चीनी स्टूडेंट्स के वीजा 'सख्ती से' रद्द करेगा अमेरिका
२९ मई २०२५अमेरिका ने अब चीनी छात्रों पर सीधी कार्रवाई की घोषणा की है. विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े या "संवेदनशील क्षेत्रों" में पढ़ रहे छात्रों के वीजा तत्काल प्रभाव से रद्द किए जाएंगे. यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब चीन से हर साल करीब 2.7 लाख छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते हैं. यह अमेरिका की यूनिवर्सिटी व्यवस्था के लिए एक बड़ा आय स्रोत भी है.
रुबियो ने कहा, "चीन और हांगकांग से आने वाले छात्रों के सभी वीजा आवेदनों की अब कड़ी जांच की जाएगी. ये फैसले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से जरूरी हैं.”
इस नीति के ऐलान से एक दिन पहले ही ट्रंप प्रशासन ने दुनियाभर के छात्र वीजा इंटरव्यूज की अपॉइंटमेंट्स तत्काल प्रभाव से स्थगित कर दी थीं. दूतावासों को भेजे गए संदेश के मुताबिक अमेरिका अब विदेशी छात्रों के सोशल मीडिया प्रोफाइल्स की गहन जांच की तैयारी कर रहा है, जिसके लिए नए दिशा-निर्देश जल्द जारी किए जाएंगे.
परेशान हैं चीनी छात्र
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे एक चीनी छात्र लिनचिन ने कहा, "यह चीनी एक्सक्लूजन एक्ट का नया रूप है." लिनचिन ने प्रतिशोध के डर से अपना पूरा नाम बताने से मना कर दिया. उन्होंने बताया कि बुधवार को पहली बार उन्होंने अमेरिका छोड़ने के बारे में गंभीरता से सोचा, जबकि उन्होंने अपनी जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा यहीं बिताया है.
अमेरिका और चीन के बीच चीनी छात्रों का मुद्दा लंबे समय से तनाव का कारण रहा है. ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान 2019 में, चीन के शिक्षा मंत्रालय ने छात्रों को अमेरिका में वीजा से जुड़ी समस्याओं को लेकर चेतावनी दी थी. इनमें जैसे वीजा अर्जी खारिज होने की दर बढ़ना और वीजा की अवधि कम होना जैसी बातें शामिल थीं. पिछले साल, चीनी विदेश मंत्रालय ने विरोध दर्ज कराया था कि कई छात्रों को अमेरिकी हवाई अड्डों पर गलत तरीके से पूछताछ करके वापस भेज दिया गया.
अमेरिका में बहुत से लोग मानते हैं कि चीनी सरकारी मीडिया लंबे समय से अमेरिका में बंदूक हिंसा और महामारी के दौरान हुए प्रदर्शनों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता रहा है और अमेरिका को एक खतरनाक देश की तरह पेश करता रहा है. दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण रिश्तों के कारण अब कई चीनी छात्र अमेरिका के बजाय ब्रिटेन या अन्य देशों में पढ़ाई करने का विकल्प चुन रहे हैं.
जो रेनगे शिकागो यूनिवर्सिटी में पब्लिक पॉलिसी की छात्रा हैं. वह इस साल के अंत में ग्रैजुएट होने के बाद कुछ समय के लिए काम से छुट्टी लेकर किसी अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन में काम करने की योजना बना रही थीं. लेकिन अब उन्होंने फैसला किया है कि वह अमेरिका से बाहर नहीं जाएंगी और इसी बीच नौकरी तलाशेंगी. उन्होंने कहा, "इस बेहद अनिश्चित माहौल में, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी कि कोई समाधान खोज सकूं."
असर और देशों पर भी
चीनी छात्रों को मुख्य रूप से निशाना बनाया गया है, लेकिन नीति के प्रभाव बाकी देशों तक भी पहुंचे हैं. ताइवान से कैलिफोर्निया में पीएचडी करने आ रहे एक छात्र ने कहा, "वीजा अपॉइंटमेंट रुकी हुई है और सेमेस्टर शुरू होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है. फिलहाल सिर्फ उम्मीद ही कर सकता हूं.”
भारत भी इस अनिश्चितता से अछूता नहीं है. अमेरिका में इस समय सबसे ज्यादा विदेशी छात्र भारत से हैं. 2024 में यह संख्या 3.3 लाख के पार पहुंच गई थी, जिससे भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया. लेकिन पिछले महीनों में कई भारतीय छात्रों के वीजा रद्द किए गए हैं.
हाल ही में अमेरिकी दूतावास ने भारतीय छात्रों को चेतावनी दी थी, "अगर आप कोर्स बीच में छोड़ते हैं, क्लास से गायब रहते हैं या बिना जानकारी दिए यूनिवर्सिटी छोड़ते हैं, तो आपका वीजा रद्द हो सकता है.” अप्रैल में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि वे अमेरिका में फंसे भारतीय छात्रों के संपर्क में हैं और उन्हें हरसंभव सहायता दी जा रही है.
ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर भी दबाव बनाया हुआ है. विदेश मंत्रालय ने आरोप लगाया है कि हार्वर्ड चीन के सरकारी संगठनों के साथ मिलकर रिसर्च प्रोजेक्ट्स चला रहा है और यह अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा है. इसके तहत हार्वर्ड और अन्य ‘लिबरल' यूनिवर्सिटीज की फेडरल रिसर्च फंडिंग में 2.6 अरब डॉलर की कटौती की जा चुकी है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, "हम टैक्सपेयर्स का पैसा ट्रेड स्कूल्स और स्टेट यूनिवर्सिटीज जैसे उन संस्थानों में लगाना चाहते हैं जो अमेरिकी मूल्यों और स्किल्स पर फोकस करते हैं.” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि हार्वर्ड जैसे संस्थानों में विदेशी छात्रों की संख्या 25 फीसदी से घटाकर 15 फीसदी की जानी चाहिए.
सोशल मीडिया की निगरानी से डर बढ़ा
रुबियो द्वारा साइन किए गए केबल में कहा गया है कि सभी नए वीजा आवेदकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की जांच की जाएगी. 2019 से ही वीजा फॉर्म डीएस-160 में सोशल मीडिया हैंडल देना अनिवार्य है, लेकिन अब जांच की प्रक्रिया कहीं अधिक गहन और संसाधन-निर्भर होगी.
‘पीईएन अमेरिका' संस्था के जोनाथन फ्रीडमैन ने कहा, "ये नीतियां अमेरिका को एक ऐसा देश बना देंगी जहां छात्र पढ़ाई के लिए आने से डरने लगेंगे. इससे हमारा शिक्षा और विचारों का आदान-प्रदान कमजोर होगा.”
रुबियो के बयानों से साफ है कि ट्रंप प्रशासन अब सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि वैचारिक स्तर पर भी अमेरिकी यूनिवर्सिटी सिस्टम में बदलाव लाना चाहता है. चीनी छात्रों पर कार्रवाई एक शुरुआत है, लेकिन इसके दायरे में भारत जैसे मित्र देशों के छात्र भी आ सकते हैं. अगर सोशल मीडिया एक्टिविटी और विरोध प्रदर्शनों में भाग लेना भी वीजा के लिए खतरा बनने लगे, तो ये नीतियां छात्रों के भविष्य पर गंभीर असर डाल सकती हैं.