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निर्यात के बिना भी मजबूत बनी रह पाएगी चीनी अर्थव्यवस्था?

२६ जुलाई २०२५

निर्यात चीन की अर्थव्यवस्था का अहम आधार है. क्या बिना निर्यात के चीन डूबने लगेगा?

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एक वाल्व बनाने वाली कंपनी के श्रमिक चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अभिवादन करते हुए
चीनी सरकार के सामने देश में घरेलू खपत बढ़ाने की अहम चुनौती है तस्वीर: Yan Yan/Xinhua/picture alliance

चीन अपनी अर्थव्यवस्था को चलाए रखने के लिए निर्यात पर बहुत ज्यादा निर्भर है. अगले हफ्ते स्टॉकहोम में होने जा रही अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता में यह मुद्दा सबसे अहम होगा. हालांकि इसकी कम ही संभावना है कि अमेरिका के साथ व्यापार डील हो जाने के बावजूद चीन तुरंत अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से संतुलित कर लेगा.

अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि उन्हें चीन के साथ निर्यात के मुद्दे पर बातचीत की उम्मीद है. इसके साथ ही चीन के रूस और ईरान से तेल खरीदने पर भी बातचीत हो सकती है. क्योंकि इससे अमेरिका की ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का असर कम होता है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एक हफ्ते के अंदर जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस के साथ व्यापार डील की घोषणा कर चुके हैं. इसके बाद से चीन के साथ डील होने की उम्मीदें भी बढ़ी हुई हैं.

अमेरिका की चीन से दो मांगें

अमेरिका चाहता है कि चीन दो सहूलियतें दे. पहली, उस क्षमता में कटौती करे, जिसे लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ दोनों ही मानते हैं कि चीन के पास कई उद्योगों, मसलन स्टील और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में आवश्यकता से अधिक उत्पादन की क्षमता है. और दूसरी बात यह कि चीन निर्यात पर कम निर्भर रहे. और ऐसे कदम उठाए कि चीनी ग्राहक ज्यादा खर्च करें और चीन की घरेलू मांग बढ़े. 

अमेरिकी वित्त मंत्री बेसेंट ने वित्तीय समाचार नेटवर्क सीएनबीसी से कहा, "हम कमरे में जो हाथी है, उसके बारे में भी बातचीत कर सकते हैं, यानी उस अहम रीबैलेंसिंग के बारे में जो चीन को करने की जरूरत है." उन्होंने बताया कि वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग निर्यात में चीन का हिस्सा करीब 30 फीसदी है. ये इससे बड़ा नहीं हो सकता, इसे सिकुड़ना पड़ेगा.

सरकारी सब्सिडी से सामान बन रहा सस्ता

चीन निर्यात पर अधिक निर्भरता के इस मामले से घरेलू बाजार में निपट भी रहा है. वर्षों से चीन इस पर काम करना चाहता है. हालांकि इसके पीछे चीन का मकसद अमेरिका और अन्य देशों के साथ अपने ट्रेड सरप्लस को कम करने के बजाए घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है.

बेसेंट से पहले अमेरिका की वित्त मंत्री रहीं जेनेट येलेन ने दुनिया के बाजारों में आई ‘कृत्रिम तरीके से सस्ते बनाए गए चीनी उत्पादों‘ की बाढ़ के लिए चीन में मिलने वाली सरकारी मदद को जिम्मेदार ठहराया था. बीते गुरुवार यूरोपीय संघ और चीनी नेताओं के बीच बैठक हुई. इस बैठक में भी यूरोपीय संघ ने चीन की इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर ईयू में लगाए गए टैरिफ के लिए चीनी सरकारी मदद को ही जिम्मेदार ठहराया. 

जापान की याद दिला रहा मामला

चीनी सामानों का यह मामला 1980 के दशक की याद दिलाता है. जब अमेरिका ने जापान पर घरेलू मांग को बढ़ाने का दबाव डाला था. दरअसल उस समय अमेरिकी बाजार, जापान की कंपनियों जैसे टोयोटा और सोनी के उत्पादों से पट गया था.

चीनी ग्राहकों की ओर से किया जाने वाला खर्च चीन की अर्थव्यवस्था के 40 फीसदी से भी कम है. अमेरिका में यह 70 फीसदी और जापान में 54 फीसदी है. चीनी नेता भी इस मुद्दे पर बोल चुके हैं. उनके हिसाब से फैक्ट्रियों की अधिक उत्पादन क्षमता और ग्राहकों की ओर से कम खर्च करना, लंबे दौर की समस्याएं हैं. उनके मुताबिक चीन की अर्थव्यवस्था को मैन्युफैक्चरिंग और बांध, सड़क, रेलवे और अन्य ढांचागत सुधारों से दूर ले जाकर संतुलित करने में 20 साल से ज्यादा समय लगेगा.

गुणवत्ता और सुरक्षा को पहुंच रहा नुकसान

चीन में दामों को कम रखने की प्रतिस्पर्धा के बीच ऐसी रिपोर्ट्स भी आई हैं, जिनमें बताया गया है कि चीनी कंपनियां इसके लिए गुणवत्ता और कई बार तो सुरक्षा नियमों की भी अनदेखी कर रही हैं. चीनी सरकार की आर्थिक मदद की बदौलत विदेशों तक पहुंच गई चीनी कंपनियां, वहां भी ऊंचे दाम वसूलते हुए वहां के स्थानीय प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचा रही हैं. और इसके चलते दुनिया के कई हिस्सों में चीन के राजनीतिक विरोध का कारण बन रही हैं. 

चीन के बांध के निर्माण ने बढ़ाई भारत की चिंता

अर्थशास्त्री मानते हैं कि चीन की समस्याओं का हल तभी हो सकता है, जब वह घरेलू ग्राहकों पर आधारित अर्थव्यवस्था बना सके. चीनी बाजार में प्रतिस्पर्धा और दामों को घटाने की दौड़ के बीच, चीन डिफ्लेशन में जा फंसा है. ऐसे में चीजों के दाम गिर रहे हैं. जब कंपनियों को अपने उत्पादों से कम कमाई हो रही है, तो वो आगे के उत्पादन में कम निवेश भी करना चाह रही हैं. इसके फलस्वरूप नौकरियों में छंटनी, सैलरी कम होना, बिजनेस गतिविधियों और खर्च करने की क्षमता कम होना जैसे असर सामने आ सकते हैं जो कि चीन के लंबे दौर के लक्ष्य, मसलन ग्राहकों की ओर से किए जाने वाले खर्च और पूरी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लक्ष्य से उलट है. 

चीन में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन की बैठक के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग
चीनी में कई अहम कंपनियों को होने वाले मुनाफे में लगातार कमी देखी जा रही हैतस्वीर: Russian Foreign Ministry/AFP

नए सामान की खरीद पर दी जा रही छूट

इससे निपटने के लिए चीन सरकार उन लोगों को छूट देने के लिए अरबों खर्च कर रही है, जो अपनी कारों या घरेलू उपकरणों को नई कारों या उपकरणों से बदल रहे हैं.

हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खपत को बढ़ाने और चीजों की अधिकता से निपटने के लिए और ज्यादा बुनियादी बदलावों की जरूरत होगी. ऐसे बदलाव एक झटके में किए भी नहीं जा सकते. प्राइवेट चीनी कंपनियां और विदेशों में निवेश करने वाली कंपनियां ही यहां ज्यादातर नौकरियां पैदा करती हैं. लेकिन वो महामारी के बाद से ही नीतियों में आए बदलावों और व्यापार युद्ध के दबावों को झेल रही हैं. 

सामाजिक बदलावों से भी गुजर रहा चीन

साथ ही चीन की जनसंख्या में आ रहे बदलाव भी एक चुनौती हैं. आबादी बुजुर्ग हो रही है और जनसंख्या में कमी आ रही है. ऐसे में कई जानकार चीन को सोशल सेफ्टी नेट, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और अन्य तरह की सामाजिक सहायताओं को बढ़ाने की सलाह देते हैं ताकि लोग किसी मेडिकल इमरजेंसी या रिटायरमेंट के लिए पैसे जोड़ते रह जाने के बजाए ज्यादा खुलकर खर्च कर सकें.

पेकिंग यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर यान से ने चेतावनी दी है कि अगर चीन ने लोककल्याणकारी फायदों को नहीं बढ़ाया. हालिया डिफ्लेशन आगे चलकर एक लंबे दौर की समस्या बन जाएगा. 

जापान में साल 2019 में एक मुलाकात के दौरान डॉनल्ड ट्रंप और शी जिनपिंग
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियां चीन विरोधी रही हैंतस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS

बाहरी खतरों के चलते आत्मनिर्भरता जरूरी

बाहरी भू-राजनीतिक खतरों को देखते हुए चीन ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर बनना चाहता है. गुआंगहुआ स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के डीन लियु कियाओ कहते हैं कि अगर चीन में स्थानीय सरकारी अफसरों को आर्थिक बढ़त के लक्ष्य हासिल करने के बजाए खपत या घरेलू आय बढ़ाने के लिए इनाम दिए जाने लगें तो एक संभावना बनती दिखती है. वो कहते हैं कि इस तरीके को पूरे देश में तुरंत लागू करना संभव नहीं लेकिन एक प्रांत में इसे आजमाकर देखा जाना चाहिए.

चीनी नेता शी जिनपिंग ने देश को एक टेक्नोलॉजी सुपरपावर बनाने को अपनी प्राथमिकता बना लिया है. उनके इस लक्ष्य की आवश्यता भी महसूस की जा रही है क्योंकि अमेरिका ने चीन की अति उन्नत सेमीकंडक्टरों और अन्य उच्च तकनीकों तक पहुंच को सीमित कर दिया है. हाईटेक उत्पादों का निर्माण बढ़ रहा है बल्कि कई बार तो इनका क्षमता से ज्यादा निर्माण हो रहा है. सौर पैनलों और पवनचक्कियों के निर्माण के मामले में ऐसा ही हुआ. 

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बड़े बदलाव जरूरी

बहुत से उद्योग जिसमें इलेक्ट्रिक गाड़ियां भी शामिल हैं, उन्होंने इस समस्या से निपटने का वादा किया है लेकिन कुछ स्थानीय सरकारें घाटे में चल रहे उद्योगों को भी जिंदा रखने पर आमादा हैं. क्योंकि वो उनसे आने वाले टैक्स के पैसों और उनके दी नौकरियों को खोना नहीं चाहतीं और अपने आर्थिक तरक्की के लक्ष्यों को पाने में नाकाम नहीं होना चाहतीं.

ऐसे में आगे सरकार आर्थिक विकास की नीतियों के बीच और बेहतर सामंजस्य की राह देख रही हैं. खासकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्रों में, ताकि सारे ही प्रांत एक ही तकनीक पर फोकस ना करें. लेकिन सरकार उन उद्योगों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने जा रही है, जहां अधिक क्षमता से जुड़ी समस्या है और पिछले वर्षों में जिन सेक्टर में अर्थव्यवस्था का हिस्सा गिर रहा है.

हाल ही में चीन की अर्थव्यवस्था पर जारी की गई एक रिपोर्ट में वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि घरेलू खपत में धीरे-धीरे लेकिन लगातार होने वाले सुधारों के लिए बदलाव के ज्यादा बड़े लक्ष्यों की जरूरत होगी.