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ट्रंप टैरिफ से मुश्किल में कश्मीरी कालीन उद्योग

२२ अप्रैल २०२५

अमेरिकी प्रशासन द्वारा लगाए टैरिफ का असर कश्मीर में कालीन बनाने वालों पर भी पड़ रहा है. उनके कालीन अमेरिका में महंगे हो रहे हैं जिससे मांग में कमी आ रही है. कश्मीर के हजारों कारीगरों के लिए यह मुश्किल घड़ी है.

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श्रीनगर में हाथ से कालीन बनाते कारीगर
श्रीनगर में कालीन बनाते कारीगरतस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance

मोहम्मद यूसुफ डार और उनकी पत्नी शमीमा अपने करघे के सामने पैर मोड़कर बैठे हैं और लगातार गांठें बांधकर मशहूर कश्मीरी कालीनों के फूल वाले पैटर्न तैयार कर रहे हैं. हाथ से बुने कश्मीरी कालीन आमतौर पर असली रेशम से और कभी-कभी शुद्ध ऊन से बनाए जाते हैं. इनको बनाने का काम बहुत चुनौतीपूर्ण होता है.

कारीगरों की कई पीढ़ियां सदियों से इस कला को आगे बढ़ाती आ रही हैं. ये कश्मीरी कालीन अच्छी-खासी कीमत पर बिकते हैं, लेकिन ज्यादातर कारीगर मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैं.

मोहम्मद यूसुफ डार और उनकी पत्नी शमीमा कालीन बनाते हुए
मोहम्मद यूसुफ डार और उनकी पत्नी शमीमा कालीन बनाते हुएतस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance

पीढ़ी दर पीढ़ी कालीन बनाने की कला

43 साल की शमीमा कहती हैं, "मैं अपने पति की मदद सिर्फ इसलिए करती हूं ताकि घर चलाने के लिए हमारी थोड़ी-बहुत अच्छी आमदनी हो जाए." इस दौरान वह और यूसुफ एक साथ सिल्क के रंग बिरंगे धागों को बारीकी के साथ बुन रहे हैं. दोनों ने 9 और 10 साल की उम्र में यह कला सीखी है.

कालीन बनाने के दौरान वे कागज के एक पुराने टुकड़े को देखते हैं जिसमें कालीन के डिजाइन बने होते हैं.

यह उद्योग भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद केंद्र रहने वाले कश्मीर में दशकों के भीषण संघर्ष के बावजूद बचा है. हालांकि फैशन की दौड़ को झेलते हुए अब ऐसे कालीन हवेलियों और म्यूजियमों की शोभा बढ़ाते नजर आते हैं.

कश्मीरी कालीन की दुनियाभर में मांग है
कश्मीरी कालीन अच्छी-खासी कीमत पर बिकते हैं, लेकिन ज्यादातर कारीगर मुश्किल से अपना गुजारा कर पाते हैंतस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance

कालीन उद्योग पर टैरिफ का खतरा

हालांकि, कश्मीरी व्यापारियों का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा अमेरिकी आयात पर लगाए गए टैरिफ, पहले से ही संकट झेल रहे इस कारोबार के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकते हैं. हाथ से बनाए गए कालीन, बड़े पैमाने पर उत्पादित और सस्ते मशीनी कालीनों से वैसे ही पिछड़े हुए हैं.

हालांकि, टैरिफ मुख्य रूप से चीन जैसे प्रमुख निर्यातकों को निशाना बनाने के लिए थे, लेकिन उन्होंने अनजाने में कश्मीर जैसे क्षेत्रों के पारंपरिक हस्तशिल्प उद्योगों को अपने जाल में फंसा लिया. कश्मीरी कालीन अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए बहुत हद तक अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों पर निर्भर हैं.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अकेले भारत से अमेरिका को कालीन निर्यात का मूल्य लगभग 1.2 अरब डॉलर है, जबकि वैश्विक निर्यात का कुल मूल्य 2 अरब डॉलर है.

श्रीनगर के पुराने शहर के रहने वाले 50 साल के यूसुफ ने कहा कि वह पड़ोस के 100 से अधिक बुनकरों में से एकमात्र बचे हैं. दो दशक पहले अन्य बुनकरों ने इस काम को छोड़कर कुछ और काम पकड़ लिया.

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अमेरिका में महंगे हो जाएंगे कश्मीरी कालीन

यूसुफ ने कहा, "मैं एक कालीन को बुनने में महीनों लगा देता हूं, लेकिन अगर मांग ही न हो, तो हमारा कौशल बेकार लगता है." फिर भी, कश्मीर में हजारों परिवार अपनी आजीविका के लिए इस हुनर पर निर्भर हैं और अमेरिका द्वारा लगाए गए 28 फीसदी टैरिफ का मतलब है कि आयातित कालीन अमेरिकी ग्राहकों और खुदरा विक्रेताओं के लिए काफी महंगे हो जाएंगे.

यूसुफ ने सवाल किया, "अगर ये कालीन अमेरिका में महंगे हो जाएंगे, तो क्या इसका मतलब यह है कि हमारी मजदूरी भी बढ़ जाएगी?"

कश्मीर में कालीन बनाते हुए दो कारीगर
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अकेले भारत से अमेरिका को कालीन निर्यात का मूल्य लगभग 1.2 अरब डॉलर है, जबकि वैश्विक निर्यात का कुल मूल्य 2 अरब डॉलर हैतस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance

जानकारों का कहना है कि अमेरिका में उपभोक्ताओं के लिए बढ़ी हुई लागत बुनकरों के लिए उच्च मजदूरी में तब्दील नहीं होती है, बल्कि अक्सर कम ऑर्डर, कम आय और कारीगरों के लिए बढ़ती अनिश्चितता का कारण बनती है.

कश्मीरी कालीन महंगे होने से खरीदार सस्ते, मशीनों से बने कालीनों की ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिससे कश्मीरी कारीगर मुश्किल में पड़ सकते हैं.

जानकारों का कहना है कि जब तक अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियां पारंपरिक उद्योगों की रक्षा के लिए नहीं बदली जातीं, तब तक कश्मीर की विरासत धीरे धीरे दम तोड़ती रहेगी.

कश्मीरी कालीन के सप्लायर विलायत अली ने कहा कि उनके ट्रेडिंग पार्टनर्स, जो अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस को कालीन निर्यात करते हैं उन्होंने पहले ही कम से कम एक दर्जन ऑर्डर रद्द कर दिए हैं.

श्रीनगर में कालीन उद्योग में काम करते कारीगर
कालीन को हाथ से बनाने में महीनों का समय लगता हुआतस्वीर: Dar Yasin/AP/picture alliance

उन्होंने कहा, "निर्यातकों ने कुछ दर्जन कालीन भी लौटा दिए." अली ने बताया, "यह लाभ और नुकसान के कठिन गणित पर निर्भर करता है. वे ऐसे कालीन में हजारों गांठें नहीं देखते, जिन्हें बांधने में महीनों लगते हैं."

एए/ओएसजे (एपी)