दो डिग्री का जलवायु लक्ष्य हासिल करना अब नामुमकिन: रिपोर्ट
५ फ़रवरी २०२५जाने माने जलवायु वैज्ञानिक जेम्स हांसेन के नेतृत्व में बनाई गई यह रिपोर्ट "एनवायरनमेंट: साइंस एंड पॉलिसी फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट" पत्रिका में छपी है. इसमें यह निष्कर्ष निकाला गया है कि बढ़ती ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के प्रति धरती की जलवायु को अभी तक जितना संवेदनशील समझा जाता था वह उससे ज्यादा संवेदनशील है.
इसके अलावा रिपोर्ट यह भी कहती है कि एक ऐसी घटना की वजह से यह संकट और बढ़ गया है जो असल में सकारात्मक है. जहाजरानी उद्योग का एयरोसोल प्रदूषण सूर्य की रौशनी को ब्लॉक करता है जिससे ग्लोबल वार्मिंग का असर थोड़ा कम होता है, लेकिन हाल ही में यह प्रदूषण कम हो गया है जिससे वार्मिंग के मोर्चे पर नुकसान हो रहा है.
वैज्ञानिकों की गंभीर चेतावनी
हांसेन पहले नासा के चोटी के जलवायु वैज्ञानिक थे. वो 1988 में अमेरिकी संसद में दिए गए बयान के लिए मशहूर हैं जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि ग्लोबल वार्मिंग शुरू हो चुकी है. उन्होंने अब एक कार्यक्रम में कहा कि संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति द्वारा खींची गई महत्वाकांक्षी तस्वीर "एक असंभव परिदृश्य है." इस समिति ने पहले कहा था कि साल 2,100 तक वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने की 50 प्रतिशत संभावना है.
हांसेन ने कहा, "यह परिदृश्य अब नामुमकिन है. दो डिग्री का लक्ष्य अब मर चुका है." उन्होंने और रिपोर्ट के अन्य लेखकों ने आगे कहा है कि दूसरी तरफ जीवाश्म ईंधनों को जलाने से पर्यावरण में जो ग्रीनहाउस गैसें छोड़ी गई हैं उन्होंने वार्मिंग के और बढ़ने को सुनिश्चित कर दिया है.
उनका पूर्वानुमान है कि आने वाले सालों में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस या उसके ऊपर ही रहेगा और 2045 तक करीब दो डिग्री के आस पास पहुंच जाएगा. उन्होंने यह भी अनुमान लगाया कि अगले 20-30 सालों में ध्रुवीय बर्फ के पिघलने और उत्तरी अटलांटिक में ताजे पानी के बढ़ने से अटलांटिक मेरिडीयोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन लहर बंद हो जाएगी.
यह लहर दुनिया के कई कोनों में आवश्यक गर्मी पहुंचाती है और समुद्री जीवों के लिए जरूरी पोषक तत्व भी लाती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अंत के साथ "कई समस्याएं आएंगी जिनमें समुद्र की सतह का कई मीटर बढ़ना शामिल है. इसलिए हम इस लहर के अंत को ऐसा पड़ाव मान रहे हैं "जहां से लौटना संभव नहीं होगा."
कदम उठाने की जरूरत
2015 में दुनियाभर के देशों में पेरिस जलवायु संधि के तहत यह समझौता हुआ था कि इस सदी के अंत तक वार्मिंग को औद्योगिक युग की शुरुआत से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने नहीं देंगे. पेरिस संधि ने दशकों में दिखाई देने वाले लॉन्ग टर्म ट्रेंड की बात की थी, लेकिन यूरोपीय संघ का जलवायु मॉनिटरिंग सिस्टम कॉपरनिकस का डाटा दिखा रहा है कि यह लक्ष्य अभी से पार हो चुका है.
दो डिग्री पर तो असर और गंभीर होगा. नई रिपोर्ट के लेखकों ने माना कि उनके निष्कर्ष डरावने हैं लेकिन उनका मानना है कि बदलाव के लिए ईमानदारी जरूरी है. उन्होंने कहा, "जलवायु मूल्यांकन में रीयलिस्टिक नहीं होने से और मौजूदा नीतियों के प्रभावशाली ना होने को ना मानने से युवाओं का भला नहीं होगा."
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वे भविष्य के लिए "आशावान" हैं और यह भी कहा कि अब "हम ऐसे पड़ाव पर आ गए हैं जब हमें विशेष हितों की समस्या को संबोधित करना ही चाहिए."
सीके/वीके (एएफपी)