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मुसाफिरों ने कैसे बदली हमारी दुनिया

एलिजाबेथ ग्रेनियर
२८ मार्च २०२५

अरबी शब्द 'मुसाफिर' के अलग-अलग रूप कई भाषाओं में मिलते हैं. कहीं इसका मतलब 'यात्री' होता है, तो कहीं 'मेहमान'. बर्लिन की एक प्रदर्शनी में दिखाया गया है कि मुसाफिरों ने किस तरह दुनिया में बदलाव लाया.

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मलेशियाई कलाकार ऐनी समात के इंस्टॉलेशन 'वाइड अवेक ऐंड अनअफ्रेड'
मलेशियाई कलाकार ऐनी समात के इंस्टॉलेशन 'वाइड अवेक ऐंड अनअफ्रेड' में उन्होंने पारंपरिक मलेशियाई बुनाई में अलग-अलग तरह की चीजें इस्तेमाल की हैंतस्वीर: Elizabeth Grenier/DW

हिंदी, उर्दू, फारसी, रोमानियाई, तुर्की, स्वाहिली, कजाख, मलय और उइगुर सहित कई भाषाओं ने अरबी शब्द ‘मुसाफिर' के किसी न किसी रूप को अपनाया है. इससे पता चलता है कि यह शब्द पूर्वी एशिया से लेकर अफ्रीका के कुछ हिस्सों तक किस तरह पहुंचा. इन अलग-अलग सांस्कृतियों में इस शब्द का मतलब ज्यादातर ‘यात्री' ही होता है. लेकिन कुछ भाषाओं में, जैसे कि तुर्की और रोमानियाई में इसका मतलब ‘मेहमान' हो गया है. इन दोनों विचारों का आपस में जुड़ना यानी यात्री को एक मेहमान की तरह देखने के विचार ने बर्लिन के 'हाउस डेय कुल्टुअरेन डेय वेल्ट' में एक प्रदर्शनी लगाने के लिए प्रेरित किया.

‘मुसाफिरी: यात्री और मेहमान' नामक इस आधुनिक कला प्रदर्शनी और शोध परियोजना में यात्रा और मेहमाननवाजी से जुड़े सवालों का जवाब तलाशने पर ध्यान दिया गया है. प्राचीन समय में, दुनिया भर के यात्रियों का उन लोगों ने कैसा स्वागत किया जिनसे वे मिले? अलग-अलग संस्कृतियों में मेहमानों के प्रति परंपराओं और रिवाजों से हम क्या सीख सकते हैं? और वे एक आधुनिक, विविधतापूर्ण दुनिया को कैसे प्रेरित कर सकते हैं जहां यात्रियों और प्रवासियों को अपनापन महसूस हो?

इंसानों ने बोलना कब और क्यों शुरू किया?

बर्लिन के 'हाउस डेय कुल्टुअरेन डेय वेल्ट' के निदेशक बोनावेंचर सोह बेजेंग नदिकुंग ने प्रदर्शनी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "ये सवाल हमेशा से रहे हैं, लेकिन आज इन पर बात करना ज्यादा जरूरी है, खासकर ऐसे समय में जब यात्रा करना आसान नहीं है. हम देख रहे हैं कि सीमाओं पर दीवारों का निर्माण किया जा रहा है, सख्ती बढ़ाई जा रही है और लोगों को बड़े पैमाने पर निर्वासित किया जा रहा है, तो हमें इन बुनियादी बातों पर चर्चा करनी चाहिए.”

लौरेंसो दा सिल्वा मेंडोंसा: मानवाधिकारों के अग्रदूत

प्रदर्शनी के साथ चल रही शोध परियोजना में उन ऐतिहासिक हस्तियों को दिखाया गया है जिनकी यात्राएं और उल्लेखनीय उपलब्धियां आम तौर पर पश्चिमी इतिहास की किताबों में नहीं मिलतीं.

क्यूरेटर कॉस्मिन कॉस्टिनास ने उल्लेख किया है कि ऐसे ही एक महत्वपूर्ण यात्री लौरेंसो दा सिल्वा मेंडोंसा थे. डोंगो (वर्तमान अंगोला में) के शाही घराने के राजकुमार मेंडोंसा को हाल तक काफी हद तक अनदेखा किया गया, भले ही उन्होंने दास प्रथा को खत्म करने के लिए एक अहम अभियान चलाया था. 

क्यूरेटर कॉस्मिन कॉस्टिनास पुरस्कार विजेता लेखक ओसियन वोंग की फोटो सीरीज को पेश करते हुए
क्यूरेटर कॉस्मिन कॉस्टिनास पुरस्कार विजेता लेखक ओसियन वोंग की फोटो सीरीज को पेश करते हुएतस्वीर: Elizabeth Grenier/DW

उन्हें 1671 में अपने परिवार के साथ युद्ध के राजनीतिक बंदी के रूप में ब्राजील में निर्वासित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने पुर्तगाल द्वारा दासों पर टैक्स लगाने के खिलाफ विद्रोह किया था. बाद में उन्हें पुर्तगाल भेज दिया गया और उनकी यात्रा जारी रही. आखिरकार वे इटली पहुंचे, जहां उन्होंने पोप से अपील की कि वे गुलाम बनाए गए अफ्रीकियों के ट्रांसअटलांटिक व्यापार की आधिकारिक रूप से निंदा करें. मेंडोंसा ने वेटिकन में अपना केस जीता, जिसके कारण पोप इनोसेंट XI ने 1686 में दास प्रथा की निंदा की.

कॉस्टिनास ने कहा कि मेंडोंसा ने मांग की कि दुनिया के हर कोने में यहूदी, गैर-ईसाई या ईसाई, सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए. उनकी इस मांग ने उन्हें मानवाधिकार का अग्रदूत बना दिया. दूसरे शब्दों में कहें, तो मेंडोंसा मानवाधिकार की बात करने वाले शुरूआती लोगों में से एक बन गए. एक सदी बाद, यूरोपीय बुद्धिजीवियों के लिए मानवाधिकार चिंता का मुख्य विषय बन गया. 

जिमी ओंग ने अपनी कला में रैफल्स की एक मशहूर मूर्ति के कुछ हिस्सों को दोबारा बना कर पेश किया
जिमी ओंग ने अपनी कला में रैफल्स की एक मशहूर मूर्ति के कुछ हिस्सों को दोबारा बना कर पेश कियातस्वीर: Hanna Wiedemann/HKW

क्यूरेटर कॉस्मिन कॉस्टिनास का कहना है कि यह ऐतिहासिक शख्सियत, प्रदर्शनी की उन कुछ कलाकृतियों से मेल खाता है जिनमें अश्वेतों के प्रतिरोध की कहानियां दिखाई गई हैं और यह बताया गया है कि 'आज का पूंजीवाद, काफी हद तक अमेरिका में अफ्रीकी लोगों की गुलामी पर टिका हुआ है'.

हिंसक औपनिवेशिक अतीत से निपटना

प्रदर्शनी में अन्य कलाकृतियां उपनिवेशवाद से जुड़े विषयों पर आधारित हैं. उदाहरण के लिए, सिंगापुर में जन्मे कलाकार जिमी ओंग की सीरीज ‘सीमस्ट्रेस रैफल्स' ब्रिटिश उपनिवेशवादी स्टैमफोर्ड रैफल्स की विरासत पर टिप्पणी करती है, जिन्होंने सिंगापुर में एक व्यापारिक केंद्र स्थापित किया था. इस वजह से 1824 में यह द्वीप एक ब्रिटिश उपनिवेश बन गया. हालांकि, आज भी उनके नाम पर देश की सड़कों और संस्थानों का नाम है, लेकिन उन्हें लुटेरा और हमलावर भी माना जाता है.

विश्व युद्ध के बाद क्यों पड़ी पासपोर्ट की जरूरत

जिमी ओंग ने अपनी कला में रैफल्स की एक मशहूर मूर्ति के कुछ हिस्सों को दोबारा बनाया है. बिना सिर वाले पुतले को काटा, सिला, रंगा और रस्सियों से लटकाया गया है. यह इतिहास में उपनिवेशवादियों की हिंसक भूमिका को दिखाने का कलाकार का तरीका है. 

परंपरा और आधुनिकता के बीच टकराव

प्रदर्शनी के बीचोबीच मलेशियाई कलाकार ऐनी समात का एक इंस्टॉलेशन है. ‘वाइड अवेक ऐंड अनअफ्रेड' में, उन्होंने पारंपरिक मलेशियाई बुनाई में अलग-अलग तरह की चीजें इस्तेमाल की हैं.

वह कहती हैं, "यह एक विशाल इंसानी आकृति है जो सभी का ध्यान खींचती है, लेकिन इस कलाकृति में इस्तेमाल की गई चीजें बहुत ही साधारण, सामान्य और रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली हैं, जैसे कि गार्डन रेक, डंडियां और धागे.” उन्होंने कहा कि विलक्षणता और विनम्रता, परंपरा और आधुनिकता के बीच का यह टकराव, मलेशिया की सांस्कृतिक दोहरी पहचान को दिखाता है. 

कॉस्मिन कॉस्टिनास यह भी कहते हैं कि इंस्टॉलेशन में इस्तेमाल की गई कई चीजें बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं. उनमें से ज्यादातर को अगर अलग-अलग देखा जाए, तो कोई जादू या खूबसूरती नहीं है. उन्हें एक साथ मिलाकर पूरी तरह से अलग चीज बनाने की यह क्षमता कलाकार की ताकत दिखाती है. साथ ही, उस 'दिखावे' के जादू के बारे में भी बताती है जिसकी मदद से पूंजीवाद प्लास्टिक के ढेर को मनचाही चीजों में बदल देता है.

कैसे कैसे ‘मुसाफिर'

लगभग 40 कलाकारों की कलाकृतियों को दिखाने वाली यह प्रदर्शनी अलग-अलग सांस्कृतिक जुड़ावों को भी दिखाती है. जैसे, के-पॉप ने दुनिया भर की पॉप संस्कृति को बदलने में कैसे मदद की या ब्राजील का लम्बाडा क्रेज कैसे पूरी दुनिया में फैला और 1990 के दशक में अंतरराष्ट्रीय संगीत चार्ट में सबसे ऊपर रहा.

पुरस्कार विजेता लेखक ओसियन वोंग की फोटो सीरीज बताती है कि अमेरिका में वियतनामी शरणार्थियों ने कैसे अपनी सामुदायिक जगहें बनाईं और इस दौरान उन्होंने नेल सैलून उद्योग की शुरुआत की.

"Musafiri: Of Travelers and Guests" is on show at Berlin's Haus der Kulturen der Welt
"Musafiri: Of Travelers and Guests" is on show at Berlin's Haus der Kulturen der Weltतस्वीर: Yukiko

क्यूरेटर अपने शुरुआती लेख में लिखते हैं कि मुसाफिरों द्वारा की गई यात्राओं का दायरा बहुत बड़ा है, जैसा कि प्रदर्शनी में दिखाया गया है. ‘मुसाफिरी: यात्री और मेहमान' प्रदर्शनी उन लोगों को सामने लाती है जो वैश्वीकरण के 'छिपे हुए पहलू' में दिखाई नहीं देते, जैसे कि प्रवासी मजदूर, बुनियादी ढांचे के गुमनाम निर्माता, लॉजिस्टिक्स का काम करने वाले लोग वगैरह.

वहीं दूसरी ओर, प्रदर्शनी में उन लोगों की भी बात की गई है जो ‘विरोध जताते हुए यात्रा करने से इनकार करते हैं'. कॉस्टिनास ने कहा, "इनमें वे लोग शामिल हैं जो अपने घरों से निकाले जाने से मना करते हैं या अपनी पुश्तैनी जमीन से बेघर होने या जातीय सफाई से इनकार करते हैं.” कई बार, ये लोग बिना विदेश गए ही अपनी मातृभूमि को बर्बाद होते देखते हैं.