दुनिया की किडनी क्यों कहलाते हैं वैटलैंड्स
११ अप्रैल २०२५वैटलैंड्स - जमीन पर मौजूद पारिस्थितिकी तंत्रों (ईकोसिस्टम) की उन श्रृंखलाओं को कहते हैं, जो हमेशा या मौसमी रूप से गीली रहती हैं. ये अंटार्कटिका को छोड़कर सभी महाद्वीपों में पाए जाते हैं. इस जलमग्न मिट्टी को दुनिया की किडनी, प्रकृति का स्पंज और जैव विविधता के सुपरहीरो भी कहा जाता है.
वैटलैंड कई तरह के होते हैं. जैसे- काई या पीट से भरे दलदल, झाड़ियों से भरे दलदल और पेड़ों से घिरे दलदल. कुछ वैटलैंड मीठे पानी के बाढ़ के मैदानों और निचले अंतर्देशीय इलाकों में होते हैं. बाकी तटीय इलाकों में पाए जाते हैं, जैसे- उष्णकटिबंधीय मैंग्रोव वन. इन वनों में ऐसे पेड़ होते हैं जो खारे पानी में जीवित रह सकते हैं.
इंदौर और उदयपुर को मिला भारत की पहली 'वेटलैंड सिटी' का दर्जा
वैटलैंड्स को जैविक सुपरमार्केट कहा जा सकता है. इनमें उथले पानी, उच्च स्तरीय पोषक तत्वों और बायोमास का मिश्रण होता है. इस वजह से ये विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए अच्छा भोजन बन जाते हैं.वैटलैंड दुनिया के सबसे उत्पादक ईकोसिस्टम में से हैं. दुनिया की सिर्फ 6 फीसदी जमीन पर फैले होने के बावजूद इनमें 40 फीसदी वैश्विक जैव विविधता मौजूद है.
वैटलैंड्स क्यों महत्वपूर्ण हैं?
वैटलैंड्स की लंबे समय से अनदेखी की जाती रही है. इन्हें बेकार जमीन समझा गया और इन्हें सुखाकर ईंधन या कृषि भूमि में बदल दिया गया. सड़कें और इमारतें बनाने के लिए इन्हें तलछट से भरकर ठोस जमीन में बदल दिया गया. अब ये जैव विविधता के हॉटस्पॉट के रूप में पहचाने जा रहे हैं. साथ ही इन्हें महत्वपूर्ण कार्बन सिंक भी कहा जा रहा है, जो हर साल लाखों टन कार्बन अवशोषित करते हैं.
वैटलैंड्स में दुनिया का एक तिहाई कार्बन इकट्ठा है. यह कार्बन वैटलैंड्स की जीवित वनस्पतियों, मिट्टी, तलछट और हजारों सालों में बने पीट में जमा है. पीटलैंड्स अकेले ही दुनिया के सभी जंगलों की तुलना में दोगुना कार्बन स्टोर करते हैं.
जब वैटलैंड्स को नुकसान पहुंचता है तो वे कार्बन डाईऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैस छोड़ते हैं. इससे वे वैश्विक उत्सर्जन का एक बड़ा स्त्रोत बन जाते हैं. सुखाए और जलाए गए पीटलैंड्स हर साल मानव-प्रेरित उत्सर्जन में चार प्रतिशत का योगदान देते हैं.
वैटलैंड्स को दुनिया की किडनी भी कहा जा सकता है. इन ईकोसिस्टम में मौजूद पेड़-पौधे, कवक और शैवाल पानी से रसायनों, भारी धातुओं और दूसरे प्रदूषकों को अलग करते हैं. इस तरह वे पानी को शुद्ध बनाने में मदद करते हैं. वैटलैंड्स बाढ़ के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा भी देते हैं. वे स्पंज की तरह भारी बारिश को सोख लेते हैं. साथ ही तूफान के समय तटों को कटाव से बचाते हैं.
कैसा दिखता है वैटलैंड्स का भविष्य
वैटलैंड्स दुनिया में सबसे ज्यादा खतरे का सामना करने वाले ईकोसिस्टम हैं. ये जंगलों की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेजी से लुप्त हो रहे हैं. पिछले 50 सालों में वैटलैंड्स का एक तिहाई इलाका खत्म हो चुका है. इसकी बड़ी वजह खेती और निर्माण कार्य के लिए इनका सुखाया जाना है. यूरोप, अमेरिका, भारत, जापान और चीन में सन 1700 से लेकर अब तक वैटलैंड्स का आधे से ज्यादा इलाका गायब हो चुका है.
पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्य तापमान वृद्धि को 1.5 सेल्सियस तक सीमित रखने की राह में वैटलैंड्स अहम भूमिका निभा सकते हैं. इसके लिए वैटलैंड्स को संरक्षित और पुनर्स्थापित करने की पहल को एक महत्वपूर्ण प्रकृति आधारित समाधान के तौर पर मान्यता दी गई है.
जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले करीब 70 फीसदी देशों ने अपनी राष्ट्रीय जलवायु प्रतिबद्धताओं में एक तरह के वैटलैंड को शामिल किया है. 2022 में प्रकृति की सुरक्षा के लिए एक ऐतिहासिक वैश्विक प्रतिबद्धता की गई. इसमें कम से कम 30 फीसदी अंतर्देशीय जल निकायों और मीठे पानी के ईकोसिस्टम को बहाल करने के प्रावधान भी बताए गए.
कई देश लुप्त हो चुके वैटलैंड्स को वापस लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं. अर्जेंटीना में इबेरा वैटलैंड्स के हजारों किलोमीटर को बहाल करने के लिए एक महत्वाकांक्षी संरक्षण परियोजना चल रही है. इंडोनेशिया में पीटलैंड्स को दोबारा गीला किए जाने से जंगल की आग को फैलने से रोकने में मदद मिली है. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि वैटलैंड्स मानव कल्याण और धरती पर जीवन का समर्थन करने के लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें कानूनी अधिकार भी दिए जाने चाहिए.