ट्रंप की वीजा नीति से हार्वर्ड में भारतीय छात्रों में डर
३० मई २०२५ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बीच चल रहे विवाद में अंतरराष्ट्रीय छात्र फंस गए हैं. डीडब्ल्यू ने हार्वर्ड में पढ़ रहे भारतीय छात्रों से बात की. उन्होंने कैंपस में फैले "चिंता और डर” के माहौल के बारे में बताया.
हाल ही हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट वीजा सर्टिफिकेशन को ट्रंप प्रशासन ने रद्द कर दिया. जिसने हार्वर्ड में पढ़ रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भविष्य को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है.
भारत के लगभग 800 छात्र हार्वर्ड में पढ़ रहे हैं. 25 साल के प्री-डॉक्टोरल फेलो, पार्थिव पटेल (बदला हुआ नाम) हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में रिसर्च कर रहे हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि वीजा रद्द होने की घोषणा के बाद से उन्हें ठीक से नींद भी नहीं आ रही है.
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उन्होंने कहा, "अंतरराष्ट्रीय छात्रों में चिंता और डर का माहौल है. हमें समझ नहीं आ रहा कि किससे मदद मांगे और भविष्य में क्या होगा. आप इस चिंता को समझ सकते हैं.”
पटेल ने यह भी कहा कि वीजा खतरे में पड़ने के साथ-साथ, ट्रंप प्रशासन की ओर से दी जाने वाली फंडिंग में कटौती की धमकी भी उनकी रिसर्च को प्रभावित कर सकती है.
उन्होंने कहा, "मैं एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा हूं. मेरी रिसर्च पूरी तरह से हार्वर्ड की सुविधाओं पर निर्भर है. जैसे कि डेटा सेट्स तक पहुंच, मेरे गाइड की मेंटरशिप और यहां का माहौल.”
उन्होंने बताया कि अगर फंडिंग में कटौती होती है और अंतरराष्ट्रीय छात्रों को बाहर निकाल दिया जाता है तो यहां बचेगा ही क्या?
बढ़ाई जा रही हैं छात्रों के वीजा की मुश्किलें
अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (डीएचएस) का हार्वर्ड के स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम सर्टिफिकेशन को रद्द करने का मतलब होगा कि यूनिवर्सिटी अब एफ-वन या जे-वन वीजा यानी ऐसे वीजा जो कि अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका में कानूनी रूप से पढ़ने के लिए जरूरी होते हैं, वह जारी या स्पॉन्सर नहीं कर पाएगी.
हार्वर्ड का कहना है कि इस फैसले से 7,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रेजुएट प्रोग्राम्स का हिस्सा हैं.
जिन अंतरराष्ट्रीय छात्रों के पास ऑप्टिमल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग (ओपीटी) या एसटीईएम ओपीटी (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) है, जो पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद अमेरिका में तीन साल तक काम करने की अनुमति देता है. उन्हें भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
अगर यह छात्र किसी दूसरे संस्थान में ट्रांसफर करते हैं, तो उनका ओपीटी वर्क परमिट अपने आप खत्म हो सकता है. जिससे कानूनी रूप से उनका अमेरिका में रहना और काम करना मुश्किल हो जाएगा.
हालांकि बोस्टन की एक संघीय अदालत ने 23 मई को इस फैसले पर अस्थाई रोक लगा दी है. हालांकि छात्रों पर डिपोर्ट होने या जबरन ट्रांसफर किए जाने का डर अब भी बना हुआ है.
मानसिक और भावनात्मक बोझ
हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में पब्लिक पॉलिसी की छात्रा, अनन्या शुक्ला ने डीडब्ल्यू को बताया कि उन्हें किसी और शैक्षणिक संस्थान में ट्रांसफर होने और अमेरिका में कानूनी रूप से रहने का दर्जा खोने का डर है.
उन्होंने कहा, "मैं यहां अपना भविष्य बनाने आई थी. लेकिन अब तो बस जो कुछ बचा है, उसे बचाने की कोशिश कर रही हूं.”
उन्होंने बताया, "मैं बार-बार सोचती हूं, क्या मुझे ट्रांसफर होना पड़ेगा? क्या मेरे अर्जित क्रेडिट्स किसी और कॉलेज में मान्य होंगी? क्या मुझे किसी और स्कूल का वीजा मिलेगा? ऐसा लग रहा है जैसे पूरा भविष्य ही थम सा गया है.”
शुक्ल ने कहा, "हम तो जैसे अधर में लटक गए हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता हमारे माता-पिता को है क्योंकि हम उन्हें बता ही नहीं पा रहे कि आगे क्या होगा. यह गंभीर मानसिक बोझ है.”
डीडब्ल्यू से बात करने वाले कई छात्र फोन या ऑनलाइन बातचीत से भी हिचक रहे थे क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं उनकी निगरानी ना की जा रही हो. अगर वह इस मुद्दे पर खुलकर बात करते हैं तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है.
हार्वर्ड का जवाब
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिका के डीएचएस के बीच विवाद की जड़ यह है कि डीएचएस ने छात्रों के रिकॉर्ड की मांग की है. जिसमें उनके अनुशासनात्मक इतिहास, किसी भी तरह की हिंसा या धमकी में शामिल होने और प्रदर्शनों में भागीदारी जैसी जानकारी शामिल है.
पिछले हफ्ते जारी एक बयान में हार्वर्ड के प्रवक्ता, जेसन ए. न्यूटन ने डीएचएस के कदम को "गैरकानूनी” बताया और कहा कि हार्वर्ड अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने के लिए "पूरी तरह प्रतिबद्ध” है.
न्यूटन ने लिखा, "यह बदले की भावना हार्वर्ड समुदाय और हमारे देश को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है और हार्वर्ड के शैक्षणिक व अनुसंधान कार्यक्रमों को कमजोर कर सकती है.”
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मंगलवार को एक और सख्त कदम उठाते हुए ट्रंप प्रशासन ने दुनिया भर के अमेरिकी दूतावासों को आदेश दिया कि वह स्टूडेंट वीजा के लिए अपॉइंटमेंट देना करना बंद कर दे क्योंकि अब वह वीजा आवेदकों की सोशल मीडिया जांच को और गंभीर करने की तैयारी में हैं.
अमेरिकी यूनिवर्सिटीयों में भारतीय छात्रों का समुदाय सबसे बड़ा हैं. अमेरिकी विदेश विभाग के अनुसार उच्च शिक्षा संस्थानों में नामांकित भारतीय छात्रों की संख्या 3.31 लाख से भी अधिक है.
विदेशों में छात्रों को दाखिला दिलवाने और करियर गाइडेंस देने का काम करने वाले मुंबई स्थित नेक्स्ट जेन एजुकेशन इंडिया के संस्थापक, संदीप शर्मा ने डीडब्ल्यू को बताया कि ट्रंप प्रशासन की इन कड़ी नीतियों ने डर और अनिश्चितता का माहौल बना दिया है. जिससे भविष्य के अंतरराष्ट्रीय छात्र शायद अब अमेरिकी संस्थानों को चुनाव करने से हिचकें.
शर्मा ने कहा, "छात्र बहुत बड़े सदमे में हैं और काफी निराश हैं. हाल की घटनाएं यह साफ करती हैं कि चाहे कोई योजना कितनी भी अच्छी क्यों ना हो. वह राजनीति के आगे विवश हो जाती है. लेकिन छात्र हिम्मती होते हैं और एक समुदाय के रूप में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी उम्मीदें नीतियों के कारण ना टूटे.”