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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

सेंसरशिप के खिलाफ अमेरिका का नया वीजा बैन

विवेक कुमार रॉयटर्स, एएफपी
२९ मई २०२५

अमेरिका अब सिर्फ अपने यहां नहीं, दुनिया भर में सेंसरशिप के विरोध का झंडा उठाए खड़ हो गया है. ट्रंप सरकार ने साफ कर दिया है, जो सेंसर करेगा, वो अमेरिका नहीं आएगा.

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वॉशिंगटन में अमेरिका और जर्मनी के विदेश मंत्री
अमेरिका ने कहा है कि उसकी कंपनियों पर कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगीतस्वीर: Brendan Smialowski/AFP/Getty Images

अमेरिका ने एक नई वीजा प्रतिबंध नीति की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य उन विदेशी नेताओं और व्यक्तियों को टारगेट करना है जो अमेरिकी नागरिकों या टेक कंपनियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सेंसर करने की कोशिश करते हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने बताया कि नई नीति उन पर भी लागू हो सकती है जो सोशल मीडिया पोस्ट के लिए अमेरिका में रहने वाले नागरिकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करते हैं. यूरोप में एप्पल और मेटा पर करोड़ों यूरो का जुर्माना लग चुका है. भारत ट्विटर पर सामग्री हटवाने वाले सबसे बड़े देशों में शामिल है.

रुबियो ने कहा, "किसी विदेशी सरकार द्वारा अमेरिकी नागरिकों या यहां की कंपनियों के अभिव्यक्ति के अधिकार पर सेंसरशिप लागू करना, चाहे वह सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तारी की धमकी हो या टेक प्लेटफॉर्म से कंटेंट हटाने की मांग, अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.”

क्यों लाया गया यह नियम?

इस कदम की एक वजह यूरोप और अमेरिका के बीच डिजिटल अधिकारों और सेंसरशिप को लेकर बढ़ते तनाव को माना जा रहा है. यूरोपीय यूनियन ने 2023 में डिजिटल सर्विसेज एक्ट (डीएसए) लागू किया गया था. इसका उद्देश्य हेट स्पीच, बाल यौन शोषण सामग्री और फेक न्यूज के प्रसार को रोकना है.

लेकिन मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम), एक्स (ट्विटर) और रंबल जैसी अमेरिकी टेक कंपनियां इस कानून को सेंसरशिप का औजार बता रही हैं. यूरोपीय संघ ने हाल ही में कहा कि ट्रंप-समर्थक इलॉन मस्क की कंपनी एक्स डीएसए का उल्लंघन कर रही है क्योंकि वह ‘कम्युनिटी नोट्स' जैसे फीचर से गलत सूचना को नहीं रोक पा रही. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद फेसबुक की मालिक कंपनी मेटा ने अमेरिका में फैक्ट चेकिंग प्रोग्राम बंद करने का ऐलान किया था.

रुबियो ने कहा, "कुछ विदेशी अधिकारी अमेरिका की सीमाओं के बाहर से हमारे संविधान के पहले संशोधन को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं. अब ऐसा नहीं चलेगा.”

नाम नहीं लिए, लेकिन इशारे साफ

रुबियो ने किसी देश या नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन अमेरिका और यूरोप के बीच हालिया तनाव को देखते हुए यह स्पष्ट है कि यह नीति मुख्य रूप से यूरोपीय डिजिटल नीति को टारगेट कर रही है. यूरोपीय आयोग ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उन्हें इस नीति की जानकारी है, लेकिन यह एक "आमतौर पर की गई” घोषणा लगती है, इसलिए वे कोई सीधा जवाब नहीं देंगे.

ट्रंप सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी सैम्युएल सैमसन ने एक लेख में सीधे ब्रिटेन और जर्मनी पर निशाना साधा. उन्होंने ब्रिटेन में दो एंटी-अबॉर्शन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी का भी हवाला दिया और लिखा कि ये देश "विरोधी आवाजों को चुप कराने के लिए ऑरवेलियन कॉन्टेंट मॉडरेशन” का सहारा ले रहे हैं.

ऑरवेलियन कॉन्टेंट मॉडरेशन उस सेंसरशिप को कहते हैं जिसमें सरकारें या ताकतवर संस्थाएं विचारों और सूचनाओं पर इस तरह नियंत्रण रखती हैं कि लोग स्वतंत्र रूप से बोलने या सच जानने से डरने लगें, ठीक वैसा जैसा जॉर्ज ऑरवेल ने अपने उपन्यास 1984 में दिखाया था.

लैटिन अमेरिका भी निशाने पर

ब्राजील में सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अलेक्जेंडर डी मोरायस और अमेरिकी सोशल मीडिया कंपनियों के बीच भी तनाव रहा है. डी मोरायस ने फेक न्यूज फैलाने के आरोप में अमेरिका में स्थित समर्थक अकाउंट्स को हटाने का आदेश दिया था. इसके खिलाफ ट्रंप की मीडिया कंपनी और वीडियो प्लेटफॉर्म रंबल ने मुकदमा किया है.

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रंबल के सीईओ क्रिस पाव्लोव्स्की ने रुबियो की नीति का समर्थन करते हुए कहा, "मुक्त अभिव्यक्ति के इन विरोधियों ने अमेरिका में घुसपैठ की कोशिश की है, लेकिन अब उनके लिए रास्ता बंद किया जा रहा है.”

ब्राजील सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि वे यह समझने का इंतजार कर रहे हैं कि इस नीति का दायरा कितना होगा और किन-किन व्यक्तियों को निशाना बनाया जाएगा.

अमेरिकी कूटनीति में नया मोड़

रुबियो की यह घोषणा ऐसे समय आई है जब अमेरिका यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते को लेकर बातचीत कर रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप ने यूरोपीय आयातों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने की चेतावनी दी है, जिसे टालने के लिए ईयू प्रयास कर रहा है.

एक अन्य पहलू यह भी है कि रुबियो ने अप्रैल में विदेश मंत्रालय के एक विभाग को बंद कर दिया था जो विदेशी ‘फेक न्यूज' के खिलाफ काम करता था. उन्होंने तब कहा कि वह विभाग सेंसरशिप और सार्वजनिक धन का दुरुपयोग कर रहा था.

फिलहाल अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट के मानवाधिकार और लोकतंत्र विभाग के अधिकारी फ्रांस और आयरलैंड की यात्रा पर हैं, जहां वे अभिव्यक्ति की आजादी के मुद्दे पर यूरोपीय सरकारों से बातचीत कर रहे हैं.

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