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प्रकृति और पर्यावरणस्विट्जरलैंड

यूएन: जलवायु आपदाओं से विस्थापन में उछाल

१९ मार्च २०२५

संयुक्त राष्ट्र की जलवायु एजेंसी ने कहा है कि 2024 में जलवायु आपदाओं की वजह से लाखों लोगों को अपना घर छोड़ दूर चले जाना पड़ा. एक ताजा रिपोर्ट में पूरी दुनिया के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया है.

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सोमालिया में विस्थापितों के एक कैंप की तरफ पैदल और खच्चर-गाड़ी पर जाते लोग
अमीर देशों से ज्यादा गरीब देश जलवायु आपदाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैंतस्वीर: Jerome Delay/AP/picture alliance

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएमओ) ने अपनी सालाना रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट' में कहा है कि गरीब देश तूफानों, सूखे, जंगल की आग और दूसरी आपदाओं से गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं. एजेंसी ने इंटरनेशनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) से लिए आंकड़ों के आधार पर कहा है कि इन आपदाओं की वजह से अपना घर छोड़ने वालों की संख्या अब रिकॉर्ड स्तर को छू रही है.

उदाहरण के तौर पर एजेंसी ने बताया कि अफ्रीका के मोजाम्बिक में चिडो तूफान से करीब 1,00,000 लोगों को विस्थापित होना पड़ा. लेकिन सिर्फ गरीब देश ही नहीं, अमीर देशों पर भी इन आपदाओं का असर पड़ा है. डब्ल्यूएमओ ने ध्यान दिलाया कि स्पेन के वैलेंसिया में बाढ़ की वजह से 224 लोगों की जान चली गई.

अर्ली वॉर्निंग सिस्टम की सख्त जरूरत

कनाडा और अमेरिका में आग की वजह से 3,00,000 से भी ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. एजेंसी की मुखिया सेलेस्त साउलो ने बताया, "इसकी प्रतिक्रिया में, डब्ल्यूएमओ और वैश्विक समुदाय, पूर्व चेतावनी सिस्टम और जलवायु सेवाओं को मजबूत करने की कोशिशों को तेज कर रहे हैं."

डब्ल्यूएमओ की मुखिया सेलेस्त साउलो
डब्ल्यूएमओ का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कुछ परिणामों  को तो अब बदला भी नहीं जा सकतातस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP/Getty Images

एजेंसी चाहती है कि 2027 के अंत तक दुनिया में सब लोगों तक इस तरह के सिस्टमों को पहुंचा दिया जाए. साउलो ने बताया, "हम तरक्की कर रहे हैं लेकिन हमें और आगे जाने की और पहले से ज्यादा तेजी से जाने की जरूरत है. इस समय दुनियाभर के सिर्फ आधे देशों के पास पूर्व चेतावनी सिस्टम हैं."

भारत में भी बढ़ रहा जलवायु विस्थापन

स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलवायु परिवर्तनके इंडिकेटर भी एक बार फिर रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंच गए हैं. डब्ल्यूएमओ ने कहा, "मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के स्पष्ट चिन्ह 2024 में नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए, और हजारों नहीं तो सैकड़ों सालों से हो रहे इसके कुछ परिणाम ऐसे हो गए हैं कि इन्हें अब बदला नहीं जा सकता."

बर्बादी की दहलीज के पार सरक रहा है इंसान

रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक युग से पहले के समय से लेकर अभी तक के इतिहास में 2024 सबसे गर्म साल साबित हुआ. यह पेरिस संधि की 1.5 डिग्री सेल्सियस की चौखट को लांघने वाला पहला साल बन गया. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेष ने कहा, "हमारा ग्रह पहले से ज्यादा संकेत दे रहा है- लेकिन यह रिपोर्ट दिखाती है कि लंबी अवधि में वैश्विक तापमान की बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोके रखना अभी भी मुमकिन है."

इंसानी विकास की कीमत चुकाता हिमालयी इलाका

तापमान तस्वीर का सिर्फ एक हिस्सा है. साउलो ने कहा कि 2024 में, "हमारे महासागरों का गर्म होना भी जारी रहा और समुद्र की सतह का बढ़ना भी जारी रहा." उन्होंने आगे बताया कि इसके अलावा धरती की सतह के जमे हुए हिस्से खतरनाक दर से पिघल रहे हैं. उन्होंने कहा, "ग्लेशियरों का पिघलना जारी है और अंटार्कटिक की समुद्री बर्फ इतिहास में अपने दूसरे सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है."

सीके/ओएसजे (एएफपी)