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अर्थव्यवस्थासंयुक्त राज्य अमेरिका

क्या डॉनल्ड ट्रंप ने कारोबारी जंग जीत ली है?

निखिल रंजन रॉयटर्स
१० अगस्त २०२५

पहली नजर में डॉनल्ड ट्रंप उस कारोबारी जंग में विजेता की तरह दिखते हैं जो उन्होंने जनवरी में राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया के खिलाफ शुरू किया. हालांकि उन्हें महंगाई और निवेश पर मुनाफे से जुड़ी बाधाओं को पार करना बाकी है.

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एक समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप
डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ पर कई देशों ने समझौता कर लिया है तस्वीर: Mark Schiefelbein/AP Photo/picture alliance

अमेरिका के प्रमुख कारोबारी साझीदारों ने डॉनल्ड ट्रंप की इच्छा के आगे सिर झुका दिया है. अमेरिका में आने वाले लगभग सभी तरह के सामानों पर वसूले जा रहे आयात शुल्क की दर दहाई में है. व्यापार घाटा कम हो रहा है. हर महीने दसियों अरब डॉलर अमेरिकी खजाने में पहुंच रहे हैं, जिनकी अमेरिका को बहुत जरूरत है.

हालांकि इस रास्ते की प्रमुख बाधाएं अभी दूर नहीं हुईं हैं. साझीदार क्या अमेरिका में निवेश और अमेरिकी सामानों की खरीदारी से मुनाफा कमा सकेंगे, जिसका उन्होंने वादा किया है. आयात शुल्कों की वजह से अमेरिका में महंगाई कितनी बढ़ेगी? मांग और विकास में क्या संतुलन होगा और क्या अमेरिकी अदालतें उनके लगाए आयात शुल्कों को बने रहने देंगी?

ट्रंप के शपथ ग्रहण के दिन अमेरिका में आयात शुल्क की दर लगभग 2.5 फीसदी थी. अब यह दर 17-19 फीसदी तक है. अटलांटिक काउंसिल का अनुमान है कि यह 20 फीसदी तक जा सकती है जो इस सदी में सबसे ऊंची होगी. भारत समेत कुछ देशों के लिए तो इसे 25 और 35 फीसदी भी किया गया है. ये दरें बीते गुरुवार से लागू हो चुकी हैं.

अमेरिका के कारोबारी साझीदार मोटे तौर पर जवाबी शुल्क लगाने से बच रहे हैं. इसकी वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था खुद को ज्यादा तकलीफदेह दौर से अब तक बचा पाई है. मंगलवार को आंकड़ों ने दिखाया कि जून में अमेरिका का व्यापार घाटा कम हो कर 16 फीसदी पर आ गया. इसी तरह चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा  21 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गया है.

अमेरिकी ग्राहकों ने उम्मीद से ज्यादा लचीलापन दिखाया है. कुछ हालिया आंकड़े दिखा रहे हैं कि शुल्कों का असर रोजगार, विकास और महंगाई पर दिखने लगा है. अटलांटिक काउंसिल की इकोनॉमिक स्टडीज के प्रमुख जोश लिप्स्की कहते हैं, "सवाल है कि जीत का मतलब क्या है? वह बाकी दुनिया में आयात शुल्क बढ़ा रहे हैं और उसके बदले जवाबी कारोबारी जंग से जितनी आशंका थी उससे ज्यादा आसानी से बच रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?"

व्हाइट हाउस में डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिकी खजाने में हर महीने अरबों डॉलर आते देख ट्रंप को लग रहा है कि उनकी आक्रामक नीति सफल हैतस्वीर: Carlos Barria/REUTERS

अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टिट्यूट की इकोनॉमिक पॉलिसी स्टडीज के प्रमुख माइकल स्ट्रेन का कहना है कि ट्रंप की भूराजनीतिक विजय खोखली साबित हो सकती है. स्ट्रेन ने कहा, "भूराजनीतिक अर्थों में जाहिर है कि ट्रंप को दूसरे देशों से भारी छूट मिल रहा है, लेकिन आर्थिक अर्थों में वह कारोबारी जंग नहीं जीत रहे हैं." उन्होंने यह भी कहा, "हम जो देख रहे हैं वह यह है कि दूसरे देश अपने यहां जितना नुकसान कर रहे हैं, उसकी तुलना में ट्रंप अमेरिकी लोगों का ज्यादा आर्थिक नुकसान कर रहे हैं. मुझे लगता है कि वह हार रहे हैं."

ट्रंप के पहले कार्यकाल में व्हाइट हाउस की व्यापार सलाहकार रहीं केली अन शॉ अब अकीन गुंब स्ट्रॉस हाउस एंड फेल्ड में पार्टनर हैं. उनका कहना है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था और शेयरों की लगभग रिकॉर्ड ऊंची कीमतें, "ज्यादा आक्रामक टैरिफ रणनीतिक का समर्थन करती हैं." हालांकि ट्रंप के टैरिफ, टैक्स में कटौती, नियमों को घटाना और ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने की नीतियों का असर सामने आने में थोड़ा वक्त लगेगा. शॉ ने यह भी कहा, "मुझे लगता है कि इतिहास इन नीतियों के साथ न्याय करेगा, लेकिन मेरे जीवनकाल में वह पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने दुनिया के कारोबार तंत्र में बड़े बदलाव किए हैं."

अमेरिका के साथ अब तक के समझौते

ट्रंप ने  यूरोपीय संघ, जापान, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, इंडोनेशिया, पाकिस्तान और फिलीपींस के साथ आठ फ्रेमवर्क एग्रीमेंट किए हैं. इम समझौते के बाद इन देशों से आने वाले सामान पर 10-20 फीसदा का आयात शुल्क लगाया गया है. ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों ने अप्रैल में जो "90 दिन में 90 समझौते" की बात कही थी उससे यह काफी कम है लेकिन अमेरिका आने वाले 40 फीसदी सामान इसके दायरे में आएंगे.

अगर इसमें चीन को जोड़ दें तो यह आंकड़ा करीब 54 फीसदी तक पहुंच जाएगा. फिलहाल चीन पर 30 फीसदी का शुल्क लगाया गया है लेकिन 12 अगस्त की डेडलाइन से पहले शुल्कों में कुछ और छूट मिलने के आसार हैं. इन समझौतों को छोड़ कर ट्रंप के शुल्कों पर उठाए बाकी कदम काफी अस्थिर रहे हैं.

भारत के सामने क्या करे क्या ना करे की मुश्किल

बुधवार को उन्होंने भारत के खिलाफ आयात शुल्क 25 फीसदी से बढ़ा कर 50 फीसदी कर दिया. भारत के खिलाफ यह कार्रवाई उसे रूसी तेल की खरीदारी से रोकने के लिए की गई है. भारत से अमेरिका का कारोबारी समझौता नहीं हो सका है. ब्राजील से आने वाले सामान पर भी यही शुल्क लगाया गया है. ट्रंप का ने ब्राजील के पूर्व नेता जाएर बोल्सोनारो पर चल रहे अभियोग की शिकायत की थी. बोल्सोनारो ट्रंप के सहयोगी माने जाते हैं. ट्रंप ने पहले स्विट्जरलैंड की तारीफ की थी लेकिन स्विस नेता और ट्रंप की बातचीत के बाद जब समझौता नहीं हो सका था उस पर भी 39 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा हुई.

रेयान मजेरस एक कारोबारी मामलों के वकील हैं जिन्होंने ट्रंप और बाइडेन दोनों प्रशासनों के साथ काम किया है. उनका कहना है कि अब तक जो घोषणाएं हुई हैं वे "लंबे समय से चली आ रहीं राजनीति में उलझे कारोबारी मामलों" को सुलझाने में नाकाम हैं. मजेरस का कहना है, "ये मामले कई दशकों से अमेरिकी नीति निर्धारकों को परेशान कर रहे हैं और वहां तक पहुंचने में अगर साल नहीं तो महीनों लगेंगे."

उन्होंने बड़ी निवेश घोषणाओं पर अमल के लिए बाध्यकारी तंत्र की कमी की ओर भी ध्यान दिलाया. इनमें जापान के 550 अरब डॉलर और यूरोपीय संघ के 600 अरब डॉलर की निवेश योजनाएं शामिल हैं.

वादे और जोखिम

यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेय लाएन ने जब ट्रंप के साथ पिछले महीने स्कॉटलैंड में अचानक हुई मुलाकात में बिना कुछ बड़ा हासिल किए 15 फीसदी टैरिफ के समझौते पर सहमति दे दी तो उनकी बड़ी आलोचना हुई. यूरोप में वाइन बनाने वाले और किसान काफी निराश हुए.

फ्रांस के डेयरी उद्योग से जुड़े महासंघ एफएनआईएल के फ्रांसोआ जेवियर हुआर्ड का कहना है कि 30 फीसदी की धमकी के आगे 15 फीसदी शुल्क बेहतर है लेकिन फिर भी यह डेयरी से जुड़े लोगों पर लाखों डॉलर का बोझ डालेगा.

स्कॉटलैंड में उर्सुला फॉन डेयर लाएन के साथ डॉनल्ड ट्रंप
यूरोपीय संघ ने जल्दबाजी में अमेरिका से समझौता कर लिया लेकिन इस फैसले की यूरोप में कड़ी आलोचना हो रही हैतस्वीर: Jacquelyn Martin/AP Photo/dpa/picture alliance

यूरोपीय विशेषज्ञों का कहना है कि फॉन डेय लाएन ने यह कदम ऊंचे टैरिफ से बचने, ट्रंप के साथ तनाव शांत करने और सेमीकंडक्टर, दवाओं और कार जैसी चीजों पर ज्यादा टैरिफ की आशंका को खत्म करने के लिए किया. इसके साथ ही मोटे तौर पर प्रतीकात्मक रूप से 750 अरब के रणनीतिक सामानों की खरीदारी और 600 अरब के निवेश का वादा भी  किया.

इन वादों को पूरा करने की जिम्मेदारी यूरोपीय संघ के सदस्य देशों और कंपनियों पर आएगी. जानकारों का कहना है कि संघ इस पर राजी नहीं होगा. अमेरिकी अधिकारी जोर देकर कह रहे हैं कि अगर यूरोपीय संघ और जापान या दूसरे देशों ने अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं की तो ट्रंप दोबारा ऊंचे टैरिफ लगा सकते हैं. हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि इन पर कैसे नजर या नियंत्रण रखा जाएगा.

इतिहास सजग रहने की सलाह देता है. चीन की सरकार से चलने वाली देश की अर्थव्यवस्था ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में हुए खरीदारी के समझौतों को पूरा नहीं किया. इसके बाद बाइडेन प्रशासन के लिए भी इसे लागू कराना मुश्किल हो गया.

 इसके बाद आखिरी चीज जो सबसे मुश्किल हो सकती है वो यह है कि ट्रंप के टैरिफ के सामने कानूनी दिक्कतें भी हैं. ट्रंप की लीगल टीम को अपील अदालतों में हुई बहस के दौरान तीखे सवालों से जूझना पड़ा. ट्रंप ने अपने टैरिफ को न्यायोचित ठहराने के लिए 1977 इंटरनेशनल इमर्जेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट का सहारा लिया है जो ऐतिहासिक रूप से दुश्मन देशों पर प्रतिबंध लगाने और उनकी संपत्ति जब्त करने के लिए इस्तेमाल होता रहा है. अदालत से इस पर किसी भी वक्त फैसला आ सकता है. फैसला चाहे जो हो अंतिम निर्णय के लिए उसे सुप्रीम कोर्ट तक तो जाना ही होगा.