मुख्य अतिथि, उपस्थित विशिष्टजन का नाम, निर्माण की शैली तथा वास्तुविद का नाम लिखा रहेगा. ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार, ताम्रलेख तैयार करने की जिम्मेदारी दिल्ली की एक कंपनी को सौंपी गई है.

इस बीच, यह जानकारी भी सामने आई है कि साल 1989 में जब गर्भगृह के सामने राममंदिर का शिलान्यास हुआ था, उस वक्त भी एक ताम्रलेख भूमि के नीचे दबाया गया था. रामलला की ओर से मुकदमे की पैरवी करने वाले वकील त्रिलोकीनाथ पांडेय बताते हैं कि उस वक्त ताम्रलेख विश्व हिन्दू परिषद के महासचिव अशोक सिंहल ने तैयार कराया था. पांडेय बताते हैं कि ताम्रपत्र तांबे से बनाया जाता है क्योंकि इस धातु में जंग नहीं लगती है. यह लेख मिट्टी में भी हजारों साल तक सुरक्षित रहेगा.

जब इंदिरा गांधी ने बनवाया टाइम कैप्सूल

भारत में पहले भी ऐसे टाइम कैप्सूल ऐतिहासिक महत्व की इमारतों की नींव में डाले जा चुके हैं. 1973 में इंदिरा गांधी सरकार ने लालकिले की नींव में ऐसा ही एक टाइम कैप्सूल डाला था. तब इसे कालपत्र का नाम दिया गया था. उस वक्त विपक्ष के लोगों ने इंदिरा गांधी के इस कदम की काफी आलोचना की थी और आरोप लगाया था कि इस कालपत्र में इंदिरा गांधी ने अपने परिवार का महिमामंडन किया है.

इंदिरा गांधी की सरकार ने अतीत की अहम घटनाओं को दर्ज करने का काम इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च यानी आईसीएचआर को सौंपा था और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर एस कृष्णासामी को पूरी पाण्डुलिपि तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन यह काम पूरा होने से पहले ही विवादों में फंस गया और इंदिरा सरकार के इस कालपत्र में क्या लिखा था, उसका राज आज तक नहीं खुल सका.

1977 में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. सरकार गठन के कुछ दिनों बाद टाइम कैप्सूल को निकाला गया लेकिन जनता पार्टी की सरकार ने इस बात का रहस्योद्घाटन नहीं किया कि उस टाइम कैप्सूल में क्या था. बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय से मांगी गई एक जानकारी में बताया गया था कि पीएमओ को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है.

मोदी पहले भी बनवा चुके हैं टाइम कैप्सूल

टाइम कैप्सूल के विवाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी जुड़ा रहा है. नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो 2011 में उन पर भी टाइम कैप्सूल दफनाने का विपक्ष ने आरोप लगाया था. विपक्ष का कहना था कि गांधीनगर में निर्मित महात्मा मंदिर के नीचे टाइम कैप्सूल दफनाया गया है, जिसमें मोदी ने अपनी उपलब्धियों का बखान किया है.

30 नवंबर 2017 को स्पेन के बर्गोस में करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल निकला था जो ईसा मसीह की मूर्ति के रूप में था. मूर्ति के भीतर साल 1777 के आसपास की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जानकारियां थीं.

अयोध्या में राम मंदिर के नीचे रखे जा रहे कथित टाइम कैप्सूल में क्या लिखा जाएगा, इस बारे में ज्यादा जानकारी किसी के पास नहीं है. इस बीच, राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करने आ रहे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत कार्यक्रम को भव्य बनाने की कोशिश की जा रही है. इस मौके पर अयोध्या शहर के भीतर और वहां से जुड़े तमाम संपर्क मार्गों पर एक लाख दीये जलाने की व्यवस्था की जाएगी. जिला प्रशासन ने यह जिम्मेदारी अवध विश्वविद्यालय को सौंपी है. इसके अलावा देश-विदेश में रह रहे लोगों से भी इस दिन अपने घरों में दिये जलाने की अपील की गई है.

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