मंदिर की ‘रक्षक’ मगरमच्छ को आंसुओं से विदाई
केरल के कासरगोड़ में एक मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ की अंतिम विदाई पर हजारों लोग जमा हुए. यह मगरमच्छ दशकों से मंदिर में रह रही थी.
‘शाकाहारी’ मगरमच्छ की विदाई
कासरगोड़ के श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर में रहने वाली मगरमच्छ बाबिया को लोगों ने आंसुओं के साथ विदाई दी. उसके अंतिम संस्कर पर हजारों लोग जमा हुए.
देवी स्वरूप
देवी की तरह पूजे जाने वाली इस मगरमच्छ की आयु लगभग 80 वर्ष बताई जाती थी. 3,000 साल पुराने विष्णु मंदिर के पास की झील में यह मगरमच्छ दशकों से रह रही थी.
शाकाहार के दावे पर संदेह
बाबिया को लोग मंदिर की रक्षक मानते थे. यह भी मान्यता थी कि बाबिया सिर्फ प्रसाद खाती थी. हालांकि मंदिर के अधिकारी इस दावे की पुष्टि नहीं करते क्योंकि उनके मुताबिक झील में मछलियां भी हैं.
मंदिर के पास दफनाया गया
बाबिया को मंदिर के पास ही दफना दिया गया. लोगों की मान्यता थी कि यह मगरमच्छ 1942 में एकाएक आ गई थी.
क्या मगरमच्छ शाकाहारी होते हैं?
हाल ही में हुए कुछ अध्ययनों में पता चला है कि 20 करोड़ साल पहले मगरमच्छों की कुछ शाकाहारी प्रजातियां धरती पर होती थी. अमेरिका की यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा था कि इन प्रजातियों के दांत फल और सब्जियां खाने के हिसाब से बने थे.